अनिल अश्वनी शर्मा
केंद्रीय वित्तमंत्री ने अपने बजट भाषण में इस बात की जानकारी दी है कि भारत की बालिकाएं और महिलाएं स्टेम शिक्षा (स्टेम जिसे साइंस, टेक्नोलॉजी, इंजीनियरिंग और मैथमेटिक्स के नाम से जाना जाता है) क्षेत्र में दुनिया में सबसे आगे हैं। और साथ ही यह भी बताया कि यह कार्यबल में महिलाओं की इस क्षेत्र में तेजी से बढ़ती भागीदारी को इंगित करता है। लेकिन वित्तमंत्री ने इसके आगे की बात नहीं बताई कि स्टेम शिक्षा में कहने के लिए तो भारत की महिलाओं की भागीदारी 43 फीसदी है लेकिन भारत के स्टेम क्षेत्र में उनकी नौकरियों की भागीदारी केवल 14 फीसदी है।
यानी स्टेम की पढ़ाई तो 43 फीसदी महिलाओं ने कर ली है लेकिन इनमें 14 फीसदी को ही (कुल शिक्षा से तीन गुना कम महिलाओं को) नौकारी मिल पाई है। ऐसे में वित्तमंत्री का यह कहना कहां तक उचित है कि देश के कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में तेजी से बढ़ी है। यही नहीं स्टेम में कार्यरत महिलाओं पर केली ग्लोबल वर्कफोर्स इनसाइट सर्वेक्षण में यह भी कहा गया है कि जिनको नौकरी मिली है, वे भी अपने जीवन के महत्वपूर्ण चरण में बच्चों के पालन-पोषण और घर की जिम्मेदारी आ जाने पर नौकरी छोड़ देती हैं।
यदि भारत में महिलाओं की स्टेम शिक्षा की तुलना विश्व के अन्य विकसित देशों से करें तो पता चलता है कि स्टेम विषयों में पुरुषों के मुकाबले महिलाओं की भागीदारी वैश्विक स्तर पर कम है। अमेरिका, फ्रांस, कनाडा, जर्मनी और यूके जैसे विकसित देशों के मुकाबले स्टेम विषयों में भारतीय महिला स्नातकों की संख्या अधिक है। विश्व बैंक द्वारा प्रकाशित जेंडर सांख्यिकी डेटा बैंक के अनुसार स्टेम विषयों में अमेरिका 34, यूके 38, जर्मनी 27 और फ्रांस 32 प्रतिशत जैसे विकसित देशों की तुलना में महिला स्नातकों की भागीदारी भारत में 43 प्रतिशत है। ध्यान रहे कि जलवायु परिवर्तन और भावी महामारियों के प्रभाव से निपटने और खाद्य सुरक्षा पक्की करने में स्टेम शिक्षा से पढ़े युवाओं की भागरीदारी अनुसंधान की दुनिया में खासी अहमियत रखते हैं।
वर्ल्ड इकोनॉमिक फोरम की फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2023 के अनुसार स्टेम की पढ़ाई विकासशील देशों के लिए बेहद जरूरी है क्योंकि इसी के बूते वे टेक्नोलॉजी के बदलावों के साथ कदमताल करते हुए दुनिया भर में प्रतिस्पर्धी बने रह सकते हैं। स्टेम की शिक्षा पर ध्यान देकर देश अपनी शोध क्षमता को मजबूत बना सकते हैं, नई टेक्नोलॉजी का निर्माण कर सकते हैं और समस्याओं के स्थानीय समाधान दे सकते हैं। इससे विकासशील देशों के लिए टेक्नोलॉजी और समाधानों के आयात पर निर्भरता कम होगी और ज्ञान का वैश्विक आदान-प्रदान आसान होगा।
भारत में स्टेम से जुड़ी नौकरियों की मांग में 2016 और 2021 के बीच 44 फीसद की बढ़ोतरी हुई और 2025 तक इसके 50 फीसद तक बढऩे की उम्मीद जताई गई है। फ्यूचर ऑफ जॉब्स रिपोर्ट 2023 कहती है कि भारत में शीर्ष उभरती नौकरियां एआइ और मशीन लर्निंग सरीखे क्षेत्रों में विकसित होंगी। 1.4 अरब आबादी और 27 की औसत उम्र के साथ भारत को अपने युवाओं को इस तरह प्रशिक्षित करना होगा कि वे जनसांख्यिकी लाभांश की सारी संभावनाओं का दोहन कर पाएं। ऐसा बजट में ज्यादा धनराशि रखने और स्टेम की पढ़ाई पर ज्यादा ध्यान देने की मांग करता है।
स्टेम की पढ़ाई तब और भी निर्णायक भूमिका अदा करेगी जब भारत सेवाओं की अगुआई वाली अर्थव्यवस्था से धीरे-धीरे मैन्युफैक्चरिंग आधारित अर्थव्यवस्था की ओर बढ़ने का आकांक्षी है। भारत में 43 फीसदी महिलाएं ग्रेजुएट स्टेम विषयों में हैं और कुल आंकड़ों के लिहाज से भारत वैश्विक अगुआ है। फिर भी स्टेम की दुनिया का विस्तार करने की तत्काल जरूरत है। केंद्र सरकार ने स्कूली स्तर पर अटल टिंकरिंग लैब्ज, ध्रुव योजना और राष्ट्रीय आविष्कार अभियान सरीखी पहल करके स्टेम को बढ़ावा देने की कोशिश की है।
इसके अलावा मेक इन इंडिया, डिजिटल इंडिया, स्टार्ट-अप इंडिया और स्किल इंडिया सरीखे कार्यक्रमों से स्टेम में ग्रेजुएट युवाओं की मांग और आपूर्ति दोनों में इजाफा होने की उम्मीद जताई गई है। मगर भारत को स्टेम की पढ़ाई में और अधिक निवेश करना होगा। 2003 की विज्ञान और प्रौद्योगिकी नीति में तय किया गया था कि 2007 तक भारत के जीडीपी का 2 फीसद अनुसंधान और विकास में खर्च किया जाएगा। यह लक्ष्य पूरा नहीं हुआ। यूनेस्को की साइंस रिपोर्ट कहती है कि भारत का औसत जीईआरडी (आरएंडडी पर सकल घरेलू व्यय) पिछले दो दशकों में उसके जीडीपी का महज 0.75 फीसद रहा है। यह ब्रिक्स (ब्राजील, रूस, भारत, चीन, दक्षिण अफ्रीका) देशों में सबसे कम जीईआरडी-जीडीपी अनुपात है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )