दयानिधि
एक नए शोध में कहा गया है कि कीटनाशकों के पौधों पर चिपकने के तरीके में सुधार करके इसे अधिक प्रभावी और पर्यावरण के अनुकूल बनाया जा सकता है। इसके लिए शोधकर्ताओं ने नैनोपेस्टिसाइड नामक एक नए कीटनाशक प्रणाली विकसित की है। टेक्सास ए एंड एम यूनिवर्सिटी के इंजीनियरिंग के शोधकर्ताओं द्वारा विकसित की गई ये छोटी तकनीकें कीटनाशकों के इस्तेमाल के तरीके को बदल सकती हैं।
शोधकर्ता ने शोध के हवाले से कहा, अमेरिका दुनिया भर में कृषि उत्पादन में अग्रणी है, फिर भी यह कीटनाशकों का उपयोग ऐसे तरीके से कर रहे हैं जो टिकाऊ नहीं है, जिसमें से एक बड़ा हिस्सा छूट जाता है। शोध दिखाता है कि कीटनाशक के सतही केमिकल विज्ञान को अनुकूलित करके, हम इन आवश्यक फसल सुरक्षा उपकरणों को अधिक कुशल बना सकते हैं।
टीम ने विभिन्न प्रकार के नैनोपेस्टीसाइड का अध्ययन किया, मिर्च के पत्तों पर उनकी चिपचिपाहट का परीक्षण किया, जो कई महत्वपूर्ण फसलों के लिए एक मॉडल के रूप में काम करता है। उन्होंने इस बात का पता लगाया कि नैनोपेस्टीसाइड पौधे पर कितनी अच्छी तरह चिपकता है।
नैनोपेस्टीसाइड सक्रिय कीटनाशक चीजों को शामिल करते हैं। इसे सीधे कीटों तक पहुंचाया जा सकता है, जिससे कीटों के अलावा अन्य को कम से कम नुकसान पहुंचता है। यह शोध यह समझने पर आधारति था कि ये नैनोपेस्टीसाइड पौधों की सतहों के साथ कैसे संपर्क करते हैं, जो उनके असर को बढ़ाने में में एक अहम कदम है। कीटनाशक फसलों को कीटों और बीमारियों से बचाने के लिए जरूरी हैं और उनके बिना, हम अपनी फसलों का एक बड़ा हिस्सा खो देंगे, जिसमें 70 से 80 फीसदी फल, 40 से 50 फीसदी सब्जियां और 20 से 30 फीसदी अनाज शामिल है।
कीटनाशकों के इस्तेमाल के मौजूदा तरीके असरदार नहीं हैं। छिड़काव किए गए कीटनाशकों में से 80 से 90 फीसदी से अधिक अपने लक्ष्य से पूरी तरह चूक जाते हैं और पर्यावरण में पहुंच जाते हैं जहां वे नुकसान पहुंचा सकते हैं। यह अपशिष्ट न केवल ग्रह के लिए खतरनाक है, बल्कि यह आर्थिक रूप से भी किफायती नहीं है। यह शोध सरफेस एंड इंटरफेस जर्नल में प्रकाशित किया गया है।
शोधकर्ताओं का मानना है कि नैनोपेस्टीसाइड का उपयोग करके, वह पौधे की सतह को बेहतर तरीके से शामिल करके इसके असर को बढ़ा सकते हैं। शोधकर्ताओं की टीम का लक्ष्य विभिन्न कीटनाशकों को लेकर उनके उपयोग करके, उनके गुणों में सुधार करके इसे हासिल करना है जो पौधे की सतह की विशेषताओं पर असर डालने के लिए सबसे उपयुक्त हैं। कुल मिलाकर, शोध का लक्ष्य अधिक कुशल और पर्यावरण के अनुकूल कीटनाशक फॉर्मूलेशन का तरीका खोजना है जो कृषि के तरीकों और दुनिया भर में खाद्य सुरक्षा के लिए टिकाऊ हो।
यह शोध नैनोपेस्टीसाइड पणाली को अनुकूलित करके इसके असर को बढ़ाने, पर्यावरण प्रदूषण को कम करने और अन्य जीवों और लोगों के स्वास्थ्य पर प्रभाव को कम करने के लिए टिकाऊ कृषि में एक बड़ी चुनौती से निपटने के लिए अहम है। नीम के बीज एक प्राकृतिक रूप से पाया जाने वाला कीटनाशक है जो नीम के पेड़ के बीजों से आता है और इसका उपयोग फसलों पर कीटों और बीमारियों को नियंत्रित करने के लिए किया जाता है।
नीम ज्यादातर भारत में उगता है, इसके बीज से निकलने वाला अर्क जैविक कीटनाशक प्रबंधन में अहम भूमिका निभाता है। जैविक कीटनाशक इस फॉर्मूलेशन का उपयोग करते हैं। शोध के अनुसार, विभिन्न प्रकार के कीटनाशकों में से, नैनो कीटनाशकों ने एक नई फसल सुरक्षा रणनीति के रूप में काम किया है जो कृषि तकनीकी, नैनो तकनीक और सामग्री रसायन विज्ञान पर निर्भर करता है।
शोधकर्ता ने शोध में कहा कि इस खोज का कृषि के भविष्य पर गहरा प्रभाव है। नैनो कीटनाशकों की सतही रसायन विज्ञान को अनुकूलित करके, वैज्ञानिक उनके असर को अनुकूलित कर सकते हैं, यह सुनिश्चित करते हुए कि अधिक कीटनाशक कीटों को शिकार बनाए और पर्यावरण को कम प्रदूषित करे।
शोधकर्ता ने कहा, किसान या उद्योग जो कीटनाशकों का उपयोग कर रहे हैं, वे इस शोध के महत्व को स्पष्ट रूप से समझेंगे। सामान्य तौर पर कीटनाशकों को पर्यावरण के लिए बुरा माना जाता है, नीम के बीज के अर्क का उपयोग करने से कीटों से फसल की सुरक्षा सुनिश्चित होती है।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )