ललित मौर्या

वैज्ञानिक हमारे समाज में महत्वपूर्ण भूमिका रखते हैं। बात चाहे कोरोना जैसी बीमारियों से निपटने के लिए नई दवाओं की खोज की हो या जलवायु परिवर्तन से निपटने के उपायों की या ऐसी तकनीकों की जो हमारी रोजमर्रा की जरूरतों को आसान बनाती हैं, यह वैज्ञानिक ही हैं जो इन्हें साकार करते हैं। लेकिन क्या आम जनता भी विज्ञान और वैज्ञानिकों पर भरोसा करती है, जो हमारे भविष्य को आकार दे रहे हैं?

इन्हीं सवालों के जबाव ढूंढने के लिए शोधकर्ताओं ने भारत सहित 68 देशों में आम लोगों पर एक सर्वेक्षण किया है। इस सर्वे के नतीजे दर्शाते हैं कि दुनिया के अधिकांश लोग अब भी वैज्ञानिकों पर भरोसा करते हैं। हालांकि अलग-अलग देशों में यह भरोसा कहीं कम तो कहीं ज्यादा है।

गौरतलब है कि हाल के वर्षों में इस बात को लेकर चिंताएं बढ़ गई कि आम जनता का विज्ञान और वैज्ञानिकों पर भरोसा दरक रहा है। हालांकि अंतराष्ट्रीय जर्नल  नेचर ह्यूमन बिहेवियर में प्रकशित नए अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि यह पूरी तरह सच नहीं है और अधिकांश लोग अब भी वैज्ञानिकों पर भरोसा करते हैं। इतना ही नहीं लोगों का मानना है कि वैज्ञानिकों को समाज और नीति निर्माण में ज्यादा से ज्यादा सक्रिय भूमिका निभानी चाहिए।

इस अध्ययन में भारत के लोगों से भी उनकी राय ली गई है, मिस्र के बाद 68 देशों में भारत को वैज्ञानिकों पर भरोसे के मामले में दूसरे पायदान पर रखा गया है। इस अध्ययन में भारत को ‘मध्यम से उच्च भरोसे” की श्रेणी वाले देशों में रखा गया है। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि आमतौर पर भारतीय वैज्ञानिकों की काबिलियत और समाज कल्याण में उनके योगदान को सकारात्मक रूप से देखते हैं। लेकिन यह भी सच है कि शिक्षा, आय और शहरी-ग्रामीण विभाजन जैसे कारक भी लोगों के भरोसे को प्रभावित करते हैं। अध्ययन इस बात को भी दर्शाता है कि विज्ञान के प्रति भारतीयों की मजबूत आस्था है।

यह अध्ययन हार्वर्ड यूनिवर्सिटी की विक्टोरिया कोलोग्ना और ज्यूरिख यूनिवर्सिटी के नील्स जी मेडे के नेतृत्व में 169 संस्थानों के 241 शोधकर्ताओं की एक अंतरराष्ट्रीय टीम द्वारा किया है। इसमें बाथ विश्वविद्यालय के विशेषज्ञ भी शामिल थे।  इस सर्वेक्षण में शोधकर्ताओं ने 71,922 लोगों से उनकी राय ली है।

सर्वेक्षण के जो नतीजे सामने आए हैं उनसे पता चला है कि अधिकांश देशों में ज्यादातर लोग वैज्ञानिकों पर विश्वास करते हैं। सर्वे में औसतन लोगों ने वैज्ञानिकों को पांच में से 3.62 अंक दिए हैं। यह दर्शाता है कि अभी भी वैज्ञानिकों पर भरोसा कम नहीं हुआ है। वहीं ऐसा कोई भी देश नहीं था, जहां वैज्ञानिकों पर भरोसा बहुत कम हो। लोग वैज्ञानिकों की काबिलियत पर सबसे ज्यादा भरोसा करते हैं।

विज्ञान पर बढ़ा विश्वास, लेकिन कुछ बातों पर बने हुए हैं मतभेद

78 फीसदी लोगों ने माना कि वैज्ञानिक महत्वपूर्ण शोध करने में सक्षम हैं। वहीं 57 फीसदी लोग वैज्ञानिकों को ईमानदार मानते हैं। इसी तरह 56 फीसदी का विचार है कि वैज्ञानिक समाज की भलाई के बारे में सोचते हैं। हालांकि, 42 फीसदी लोग ऐसे भी हैं, जिन्हें लगता है कि वैज्ञानिक दूसरों की बातों पर ध्यान देते हैं।

