ललित मौर्या

रिसर्च में सामने आया है कि भेदभाव का सामना करने वाले लोगों में उम्र बढ़ने की जैविक प्रक्रिया तेज हो जाती है। जो बीमारियों और समय से पहले मृत्यु की वजह बन सकती है
क्या इंसानों के साथ किया जा रहा भेदभाव उनकी घटती उम्र की वजह बन सकता है? क्या भेदभाव सहने वाले के स्वास्थ्य को प्रभावित कर सकता है? इन प्रश्नों के उत्तर खोजते एक नए अध्ययन से पता चला है कि भेदभाव उम्र बढ़ने की जैविक प्रक्रियाओं को तेज कर सकता है। न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी के स्कूल ऑफ ग्लोबल पब्लिक हेल्थ के शोधकर्ताओं द्वारा किए इस नए अध्ययन से पता चला है कि आपसी भेदभाव शरीर में मॉलिक्यूलर यानी आणविक स्तर पर होने वाले बदलावों की वजह बन सकता है।

रिसर्च इस ओर इशारा करती है कि क्यों कुछ लोग उम्र से पहले ही बूढ़े और बीमार हो जाते हैं या फिर उनकी समय से पहले मौत हो जाती है। इस बारे में न्यूयॉर्क यूनिवर्सिटी में सहायक प्रोफेसर और अध्ययन से जुड़े वरिष्ठ शोधकर्ता एडोल्फो क्यूवास ने प्रेस विज्ञप्ति के हवाले से कहा है कि, “भेदभाव का अनुभव करने से उम्र बढ़ने की जैविक प्रक्रिया तेज हो जाती है। जो बीमारियों और समय से पहले मृत्यु की वजह बन सकती है।” उनके मुताबिक यह स्वास्थ्य संबंधी असमानताओं को बढ़ावा दे सकती है।

जर्नल ब्रेन, बिहेवियर, एंड इम्युनिटी-हेल्थ में प्रकाशित इस रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि अपनी पहचान जैसे नस्ल, लिंग, वजन या विकलांगता के कारण भेदभाव का सामना करने वाले लोगों में हृदय रोग, उच्च रक्तचाप और अवसाद जैसी स्वास्थ्य समस्याओं का जोखिम कहीं ज्यादा होता है।

हालांकि इन स्वास्थ्य समस्याओं के पीछे के सटीक जैविक कारण तो पूरी तरह से स्पष्ट नहीं हैं, लेकिन शरीर में लम्बे समय से चल रहा तनाव इसका एक संभावित कारक हो सकता है। इसके अतिरिक्त, रिसर्च से पता चला है कि भेदभाव का लगातार सामना करने से शरीर में उम्र बढ़ने की जैविक प्रक्रिया तेज हो सकती है।

यह समझने के लिए कि भेदभाव उम्र बढ़ने को कैसे प्रभावित करता है, शोधकर्ताओं ने डीएनए मिथाइलेशन के तीन उपायों की जांच की है, जो तनाव और उम्र बढ़ने के जैविक प्रभावों को दर्शाते हैं। अपने इस अध्ययन में समय के साथ लोगों के स्वास्थ्य और कल्याण पर क्या प्रभाव पड़ा, इसका विश्लेषण करने के लिए मिडलाइफ इन द यूनाइटेड स्टेट्स (एमआईडीयूएस) नामक अध्ययन के हिस्से के रूप में करीब 2,000 अमेरिकी वयस्कों से रक्त के नमूने एकत्र किए और उनसे उनकी प्रतिक्रिया जानी थी।

अध्ययन में शामिल इन लोगों से भेदभाव के सम्बन्ध में सवाल किए गए, जिनमें उनकी रोजमर्रा की जिंदगी में अनुभव किए जाने वाले भेदभाव के साथ-साथ, कार्यस्थल पर भेदभाव से जुड़ी गंभीर घटनाएं शामिल थी।

इनमें रोजमर्रा में अनुभव करने वाली भेदभाव की छिटपुट घटनाओं से लेकर भेदभाव की गंभीर घटनाएं जैसे पुलिस द्वारा दी जाने वाली शारीरिक प्रताड़ना आदि शामिल थी। वहीं कार्यस्थल पर अनुचित व्यवहार, कैरियर में विकास न होना और पहचान न मिलना जैसे भेदभाव शामिल थे।

