डी एन एस आनंद

आज 20 अगस्त है । देश में वैज्ञानिक चेतना के विकास के मार्ग में अपना बलिदान देने वाले प्रमुख तर्कवादी, विज्ञान संचारक डॉ नरेन्द्र दाभोलकर का स्मृति दिवस. अंधश्रद्धा, अंधविश्वास मुक्त तर्कशील भारत के निर्माण में उनकी भूमिका एवं बलिदान के सम्मान में देश भर में आज साइंटिफिक टेंपर डे’ ( वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस ) मनाया जा रहा है।


देश के सबसे बड़े विज्ञान संचार नेटवर्क एवं जन विज्ञान आंदोलन का केंद्र ऑल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क ( AIPSN ) के आह्वान पर देश के विभिन्न राज्यों, क्षेत्रों में इस उपलक्ष्य में विभिन्न कार्यक्रमों का आयोजन किया जा रहा है। देश आज “वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस” के अवसर पर जन विज्ञान आंदोलन की प्रमुख हस्ती तथा तर्कशील आंदोलन के प्रतीक बन चुके डॉ नरेन्द्र दाभोलकर को शिद्दत से याद करेगा। उनके सपनों विचारों एवं कार्यों को आगे बढ़ाने एवं मंजिल तक पहुंचाने का संकल्प दोहराएगा, उसे आगे बढ़ाएगा।
उल्लेखनीय है कि देश का तर्कशील आंदोलन संविधान सम्मत सतत प्रयास एवं संघर्ष के जरिए सभी प्रकार की गैर बराबरी, भेदभाव, शोषण – उत्पीड़न, अंधश्रद्धा, अंधविश्वास मुक्त, तर्कशील एवं प्रगतिशील समाज के निर्माण के लिए प्रतिबद्ध एवं इस दिशा में लगातार प्रयासरत है।


अधूरे हैं शहीदों के सपने
गौरतलब है कि काफी लम्बे संघर्ष एवं बलिदान के बाद मिली आजादी के 75 वर्ष से भी अधिक समय हो गए। पिछले वर्ष ही देश में आजादी की 75 वीं वर्षगांठ को आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। पर सच्चाई यह है कि हमारे शहीदों के समतामूलक, भेदभाव रहित अंधविश्वास मुक्त, तर्कशील नए भारत के निर्माण के सपने अब तक पूरे नहीं हुए। कभी शहीद भगत सिंह ने भी ” मैं नास्तिक क्यों हूं” बतलाते हुए संजीदगी से यह मुद्दा देश के सामने रखा था। महज अंधविश्वास ही नहीं, सामाजिक, आर्थिक गैरबराबरी, भेदभाव, अशिक्षा, बीमारी, कुपोषण से लेकर विस्थापन, पलायन, बेरोजगारी तक की अनेक समस्याएं एवं चुनौतियां अब भी झारखंड समेत देश के सामने मुंह बाए खड़ी हैं। समाज में व्याप्त मानसिक जड़ता एवं अवैज्ञानिक सोच, देश को प्रगति पथ पर आगे ले जाने के रास्ते में सबसे बड़ी बाधा है। ऐसे में बेहद जरूरी है देश में अंधश्रद्धा, अंधविश्वास विरोधी अभियान के प्रखर प्रवक्ता एवं तर्कशील आंदोलन के प्रतीक बन चुके डॉ नरेन्द्र दाभोलकर की शहादत को याद करते हुए, उनके सपनों को मंजिल तक पहुंचाने का हर संभव प्रयास करना तथा इसके लिए अपनी प्रतिबद्धता एवं संकल्पों को दोहराना तथा उसे आगे बढ़ाना।


डॉ दाभोलकर की भूमिका
1 नवंबर 1945 को महाराष्ट्र के सतारा में जन्मे डॉ नरेन्द्र अच्युत दाभोलकर वस्तुत महाराष्ट्र के प्रमुख फिजिशियन, सोशल एक्टिविस्ट, तर्कवादी, विज्ञान संचारक एवं लेखक थे। उन्होंने तर्कशील आंदोलन को आगे बढ़ाने के लिए 9 अगस्त 1989 को महाराष्ट्र अंधश्रद्धा निर्मूलन समिति का गठन किया एवं इसके अध्यक्ष बनाए गए। अंधश्रद्धा, अंधविश्वास विरोधी उनके अभियान से घबरा कर 20 अगस्त 2013 को पूणे में धार्मिक कट्टरवादियों ने उनकी नृशंस हत्या कर दी। देश में तर्कशील आंदोलन को आगे बढ़ाने में उनकी प्रमुख भूमिका को देखते हुए आ‌ल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क ( AIPSN ) एवं देश भर में उससे जुड़े संगठन तब से उनके शहादत दिवस 20 अगस्त को वैज्ञानिक दृष्टिकोण दिवस ( Scientific Temper day ) के रूप में मनाते आ रहे हैं।
इस क्रम में देश भर में विभिन्न विज्ञान परक गतिविधियों का आयोजन किया जा रहा है। झारखंड में इस अवसर पर पीपुल्स साइंस नेटवर्क से जुड़ी साइंस फार सोसायटी, झारखंड ने 20 अगस्त को सायं ऑनलाइन व्याख्यान सह परिचर्चा का आयोजन किया है। व्याख्यान का विषय है – ” वैज्ञानिक दृष्टिकोण, लोकतंत्र और जन भागीदारी का सवाल” इसके मुख्य वक्ता हैं मध्यप्रदेश ‌ विज्ञान सभा एवं AIPSN के वरिष्ठ विज्ञान संचारक एस आर आजाद।


