आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी भारतीय प्रेस ने और हिन्दी पत्रकारिता ने देखे। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की। आने वाले वर्ष 2026 में हिन्दी पत्रकारिता 200 वर्षो की हो जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है।

आज 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता को 197 वर्ष हो जाएंगे। बता दें कि हर साल आज के दिन यानी 30 मई को हिन्दी पत्रकारिता दिवस मनाया जाता है। आज हम इस मौके पर आपको हिन्दी पत्रकारिता के आरंभ के बारे में बताने जा रहे हैं। वैसे तो हिन्दी पत्रकारिता कितनी साल पुरानी है यह कहना मुश्किल है, पर माना जाता है कि हिन्दी पत्रकारिता का उद्भव ‘उदन्त मार्तण्ड के साथ हुआ। आज ही के दिन साल 1826 में इस हिंदी भाषी अखबार का पहला प्रकाशन कोलकाता से शुरू हुआ। जानकारी दे दें कि उदन्त मार्तण्ड साप्ताहिक पत्रिका के रूप में शुरू हुआ था। यूपी के कानपुर जिले में जन्मे और पेशे से वकील पंडित जुगल किशोर शुक्ल इसके संपादक थे। जानकारी दें दे कि 1820 के युग में बंग्ला, उर्दू और कई भारतीय भाषाओं में पत्र प्रकाशित हो चुके थे। वहीं, 1819 प्रकाशित बंगाली दर्पण के कुछ हिस्से हिन्दी में भी प्रकाशित हुआ करते थे, लेकिन हिन्दी के पहले अखबार होने का गौरव ‘‘उदन्त मार्तण्ड’’ को प्राप्त है।

अंग्रेजों के खिलाफ खुलकर लिखता था 

‘उदन्त मार्तण्ड’ क्रांतिकारी अखबारों में से एक था। ये साप्ताहिक अखबार ईस्ट इंडिया कंपनी की दमनकारी नीतियों के खिलाफ खुलकर लिखता था। बता दें कि ये अखबार 8 पेज का होता था और ये हर मंगलवार को निकलता था। ईस्ट इंडिया कंपनी के खिलाफ खबरें छापने के चलते अंग्रेजी सरकार ने इस अखबार के प्रकाशन में अड़ंगे लगाना शुरू कर दिया था। फिर भी पंडित जुगल किशोर शुक्ल झुके नहीं, वे हर सप्ताह अखबार में और धारदार कलम से अंग्रेजों के खिलाफ लिखते।

पहले अंक की छपी थीं इतनी कॉपियां 

जानकारी के लिए बता दें कि ‘उदन्त मार्तण्ड’ के पहले अंक में 500 प्रतियां छापी गई थीं। उस समय इस साप्ताहिक अखबार के ज्यादा पाठक नहीं थे। इसका कारण था इसकी भाषा हिंदी होना, चूंकि ये अखबार कोलकाता से निकलता था, और वहां हिंदी भाषी कम थे इसलिए इसके पाठक न के बराबर थे। फिर भी पंडित जुगल किशोर इसे पाठकों तक पहुंचाने के कड़ी जद्दोजेहद करते थे इसके लिए वे इसे डाक से अन्य राज्यों में भेजने की कोशिश करते थे। लेकिन अंग्रेजी हुकुमत ने इस अखबार को डाक सुविधा से भी वंचिंत रखने में कोई कसर नहीं छोड़ी, जिस कारण अखबार को काफी परेशानियों का सामना करना पड़ा था। नतीजा ये रहा कि इस अखबार को 19 महीने बाद ही बंद करना पड़ा गया। पंडित जी की आर्थिक परेशानियों और अंग्रेजों के कानूनी अड़ंगों के चलते 19 दिसंबर 1827 में इस अखबार की प्रकाशन बंद हो गया।

30 मई हिन्दी पत्रकारिता दिवस

हिन्दी पत्रकारिता दिवस प्रत्येक वर्ष ‘‘30 मई’’ को मनाया जाता है। प्रथम हिन्दी समाचार पत्र के प्रकाशक पं. जुगल किशोर मूलतः कानपुर के निवासी थे। वे सिविल एवं राजस्व उच्च न्यायालय कलकत्ता में पहले कार्यवाहक रीडर तथा बाद में वकील बन गए।

