हैदराबाद की बायोलॉजिकल ई जिस कोरोना वायरस वैक्‍सीन का ट्रायल कर रही है, वह सबसे सस्‍ती वैक्‍सीन साबित हो सकती है। केंद्र सरकार ने मात्र 50 रुपये प्रति डोज के हिसाब से इसकी 30 करोड़ डोज का ऑर्डर दिया है। लॉन्चिंग के बाद, भारतीय बाजारों में इसकी कीमत 400 रुपये से भी कम (दोनों डोज) रखी जा सकती है।

अगर ऐसा हुआ तो यह पूरी दुनिया की सबसे सस्‍ती वैक्‍सीन होगी। फिलहाल फेज 3 ट्रायल्‍स से गुजर रही इस वैक्‍सीन की रिस्‍क मैनुफैक्‍चरिंग हो चुकी है। कंपनी को उम्‍मीद है कि अगस्‍त से वह 7.5 से 8

करोड़ /महीने तैयार कर सकेगी। आइए आपको इस वैक्‍सीन की खासियतों के बारे में बताते हैं।

वायरस के खिलाफ बनाई जाने वाली वैक्‍सीन मुख्‍य रूप से चार प्रकार की होती हैं :

  1. पूरे वायरस वाली:इनमें बीमारी देने वाला वायरस मिला रहता है, चाहे उसका कमजोर रूप हो या मृत। Covaxin ऐसी ही वैक्‍सीन है।
  2. वायरल वेक्‍टर:इनमें एकदम अलग वायरस होता है जो एक जेनेटिक कोड शरीर में भेजता है जिससे बीमारी देने वाले वायरस के चुनिंदा हिस्‍से बनने लगते हैं। Covishield ऐसी ही एक वैक्‍सीन है।
  3. प्रोटीन सबयूनिट:बीमारी देने वाले वायरस के कुछ खास हिस्‍सों से बनी वैक्‍सीन होती है। ताकि इम्‍युन सिस्‍टम उसे पहचान ले। Corbevax इसी तकनीक पर आधारित है।
  4. mRNA:इनमें निर्देशों के साथ बीमारी देने वाले वायरस का केवल जेनेटिक मैटीरियल होता है। Pfizer की वैक्‍सीन इसी तकनीक से बनी है।

कैसे काम करती है Corbevax ?

Corbevax असल में ‘रीकॉम्बिनेंट प्रोटीन सबयूनिट’ वैक्‍सीन है। इसे टाइप को ‘रिसेप्‍टर बाइंडिंग डोमेन’ (RBD) भी कहते हैं. कोरोना वायरस अपने स्‍पाइक्‍स का इस्‍तेमाल मानव कोशिकाओं से जुड़ने के लिए करता है। स्‍पाइक के भीतर ‘रिसेप्‍टर बाइंडिंग डोमेन’ या RBD होता है जो उसे कोशिकाओं पर रुकने और उन्‍हें संक्रमित करने में मदद करता है। Corbevax जैसी RBD सबयूनिट वैक्‍सीन में केवल वायरस के RBD प्रोटीन्‍स होते हैं | 

Corbevax की 2 डोज, फ्र‍िज में कर सकते हैं स्‍टोर

डोज क्‍या है : इस वैक्‍सीन की दो डोज 28 दिन के अंतराल पर मांसपेशियों में इंजेक्‍शन के जरिए दी जाती है।

स्‍टोरेज : Corbevax को स्‍टोर करना बेहद आसान है। सामान्‍य रेफ्रिजरेटर में रखी जा सकती है। भारत के लिहाज से बेहद अहम क्राइटेरिया।

ऐसी वैक्‍सीन के फायदे बहुत सारे

  • प्रोटीन सबयूनिट वैक्‍सीन में पूरे वायरस के बजाय केवल वही चीजें होती हैं जो इम्‍युन सिस्‍टम को जगाने के लिए काफी हैं।
  • वायरस के केवल कुछ ही हिस्‍सों को वैक्‍सीन में शामिल करने से साइड इफेक्‍ट्स कम होते हैं। ऐसी वैक्‍सीन बनाना आसान है।
  • अमेरिका के नैशनल इंस्टिट्यूट ऑफ एलर्जी ऐंड इन्‍फेक्शियस डिजीज का कहना है कि “ये टीके पूर्ण कोशिका वाली वैक्‍सीन जितने ही असरदार हैं मगर प्रतिकूल प्रभाव कम पैदा करती हैं।”
  • चूंकि इन वैक्‍सीन से बीमारी नहीं हो सकती है, ऐसे में यह उन लोगों के भी काम आ सकती है जिनका इम्‍युन सिस्‍टम कमजोर या खराब है।
  • प्रोटीन सबयूनिट वैक्‍सीन का एक बड़ा फायदा यह भी है कि ये पूरे वायरस वाली वैक्‍सीन की तुलना में ज्‍यादा स्थिर रहती हैं।

RDB वैक्‍सीन के थोड़े नुकसान भी हैं

  • चूंकि इम्‍युन सिस्‍टम का सामना वायरस के कुछ हिस्‍सों से ही होता है, ऐसे में संभव है कि वह वैक्‍सीन के प्रति उतनी जोरदार प्रतिक्रिया न दे।
  • वैक्‍सीन से पैदा होने वाली इम्‍युनिटी ऐंटीबॉडीज तक सीमित रह सकती है जो कुछ समय के बाद खत्‍म हो जाती हैं।
  • इस कमजोरी से उबरने के लिए, प्रोटीन सबयूनिट वैक्‍सीन में अक्‍सर एडजुवेंट मिलाते हैं। इससे उनका प्रभाव बढ़ जाता है। Corbevax में CpG 1018 को एडजुवेंट की तरह इस्‍तेमाल किया गया है।
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