बदलते हालात में बढ़ती जिम्मेदारी
वैसे तो देश में शिक्षा एवं साइंस टेक्नोलॉजी की प्रगति के साथ लोगों में अंधविश्वास के मामले में पूर्व की अपेक्षा काफी फर्क आया है। पर कुरीति, पाखंड एवं विविध कर्मकांड के जरिए लोगों का शोषण – दोहन करने वाले परजीवी पुरोहित वर्ग येन-केन- प्रकारेण, कल-बल- छल से 21वीं सदी के मौजूदा दौर में भी इसे जारी रखना चाहता है। बदतर स्थिति यह है कि अपने राजनीतिक फायदे के लिए सत्ता व्यवस्था का संरक्षण एवं पूर्ण सहयोग भी उन्हें प्राप्त है।‌ देश में तर्कवादी आंदोलन पर बढ़ते हमले एवं तर्कवादी डॉ नरेन्द्र दाभोलकर, गोविंद पानसरे, प्रोफेसर डॉ एस एम कलबुर्गी, पत्रकार गौरी लंकेश आदि की नृशंस हत्या इसका प्रमाण है। देश के शिक्षा संस्थानों में भी संविधान सम्मत प्रगतिशील विचारों को रोकने का हर संभव प्रयास किया जा रहा है।


हिंदी भाषी राज्यों की चुनौतियां
वैसे तो यह पूरे देश की समस्या है पर हिंदी भाषी राज्यों में इसका प्रभाव कुछ अधिक ही दिखाई देता है। धर्म एवं जाति के नाम पर लोगों को भ्रमित करना, बरगलाना, नफरत फैलाना, विभाजित करना यहां अपेक्षाकृत अधिक आसान है। क्षेत्र में सामाजिक, तार्किक वैज्ञानिक जागरुकता की कमी एवं तर्कशील आंदोलन की कमजोरियों का फायदा उठाते हुए ठगी, लूट एवं पाखंड में आकंठ डूबी प्रतिगामी शक्तियां परंपरा के नाम पर धर्म से जुड़े भावनात्मक मुद्दे उभार कर यथास्थिति बनाए रखना चाहती हैं। वे रूढ़िवादी परंपराओं एवं मूढ़ मान्यताओं को न सिर्फ बचाने बल्कि आगे बढ़ाने का हर संभव प्रयास करती हैं। इसमें उन्हें सत्ता व्यवस्था का सहयोग व संरक्षण भी सहज ही प्राप्त हो जाता है।


अपना संवैधानिक कर्तव्य निभाएं
इस सिलसिले में उल्लेखनीय है कि भारतीय संविधान ने वैज्ञानिक मानसिकता, मानवतावाद सुधार एवं खोज की भावना के विकास को देश के नागरिकों का मौलिक कर्तव्य घोषित किया है।
संविधान का अनुच्छेद 51एच यह स्पष्ट कहता है –
” भारत के प्रत्येक नागरिक का यह मौलिक कर्तव्य होगा कि वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण, मानववाद और ज्ञानार्जन तथा सुधार की भावना का विकास करें ”
पर अब तक इसका अपेक्षित परिणाम सामने नहीं आया है।


वैश्वीकरण बाजारीकरण का प्रभाव
देश में पिछले कुछ वर्षों से तेज हुई वैश्वीकरण, उदारीकरण एवं बाजारीकरण की प्रक्रिया ने भी इसमें अपना भरपूर योगदान दिया है। लूट – मुनाफा आधारित इस व्यवस्था ने अपने धंधे के लिए रूढ़ परंपराओं एवं मूढ़ मान्यताओं का भी अपने हित में जमकर इस्तेमाल किया है। उन्होंने इसके लिए तेजी के बढ़ रहे तकनीकी ज्ञान का इस्तेमाल भी बखूबी किया है। वे अवैज्ञानिक सोच एवं अवांछित गतिविधियों को भी “वैज्ञानिक” बतला कर लोगों के सामने परोसने का हर संभव प्रयास करते हैं तथा बड़ी संख्या में लोग आसानी से उनके झांसे में आ भी जाते हैं तथा ठगी का शिकार होते हैं।


नई पीढ़ी, बच्चों को बचाएं
बच्चों में सहज ही खोजी प्रवृत्ति होती है। वे जिज्ञासा, जानने की ललक के जरिए ही दुनिया को जानते, समझते एवं सीखते हैं। सीखने-समझने की यही प्रक्रिया उन्हें आगे बढ़ाती है। वे इसके जरिए सतत नई नई चीजें जानते, सीखते समझते हैं तथा भविष्य में देश के जागरूक श्रेष्ठ नागरिक, शिक्षक, वैज्ञानिक आदि बनते हैं, नए आविष्कार करते हैं। पर उनके खोजी प्रवृत्ति एवं तार्किक क्षमता की बचपन में ही भ्रूणहत्या की जा रही है। उन्हें ‘जानना’ नहीं सिर्फ ‘मानना’ सिखाया जा रहा है। यह स्थिति किसी भी समाज एवं देश के लिए अच्छी नहीं कही जा सकती।
अत : आइए, राष्ट्रीय वैज्ञानिक चेतना दिवस पर हम संकल्प दोहराएं। विज्ञान को जन जन तक पहुंचाएं, संविधान सम्मत अंधविश्वास मुक्त, तर्कशील, विज्ञान परक, समतामूलक, विविधतापूर्ण, न्यायपूर्ण नया भारत बनाएं।

( डी एन एस आनंद पत्रकार एवं विज्ञान संचारक हैं तथा वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल के संपादक हैं )

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