केंद्र सरकार 1 जुलाई से नए लेबर कोड लागू कर सकती है। यदि ऐसा होता है तो कर्मचारियों को रोजाना 12 घंटे तक काम करना पड़ सकता है। हालांकि, कर्मचारियों को सप्ताह में 48 घंटे ही काम करना होगा, यानी अगर वो 1 दिन में 12 घंटे काम करते हैं तो उन्हें सप्ताह में केवल चार दिन काम करना होगा। 44 सेंट्रल लेबर एक्ट को मिलाकर ये 4 नए लेबर कोड तैयार किए गए हैं। कई कंपनियां इसकी तैयारी कर रही हैं। 

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अमेरिकी एचआर कन्सल्टेंसी फर्म क्वाल्ट्रिक्स ने यह सर्वे किया है। इसके मुताबिक, भारत में कम से कम 62% फुल-टाइम एम्पलॉयी एक लचीले वर्क रुटीन के पक्ष में हैं। लगभग 86% लोगों का मानना है कि 4-दिन के वर्क वीक से उन्हें काम और जीवन के बीच बेहतर संतुलन बनाने में मदद मिलेगी। इन लोगों का मानना है कि इससे यह उनकी प्रोडक्टिविटी में भी सुधार कर सकता है और मानसिक शांति पर सकारात्मक प्रभाव डाल सकता है।

77% लोग काम के लंबे समय पर चिंतित
सर्वे में शामिल 77% लोगों ने 4-दिन के काम वाले शेड्यूल के साथ कुछ समस्याएं भी गिनाई हैं। वह लंबे समय तक काम करने को लेकर चिंतित हैं। कुछ लोगों का मानना है कि यह लोगों को सुस्त बना देगा, क्योंकि फ्राइडे सिंड्रोम गुरुवार दोपहर से ही शुरू हो सकता है।

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नया ट्रेंड कंपनी के प्रदर्शन को प्रभावित करेगा
सर्वे में पता चला है कि कई लोग इस बात से चिंतित हैं कि ग्राहकों की निराशा बढ़ सकती है। वहीं, 62% इस बात से चिंतित हैं कि यह यह नया ट्रेंड कंपनी के प्रदर्शन को किस तरह प्रभावित करेगा। एचआर एक्सपर्ट वरदा पेंडसे कहती हैं कि काम के लिए 8-9 घंटे ठीक हैं, लेकिन एक बार यह समय 12 घंटे हो गया तो चुनौतीपूर्ण हो जाएगा।

परफॉर्मेंस को काम के घंटों-दिन के बजाय रिजल्ट से मापा जाए
सर्वे में ज्यादातर ने कहा कि रिमोट वर्क व्यक्ति के मानसिक स्वास्थ्य पर निगेटिव और पॉजिटिव दोनों प्रभाव डालता है। इसके समाधान के रूप में 88% लोगों ने कहा, वे एक नए कामकाजी मॉडल के समर्थन में हैं जिसमें परफॉर्मेंस को काम के घंटों और दिन के बजाय रिजल्ट से मापा जाए। इस तरह काम करना चार दिन के वर्क वीक में तब्दील हो सकता है।

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सोशल सिक्योरिटी कोड
इस कोड के तहत ESIC और EPDO की सुविधाओं को बढ़ाया गया है। इस कोड के लागू होने के बाद असंगठित क्षेत्र में काम करने वाले वर्कर्स, गिग्स वर्कर्स, प्लेटफॉर्म वर्कर्स को भी ESIC की सुविधा मिलेगी। इसके अलावा किसी भी कर्मचारी को ग्रेच्युटी पाने के लिए पांच साल का इंतजार नहीं करना होगा।

इसके अलावा बेसिक सैलरी कुल वेतन का 50% या अधिक होना चाहिए। इससे ज्यादातर कर्मचारियों की वेतन का स्ट्रक्चर बदल जाएगा, बेसिक सैलरी बढ़ने से PF और ग्रेच्युटी का पैसा ज्यादा पहले से ज्यादा कटेगा। PF बेसिक सैलरी पर आधारित होता है। PF बढ़ने पर टेक-होम या हाथ में आने वाली सैलरी कम हो जाएगी।

ऑक्यूपेशनल सेफ्टी, हेल्थ ऐंड वर्किंग कंडीशन कोड
इस कोड में लीव पॉलिसी और सेफ एन्वायर्नमेंट तैयार करने की कोशिश की गई है। इस कोड के लागू होने के बाद 240 के बजाय 180 दिन काम के बाद ही लेबर छुट्टी पाने की हकदार बन जाएगी। इसके अलावा किसी कर्मचारी को कार्यस्थल पर चोट लगने पर कम से कम 50% मुआवजा मिलेगा। इसमें 1 सप्ताह में अधिकतम 48 घंटे काम का भी प्रावधान शामिल है। यानी 12 घंटे की शिफ्ट वालों को सप्ताह में 4 दिन काम करने की छूट होगी। इसी तरह 10 घंटे की शिफ्ट वालों को 5 दिन और 8 घंटे की शिफ्ट वालों को सप्ताह में 6 दिन काम करना होगा।

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इंडस्ट्रियल रिलेशंस कोड
इस कोड में कंपनियों को काफी छूट दी गई है। नया कोड लागू होने के बाद 300 से कम कर्मचारियों वाली कंपनियां सरकार की मंजूरी के बिना छंटनी कर सकेंगी। 2019 में इस कोड में कर्मचारियों की सीमा 100 रखी गई थी, जिसे 2020 में इसे बढ़ाकर 300 किया गया है।

वेज कोड
इस कोड में पूरे देश के मजदूरों को न्यूनतम मजदूरी देने का प्रावधान किया गया है। इसके तहत सरकार पूरे देश के लिए कम से कम मजदूरी तय करेगी। सरकार का अनुमान है कि इस कोड के लागू होने के बाद देश के 50 करोड़ कामगारों को समय पर और निश्चित मजदूरी मिलेगी। इसको 2019 में ही पास कर दिया गया था।

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