नारी मुक्ति गीत
तू खुद को बदल
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दरिया की कसम, मौजों की कसम,
ये जालिम जमाना बदलेगा।
तू खुद को बदल, तू खुद को बदल
तब ही तो जमाना बदलेगा।
दरिया की कसम …
तू चुप रहकर जो सहती रही,
तो क्या ये जमाना बदलेगा।
तू बोलेगी, मुंह खोलेगी,
तब ही तो जमाना बदलेगा।
दरिया की कसम …
दस्तूर पुराने सदियों के,
ये आए कहां से, क्यों आए,
कुछ तो सोचो, कुछ तो समझो,
ये क्यों तुमने हैं अपनाए।
दरिया की कसम …
ये पर्दा तुम्हारा कैसा है ,
क्या ये मजहब का हिस्सा है।
कैसा मजहब किस का पर्दा,
ये सब मर्दों का किस्सा है।
दरिया की कसम …
आवाज उठा कदमों को मिला,
रफ्तार जरा कुछ और बढ़ा
उत्तर से उठो, दक्षिण से उठो,
पूरब से उठो, पश्चिम से उठो।
फिर सारा जमाना बदलेगा,
दरिया की कसम …
(साम्या पत्रिका से साभार)