राजा शिवप्रसाद के नेतृत्व में 1845 में काशी से हिन्दी पत्र ‘‘बनारस अखबार’’ का प्रकाशन हुआ, गोविन्द रघुनाथ इसके संपादक थे। 1854 में हिन्दी का प्रथम दैनिक समाचार पत्र ‘‘समाचार सुधावर्षण’’ का प्रकाशन भी कलकत्ता से हुआ, बाबू श्याम सुंदर सेन के संपादतत्व में यह पत्र प्रकाशित हुआ।

हिन्दी का एक और प्रमुख पत्र ‘‘कविवचनसुधा’’ का प्रकाशन भारतेन्दु हरीशचंद्र ने काशी से किया। 1907 में ‘‘अभ्युदय’’ पत्र साप्ताहित समाचार पत्र का प्रकाशन प्रयागराज (इलाहबाद) से मालवीय जी ने किया। 1910 में हिन्दी का एक प्रमुख पत्र ‘‘मर्यादा मासिक’’ का प्रकाशन कृष्णकांत मालवीय ने किया । कालांतर में हिन्दी के कई पत्र निकले परंतु खण्डवा से ‘‘प्रभा’’ (1913) माखनलाल चतुर्वेदी कानपुर से ‘‘प्रताप’’ (1913) गणेश शंकर विद्यार्थी, 1902 ‘‘समालोचक’’ जयपुर से चंद्रधर शर्मा तथा 1909 ‘‘इंदु काशी’’ (बनारस) अंबिका प्रसाद गुप्ता द्वारा प्रकाशित किए गए ।

1920 में गांधी जी का भारतीय राजनीति में प्रवेश हुआ। भारतीय इतिहास में 1920 से 1947 का समय गांधी युग के नाम से जाना जाता है। 1920 से 1947 तक की भारतीय पत्रकारिता के अधिकांश समाचार पत्र स्वतंत्रता आंदोलन के रंग में रंगे थे । 1920 में काशी बनारस से प्रकाशित समाचार पत्र ‘‘आज’’ का भारतीय पत्रकारिता में अपना अलग स्थान है । 5 अप्रैल 1920 को इसका प्रकाशन शिवप्रसाद गुप्त ने किया था।

 17 जनवरी 1920 को ‘‘कर्मवीर’’ का प्रकाशन माखनलाल चतुर्वेदी के संपादतत्व में जबलपुर से हुआ । इसके बाद अलग-अलग स्थानों से समाचार पत्र प्रकाशित हुए जिनमें प्रमुख 4 अप्रैल 1947 ‘‘नवभारत’’ तथा 2 अक्टूबर 1950 ‘‘हिन्दुस्तान’’ का नाम प्रमुख है। पहले यह पत्र साप्ताहिक था फिर दैनिक हो गया । 22 मार्च 1946 को इंदौर से ‘‘इंदौर समाचार’’ पत्र का प्रकाशन पुरूषोत्तम विजय ने प्रारंभ किया । 1947 को कानपुर से पूर्णचंद गुप्त ने ‘‘जागरण’’ का प्रकाशन किया। 1948 में डोरीलाल ने आगरा से ‘‘अमर उजाला’’ का प्रकाशन प्रारंभ किया। 1951 को नागपुर से ‘‘युगधर्म’’ प्रकाशित हुआ, 1964 में जालंधर से ‘‘पंजाब केसरी’’ का प्रकाशन लाला जगतनारायण ने किया।

1950 में टाइम्स ऑफ इंडिया समूह ने ‘‘धर्मयुग’’ का प्रकाशन बम्बई से प्रारंभ किया इसके संपादक इलाचंद्र जोशी थे। धर्मवीर भारतीय के संपादन में ‘‘धर्मयुग’’ ने देश में अच्छी लोकप्रियता हासिल की। 7 मार्च 1956 को ‘‘राजस्थान पत्रिका’’ का प्रकाशन जयपुर से हुआ। 1958 से ‘‘वीरप्रताप’’ पंजाब से प्रकाशित हुआ । 1958 में ‘‘दैनिक भास्कर’’ का प्रकाशन भोपाल से प्रारंभ हुआ। 21 फरवरी 1985 को ‘‘दिनमान’’ का प्रकाशन दिल्ली से प्रारंभ हुआ । 20 जनवरी 1964 को फिल्मी पत्रिका ‘‘माधुरी’’ का प्रकाशन मुम्बई से हुआ। 1964 ‘‘कांदम्बिनी’’, ‘‘टाइम्स ऑफ इंडिया’’ का प्रकाशन नई दिल्ली से हुआ। नवनीत, सारिका, सरिता, मुक्ता आदि का प्रकाशन हिन्दी जगत की प्रमुख पत्रिकाओं के प्रकाशन में दर्ज है।