क्यों उम्र से पहले बूढ़ा बना देता है भेदभाव, क्या है इसके पीछे का वैज्ञानिक कारण

रिसर्च के नतीजे दर्शाते हैं कि भेदभाव जैविक उम्र के तेजी से बढ़ने से जुड़ा था। जिन लोगों ने अधिक भेदभाव का सामना किया वो कम भेदभाव का सामना करने वालों की तुलना में जैविक रूप से तेजी से बूढ़े हुए। वहीं जिन्होंने रोजमर्रा की जिंदगी में हर दिन भेदभाव का सामना किया और वो जो भेदभाव की गंभीर घटनाओं का शिकार हुए, दोनों ही मामलों में जैविक उम्र बढ़ना का सिलसिला कहीं ज्यादा तेज था।

इसी तरह जिन लोगों ने काम के दौरान भेदभाव का सामना किया, उन्होंने भी तेजी से बढ़ती उम्र को अनुभव किया, हालांकि इसका प्रभाव तुलनात्मक रूप से कम गंभीर था।

इसकी गहराई से की गई जांच से पता चला है कि धूम्रपान और शरीर का वजन इस बात के करीब आधे के लिए जिम्मेवार हैं कि भेदभाव लोगों को तेजी से बूढ़ा क्यों बनाता है। इसका मतलब यह है कि तनाव महसूस करना, कोर्टिसोल के स्तर में वृद्धि या अच्छी नींद न लेना जैसी अन्य चीजें भी भेदभाव का सामना करने पर लोगों को तेजी से बूढ़ा बनाती हैं।

 

गौरतलब है कि शरीर में होने वाली क्रियाओं के पीछे किसी न किसी हॉर्मोन का हाथ होता है। उदाहरण के लिए एंडोर्फिन हॉर्मोन के कारण हमें खुशी का अहसास होता है। इसी तरह तनाव के लिए कोर्टिसोल हॉर्मोन जिम्मेवार होता है। इसे ‘स्ट्रेस हार्मोन’ भी कहते हैं। कहा भी जाता है कि तनाव के चलते इंसान समय से पहले बूढ़ा हो जाता है।

क्यूवास के मुताबिक लोग खुद की देखभाल कैसे करते हैं, यह उनके स्वास्थ्य से जुड़ा होता है। लेकिन लोग जल्दी बूढ़े क्यों हो जाते हैं, तनाव भी इसे कई तरह से प्रभावित करता है। रिसर्च में यह भी सामने आया है कि भेदभाव कैसे उम्र बढ़ने की रफ्तार को गति देता है, यह नस्ल के आधार पर भिन्न होता है। उदाहरण के लिए जिन अश्वेत प्रतिभागियों ने अधिक भेदभाव का अनुभव किया, उनमें अक्सर तेजी से जैविक उम्र बढ़ने की प्रवत्ति देखी गई।

दूसरी ओर, श्वेत प्रतिभागियों, जिन्होंने कुल मिलाकर कम भेदभाव का सामना करना पड़ा, लेकिन जब उन्होंने इसका अनुभव किया तो वे भेदभाव के प्रभावों के प्रति कहीं ज्यादा संवेदनशील थे।

शोधकर्ताओं के मुताबिक ऐसा शायद इसलिए था क्योंकि वे इस तरह के व्यवहार के आदी नहीं थे और इससे कैसे निपटा जाए उनके पास इसकी ज्यादा रणनीतियों नहीं थी। हालांकि यह अध्ययन अमेरिका में रहने वाले वयस्कों पर किए गए थे, लेकिन इसके निष्कर्ष भारत के मामले में भी सटीक बैठते हैं। जहां आज भी बड़ी आबादी किसी न किसी रूप में भेदभाव का शिकार बन रही है। ऐसे में हर कोई बेहतर जीवन व्यतीत कर सके और स्वास्थ्य के मामले में मौजूद असमानता को दूर किया जा सके, इसके लिए सभी प्रकार के भेदभावों से निपटना बेहद जरूरी है।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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