विकास शर्मा
आमतौर पर देखा जाता है कि मानसून में दिखने वाले बहुत सारे कीड़े सर्दियों में गायब हो जाते हैं. वैज्ञानिकों का कहना है कि इनमें से कुछ कीड़े दूर चले जाते हैं तो कुछ खुद को बचाने के लिए खास तरह की प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. वहीं कुछ केवल जमीन के अंदर चले जाते हैं.
भारत में मानसून के मौसम में अचानक ही हमारे आसपास कीट पतंगों (Insects) की तदाद बढ़ जाती है. लेकिन जैसे ही ये मौसम जाता है और सर्दी का मौसम (Winter) आता है तो ये गायब होने लगते हैं. ऐसा भी नहीं होता है कि मौसम बदलने से अचानक मरने लगें. लेकिन ये अचानक ही दिखना बंद हो जाते हैं. तो फिर ये चले कहां जाते हैं? क्या ये कहीं दूर चले जाते हैं या फिर ये मेंढकों की तरह जमीन के अंदर छिप जाते हैं. आइए जानते है कि इस बारे में क्या कहता है विज्ञान.
जानवर अपनाते हैं कई तरीके
अधिकांश जीव तापमान के ज्यादा बदलाव को सहन नहीं कर पाते हैं. ऐसे में सर्दी के मौसम में तापमान कम होने पर ठंड से निपटने के लिए जानवर अलग अलग तरह के तरीके अपनाते हैं. इंसान गर्म कपड़े पहनते हैं, अपने घरों में अलाव, हीटर जलाते हैं, गर्मी पैदा करने वाली चीजें खाते हैं. वहीं दूसरे जानवर भी अलग-अलग तरह के उपाय अपनाते हैं. कई जानवर हाइबरनेशन की प्रक्रिया का इस्तेमाल करते हैं. यह एक गहरी नींद की खास प्रक्रिया है जिसमें जीव की मेटाबॉलिज्म जैसी बहुत सारी जैविक प्रक्रियाएं भी बहुत ही धीमी हो जाती हैं जिससे उसके शरीर को ही बहुत ही कम ऊर्जा और भोजन की जरूरत पड़े.
कीड़े क्या करते हैं फिर
लेकिन कीड़े ऐसा नहीं करते हैं. बर्मिंघम विश्वविद्यालय के इनवर्टिबरेट जीवविज्ञानी स्कॉट हेवर्ड का कहना है कि या तो कीड़े हवा में ही दूर निकल जाते हैं यानी वे विस्थापित हो जाते या फिर वे सो जाते हैं, सुप्त हो जाते हैं. असल में अधिकांश सुप्त अवस्था में चले जाते हैं.
कीड़ों की खास प्रक्रिया
कीड़ों की हाइबरनेट होने की अपनी अलग ही तरह की प्रक्रिया है जिसे वैज्ञानिक डायपॉज कहते हैं. हाइबरनेशन से मिलती जुलती इस प्रक्रिया में कीड़े ठंड में एक तरह से छुपने की जगह खोज लेते हैं. वे जमीन के नीचे ही कहीं छिप जाते हैं जिससे ठंड का सीधा असर उन पर ना हो सके. साफ है कि सर्दियों में आप जिस मैदान पर चलते हैं उसके नीचे बहुत सारे कीड़े छिपे होते हैं. कई बार वे किसी पेड़ के तने या फिर किसी चट्टान के नीचे भी छिप जाते हैं.
एक तरीका ये भी
लेकिन ऐसा सारे कीड़ों के साथ नहीं होता है, कई कीड़े तो ठंड़ सहन करने में बढ़िया साबित हुए हैं और वे पूरे मौसम में किसानों और उनकी फसलों को परेशान करते देखे गए हैं. अध्ययन बताते हैं कि बोरर लार्वा -40 डिग्री के तापमान में भी कुछ मिनटों तक जिंदा रह सकते हैं. कई स्थितियों में तो उनके शरीर के अंदर (कोशिकाओं में नहीं) पानी जम जाने पर भी जिंदा रहते हैं.
ज्यादा शुगर भी बचाती है उन्हें
वहीं कुछ कीड़ों में ना जमने का हुनर होता है. अंटार्कटिका में ना उड़ने वाले अंटार्कटिक मिज अपनी कोशिकाओं में बहुत ही अधिक शुगर पैदा कर लेते हैं जिससे उनके अंदर तरल पदार्थों का जमाव बिंदु कम हो जाता है. इससे ठंड से बचे रहने में मदद मिलती है. इसके अलावा मिज में यह हुनर भी होता की आसपास के मिट्टी जम जाने पर वे उनकी मदद से शरीर का सारा पानी बाहर निकाल देते हैं, जिससे वे कभी जम ही नहीं पाते हैं. इसके अलावा आर्कटिक ऊनी बियर मॉथ अपनी जीवन का 90 फीसदी हिस्सा जमी हुई अवस्था में गुजारता है. ये ऐसा तरल पदार्थ निकालते हैं जो गहरी ठंड में जमता नहीं है.
लेकिन अधिकांश कीड़े सहनशील ही होते हैं खास तौर से जो बर्फीले इलाकों में नहीं रहते हैं. वे बस ठंड के मौसम में सुस्त हो जाते हैं. वहीं जो कीट पतंगे ठंड सहन ही नहीं कर सकते हैं, वे केवल भमध्य रेखा की ओर चले जाते हैं जहां ठंड के मौसम में उन्हें पर्याप्त गर्मी मिल जाते हैं. मोनार्क तितली इसी की मिसाल हैं.