जब 1947 में आजाद होने के बाद भारत (India) को लगभग शून्य से ही राष्ट्र का निर्माण करना था. 1950 में भारत में बहुत सारी प्रक्रियाओं के साथ सांख्यिकीय आंकड़ों की को जमा करने के प्रणाली शुरू करने की भी बहुत बड़ी जरूरत थी. देश के विकास के योजनाओं के नियोजन करने के लिए पहले से ही कुछ जानकारियों की जरूरत होती है. ये जानकारी सांख्यिकीय आंकड़ों के तौर पर जमा होते हैं और भविष्य में उपयोग लाए जाते हैं. इसी महत्व को रेखांकित करने के लिए देश में हर साल 29 जून को भारत में सांख्यिकीय विज्ञान के जनक प्रशांत चंद्र महालनोबिस की जन्मतिथि को राष्ट्रीय सांख्यिकी दिवस (National Statistics Day 2022) मनाया जाता है. देश के महान वैज्ञानिक एवं सांख्यिकीविद पी सी महालनोविस का वर्तमान झारखंड के गिरिडीह से गहरा नाता था, जहां उनका घर था तथा यदाकदा यहां आया करते थे।
कई अहम स्थापनाएं
प्रशांत चंद्र महालनोबिस या पीसी महालनोबिस पश्चिम बंगाल के भारतीय वैज्ञानिक और सांख्यिकीविद् थे. उन्हें आजाद भारत के पहले योजन आयोग के सदस्य और महालनोबिस दूरी नाम की सांख्यिकीय मापन के ज्यादा जाना जाता है. उन्होंने 1950 में भारतीय नमूना सर्वेक्षण, केंद्रीय सांख्यिकी संगठन और भारतीय सांख्यिकी संस्थान की स्थापना भी की थी.
महान शिक्षकों के छात्र
महालनोबिस का जन्म 29 जून 1893 को बंगाल प्रेसिडेंसी के कलकत्ता में हुआ था. कोलकाता में उनका शुरुआती शिक्षा हुआ जहां कलकत्ता यूनिवर्सिटी के प्रेसिंडेंसी कॉलेज में उन्हें जगदीश चंद्र बसु और प्रफुल्ल चंद्र रे जैसे शिक्षक मिले. मेघनाथ साहा और सुभाषचंद्र बोस कॉलेज में उनके जूनियर थे. भौतिकी में स्नातक की डिग्री पाने के बाद वे उच्च शिक्षा के लिए इंग्लैंड रवाना हो गए.
इंग्लैंड में पढ़ाई
इंग्लैंड में उन्होंने कैम्ब्रिज के किंग्स कॉलेज में पढ़ाई की जहां उनकी मुलाकात भारत के महान गणितज्ञ श्रीनिवास रामानुजन से भी हुई थी. भारत में कुछ दिन लौटने के बाद महालनोबिस फिर इंग्लैंड लौटे जहां उन्हें सांख्यिकीय जर्नल बायोमेट्रिका से उनका परिचय हुआ जिससे वे बहुत प्रभावित हुए और उसकी प्रतियों का पूरा सेट भारत ले आए.
सांख्यिकी में रुचि
महालनोबिस ने मौसमविज्ञान और मानवविज्ञान के समस्याओं में सांख्यिकी की अहम भूमिका की खोज की और उन पर काम भी करने लगे. कोलकाता में उनके कई साथियों ने सांख्यिकी में रुचि लेने गए और उन्होंने अनौपचारिक सांख्यिकी प्रयोगशाला की स्थापना की. 1931 में उन्होंने अपने भारतीय सांख्यिकी संस्थाना की स्थापना के लिए अथक प्रयास किए और अप्रैल 1932 में उसका औपचारिक पंजीयन भी करा लिया.
महालनोबिस दूरी
महालनोबिस के योगदान में सबसे प्रमुख महालनोबिस दूरी है. यह खास तरह का मापन होता है जिसमें बहुत आयामों के मापन में किसी बिंदु का वितरण में अपसारण मापा जाता है. इसे महालनोबिस ने साल 1930 में सबसे पहले बताया था. उन्होंने पश्चिमी देशों के कई सांख्यिकीय अध्ययनों में जातिगत आंकड़ों के उपयोग में खामियां उजागर की थीं.
मानवविज्ञान और नमूने सर्वेक्षण
महालनोबिस ने भौतिक मानवविज्ञान में विशेष रुचि दिखाई खोपड़ी के सटीक मापन के लिए उन्होंने प्रोफाइलोस्कोप नाम का विशेष उपकरण भी विकसित किया. उनका सबसे बड़ा योगदान विशाल पैमाने पर किए जाने वाले नमूने सर्वेक्षणों से संबंधित था. उनहोंने पायलट सर्वे की अवधारणा का परिचय दिया और नमूनों की पद्धतियों के उपयोगिता की वकलात की.
17 दिसंबर, 1931 को प्रोफेसर प्रशान्त चन्द्र महालनोबिस ने कोलकाता में ‘भारतीय सांख्यिकी संस्थान’ की स्थापना की। आज कोलकाता के अलावा इस संस्थान की शाखाएं दिल्ली, बंगलूरु, हैदराबाद, पुणे, कोयंबटूर, चेन्नई, गिरिडीह सहित देश के दस स्थानों में हैं। संस्थान का मुख्यालय कोलकाता है, जहां मुख्य रूप से सांख्यिकी की पढ़ाई होती है। वर्ष 1931 से मृत्यु तक वह भारतीय सांख्यिकी संस्थान के निदेशक और सचिव बने रहे। अनेक राष्ट्रीय एवं अंतरराष्ट्रीय पुरस्कारों से सम्मानित महालनोबिस वर्ष 1945 में रॉयल सोसाइटी, लंदन के ‘फेलो’ भी चुने गए। भारत सरकार ने भी उन्हें पद्म विभूषण से सम्मानित किया। 28 जून, 1972 को प्रो. प्रशांत चंद्र महालनोबिस का निधन हो गया।
दरअसल प्रशांत चन्द्र महालनोबिस भारतीय वैज्ञानिकों में एक बड़ा नाम है . भौतिकशास्त्र से अपना सफ़र शुरू कर साँख्यिकी और मानव विज्ञान तथा मौसम विज्ञान में साँख्यिकी का इस्तेमाल करने वाले, महालनोबिस डिस्टेंस के लिए मशहूर, इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ स्टैटिस्टिक्स के संस्थापक, स्वतंत्र भारत के प्रथम योजना आयोग के सदस्य और बहुत सारे पुरस्कारों से सम्मानित, साँख्यिकीविद् महालनोबिस का विज्ञान के क्षेत्र में योगदान प्रेरणादायक और अद्वितीय है. हम उन्हें आज के दिन ससम्मान याद करते हैं और उनको भावभीनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं.
महालनोबिस का झारखण्ड से रिश्ता अटूट है . झारखण्ड के गिरिडीह शहर में उनके निवास की गवाही उनका घर आज भी देता है. उनका यह घर राम कृष्ण महिला काॅलेज, गिरिडीह के परिसर में मौजूद है. काॅलेज ने इसे धरोहर के रूप में सुरक्षित रखा है और इसमें काॅलेज का मनोविज्ञान अवस्थित है. यह ऐसी धरोहर है जिसे सहेज कर रखने तथा वैज्ञानिक गतिविधियों के केन्द्र के रूप में विकसित करने की ज़रूरत है.