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद की पत्रकारिता

स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद तीव्र गति से हिन्दी पत्रकारिता ने प्रगति की, भारत के समाचार पत्र पंजीयक के अनुसार भारत में सर्वाधिक समाचार पत्र हिन्दी भाषा में प्रकाशित हो रहे हैं । दूसरे स्थान पर अंग्रेजी भाषा के पत्र हैं। आजादी के बाद समाचार पत्रों की रीति एवं प्रकाशन में काफी परिवर्तन आया है। ‘‘ब्लैक एण्ड व्हाइट’’ प्रिंटिंग से मुद्रण तकनीक बहुरंगीय प्रिंटिंग में बदल गई। समाचार संकलन एवं संपादन के तरीकों में भी काफी परिवर्तन आया है। क्षेत्रीय और स्थानीय पत्रिका को समाचार पत्रों में अच्छा स्थान मिलने लगे।
समाचार पत्रों के प्रकाशन में बहुसंस्करण पद्धति का प्रचलन काफी तीव्र गति से फैला। फैक्स, मॉडम तथा इंटरनेट ने पत्रकारिता के व्यवसाय को काफी गति प्रदान की। समाचार पत्र-पत्रिकाओं में संपादक की जगह प्रबंधक का हस्तक्षेप बढ़ता गया। संपादकीय सामग्री (कंटेन्ट) में भी कई तरीके के बदलाव आए।

हिन्दी समाचार पत्र-पत्रिकाओं ने समाचारों के अतिरिक्त साहित्य, संस्कृति, धर्म, दर्शन, महिला, बाल साहित्य, फिल्म एवं कला, नाटक, रंगमंच, खेलकूद, ज्ञान विज्ञान, शिक्षा, स्वास्थ्य, समाज कल्याण, आयुर्वेदिक, योग, वाणिज्य, उद्योग, बीमा, बैंकिंग, कानून, कृषि, पशुपालन, संचार, ज्योतिष आदि के विविध विषयों पर पत्र-पत्रिकाओं में लेख विश्लेषण आदि प्रकाशित होने लगे। आजादी के बाद के पत्रकारिता के विकास में बड़े-बड़े शहरों के अलावा छोटे-छोटे नगरों में भी समाचार पत्र-पत्रिकाओं के प्रकाशन का सिलसिला जारी है।

वर्तमान में हिन्दी में अनेक पत्र-पत्रिकाओं का प्रकाशन हो रहा है, जिसमें नवभारत टाइम्स, दैनिक जागरण, हिन्दुस्तान, दैनिक भास्कर, अमर उजाला, देशबंधु, नवभारत, राष्ट्रीय सहारा, लोकमत, आज, स्वतंत्र भारत, जनसत्ता, हरीभूमि, राजस्थान पत्रिका, पंजाब केसरी, प्रभात खबर, रांची एक्सप्रेस, गांडीव आदि के नाम प्रमुख समाचार पत्रों में लिए जाते हैं। कभी सीमित संसाधनों में चलने वाली पत्र-पत्रिकाए आज अच्छी आर्थिक स्थिति में हैं, परंतु लघु एवं माध्यम समाचार पत्र पत्रिकाओं की स्थिति अभी भी चिंताजनक है ।

वर्तमान में हिन्दी की शीर्ष पत्रिकाओं में इंडिया टुडे, सामान्य ज्ञान दर्पण, प्रतियोगिता दर्पण, मेरी सहेली, बाल भास्कर पाठकों में काफी लोकप्रिय हैं। आज के दिन इस बात का उल्लेख नितांत आवश्यक है कि भारतीय स्वतंत्रता आंदोलन में हिन्दी एवं भाषायी पत्रकारिता का महत्वपूर्ण योगदान रहा है,  भारतीय पत्रकारिता स्वतंत्रता आंदोलन की साक्षी रही है।

आपातकाल और अघोषित आपातकाल भी भारतीय प्रेस ने और हिन्दी पत्रकारिता ने देखे। तमाम बाधाओं, प्रतिबंध और प्रतिकूल परिस्थितियों के बाद भी भारतीय पत्रकारिता ने अपनी विकास यात्रा तय की। आने वाले वर्ष 2026 में हिन्दी पत्रकारिता 200 वर्षो की हो जाएगी। भारतीय लोकतंत्र के संरक्षण और संवर्धन में पत्रकारिता, प्रिंट एवं इलेक्ट्रॉनिक का महत्वपूर्ण योगदान है ।

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