इसी तरह ज्यादातर (83 फीसदी) लोगों का मानना है कि वैज्ञानिकों को अपना काम जनता के साथ साझा करना चाहिए। हालांकि 23 फीसदी लोगों का मानना ​​है कि वैज्ञानिकों को विशिष्ट नीतियों को बढ़ावा देने से बचना चाहिए, जबकि 52 फीसदी का मानना ​​है कि वैज्ञानिकों को नीति निर्माण में बड़ी भूमिका निभानी चाहिए।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि डेनमार्क, फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों में वैज्ञानिकों पर भरोसा कहीं ज्यादा है। डेनमार्क के लोग वैज्ञानिकों की ईमानदारी और क्षमता पर विश्वास करते हैं, वहीं फिनलैंड में पारदर्शिता और स्वीडन में प्रमाण-आधारित नीति निर्माण को प्राथमिकता दी है।

अध्ययन में यह भी सामने आया है कि डेनमार्क, फिनलैंड और स्वीडन जैसे देशों में वैज्ञानिकों पर भरोसा कहीं ज्यादा है। डेनमार्क के लोग वैज्ञानिकों की ईमानदारी और क्षमता पर विश्वास करते हैं, वहीं फिनलैंड में पारदर्शिता और स्वीडन में प्रमाण-आधारित नीति निर्माण को प्राथमिकता दी है। इसी तरह जर्मनी में इनोवेशन को लेकर लोगों का सकारात्मक दृष्टिकोण है। कनाडा में वैज्ञानिकों को दयालु समझा जाता है। वहीं ऑस्ट्रेलिया में वैज्ञानिक शोधों पर भरोसा काफी मजबूत है। दूसरी तरफ रूस और कई पूर्व सोवियत देशों जैसे कजाकिस्तान में वैज्ञानिकों पर भरोसा अपेक्षाकृत कम देखा गया है।

गौरतलब है कि इस लिस्ट में जहां मिस्र शीर्ष पर है, उसके बाद भारत, नाइजीरिया, केन्या और ऑस्ट्रेलिया को रखा गया है। इसी तरह अमेरिका को बारहवें जबकि ब्रिटेन को 15वें स्थान पर रखा गया है। वहीं इन 68 देशों में अल्बानिया सबसे निचले पायदान पर है। इसी तरह कजाकिस्तान 67वें, बोलीविया 66वें, रूस 65वें और इथियोपिया 64वें पायदान पर है। इसी तरह महिलाओं और बुजुर्गों का वैज्ञानिकों पर भरोसा पुरुषों और युवाओं से कहीं ज्यादा है। इसके साथ ही शहरी, शिक्षित और आर्थिक रूप से समृद्ध लोग वैज्ञानिकों पर अधिक विश्वास करते हैं।

दिलचस्प बात यह है कि उत्तरी अमेरिका और यूरोप के कुछ हिस्सों में रूढ़िवादी राजनीतिक रुझान विज्ञान पर कम भरोसे से जुड़ा है। हालांकि यह पैटर्न वैश्विक स्तर पर नहीं है, जो दर्शाता है कि राजनीतिक नेतृत्व विभिन्न क्षेत्रों में इस तरह के दृष्टिकोण को प्रभावित कर सकता है।

निष्कर्ष कुछ चिंताजनक पहलुओं को भी उजागर करते हैं। वैश्विक स्तर पर महज 42 फीसदी लोग मानते हैं कि वैज्ञानिक दूसरों के विचारों पर ध्यान देते हैं। कुछ लोगों को यह भी लगता है कि वैज्ञानिक प्राथमिकताएं हमेशा उनकी प्राथमिकताओं से मेल नहीं खाती।

ऐसे में यदि लोग यह महसूस करते हैं कि वैज्ञानिक उनकी समस्याओं और प्राथमिकताओं पर ध्यान नहीं दे रहे, तो उनका भरोसा कमजोर हो सकता है। इस सर्वे में शामिल लोगों ने स्वास्थ्य, ऊर्जा समाधान और गरीबी उन्मूलन पर केंद्रित शोधों को बहुत महत्व दिया है। दूसरी तरफ रक्षा और सैन्य प्रौद्योगिकी के विकास पर शोध को कम प्राथमिकता दी गई। वास्तव में, सर्वे में शामिल लोगों को लगता है कि विज्ञान रक्षा और सैन्य प्रौद्योगिकी के विकास पर कहीं ज्यादा ध्यान दे रहा है।

अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं लोगों का वैज्ञानिकों पर भरोसा मजबूत है, फिर भी इसे बनाए रखने के लिए कुछ चुनौतियां हैं। ऐसे में इस भरोसे को कायम रखने के लिए शोधकर्ताओं ने सिफारिश की है कि वैज्ञानिकों से बात करनी चाहिए और उनकी राय लेनी चाहिए। उनका यह भी मानना ​​है कि वैज्ञानिकों को पश्चिमी देशों में रूढ़िवादी समूहों से बात करने की कोशिश करनी चाहिए और यह सुनिश्चित करना चाहिए कि उनका काम लोगों की दिलचस्पी से मेल खाता हो।

       (‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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