Melting glacier due to climate change in Patagonia Argentina

‘तीसरा ध्रुव’ नाम से जाना जाने वाला हिमालय अंटार्कटिका और आर्कटिक के बाद ग्‍लेशियर बर्फ का तीसरा सबसे बड़ा सोर्स है। पर ग्लोबल वार्मिंग की वजह से इसके ग्लेशियर असाधारण गति से पिघल रहे हैं। साइन्स जर्नल साइंटिफिक रिपोर्ट्स में प्रकाशित हुई एक हालिया रिसर्च के मुताबिक, इससे एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के किनारे रहने वाले करोड़ों भारतियों पर पानी का संकट आ सकता है। वैज्ञानिकों का कहना है कि 400 से 700 साल पहले के मुकाबले पिछले कुछ दशकों में हिमालय के ग्लेशियर 10 गुना तेजी से पिघले हैं। यह गतिविधि साल 2000 के बाद ज्यादा बढ़ी है।

क्या होते हैं ग्लेशियर, जानें इनके बारे में सबकुछ | Uttarakhand Glacier Tragedy What are Glaciers Know All about it Viks – News18 हिंदी

बर्फ पिघलने की रफ्तार ‘लिटल आइस एज’ की तुलना में 10 गुना ज्यादा

ब्रिटेन की लीड्स यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं के अनुसार, आज हिमालय से बर्फ के पिघलने की गति ‘लिटल आइस एज’ के वक्त से औसतन 10 गुना ज्यादा है। लिटल आइस एज का काल 16वी से 19वी सदी के बीच का था। इस दौरान बड़े पहाड़ी ग्लेशियर का विस्तार हुआ था। वैज्ञानिकों की मानें, तो हिमालय के ग्लेशियर दूसरे ग्लेशियर के मुकाबले ज्यादा तेजी से पिघल रहे हैं।

ऐसे हुई रिसर्च

वैज्ञानिकों की टीम ने लिटल आइस एज के दौरान हिमालय की स्थिति का पुनर्निर्माण किया। उन्होने 14,798 ग्लेशियर की बर्फ की सतहों और आकार को सैटिलाइट की तस्वीरों से जांचा। इससे पता चला कि आज हिमालय के ग्लेशियर अपना 40% हिस्सा खो चुके हैं। इनका दायरा 28,000 वर्ग किलोमीटर से घटकर 19,600 वर्ग किलोमीटर पहुंच गया है।

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विश्व भर में बढ़ा समुद्र का जलस्तर

रिसर्च में शोधकर्ताओं ने पाया कि अब तक हिमालय में 390 से 580 वर्ग किलोमीटर बर्फ पिघल चुकी है। इस कारण समुद्र का जलस्तर 0.03 से 0.05 इंच तक बढ़ गया है। इसके अलावा, बर्फ हिमालय के पूर्वी इलाकों की तरफ ज्यादा तेजी से पिघल रही है। यह क्षेत्र पूर्वी नेपाल से भूटान के उत्‍तर तक फैला हुआ है।

बूंद-बूंद पानी को तरसेंगे करोड़ों लोग

शोध में वैज्ञानिकों ने माना है कि हिमालय के ग्लेशियर पिघलने का कारण मानव प्रेरित क्लाइमेट चेंज है। इससे जहां समुद्र में पानी बढ़ रहा है, वहीं इंसानों के इस्तेमाल में आने वाला पानी कम होता जा रहा है। शोधकर्ताओं के अनुसार, आने वाले समय में करोड़ों लोगों को पानी, खाना और ऊर्जा की कमी हो सकती है। इसका खतरा उनको ज्यादा है जो एशिया में गंगा, ब्रह्मपुत्र और सिंधु नदी के किनारे रहते हैं।

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वर्ष 2020 के दौरान कोविड 19 वैश्विक महामारी के कारण जब लगभग पूरी दुनिया में लॉकडाउन लगाया गया था, सभी आर्थिक गतिविधियाँ बंद हो गईं थीं, तब जाहिर है वायु प्रदूषण का स्तर न्यूनतम पहुँच गया था। दुनिया ने ऐसा साफ़ आसमान पहली बार देखा था और वैज्ञानिकों के लिए अनेक सिद्धांतों को परखने का यह सुनहरा मौका था। यूनिवर्सिटी ऑफ़ कैलिफ़ोर्निया के ग्लेशियर विशेषज्ञ नेड बेयर ने वर्ष 2020 में पाकिस्तान और भारत में बहने वाली सिन्धु नदी में पानी के बहाव का अध्ययन किया था। इस वर्ष कम वायु प्रदूषण के कारण हिमालय की चोटियों पर जमे ग्लेशियर पर कालिख कम जमा हो पाई थी। वैज्ञानिकों का आकलन है की पिछले 20 वर्ष के दौरान कालिख की औसत मात्रा की तुलना में वर्ष 2020 में कालिख की मात्रा 30 प्रतिशत तक कम थी।

इस समय माउंट एवरेस्ट के आसपास के क्षेत्र में ग्लेशियर का कुल विस्तार 3266 वर्ग किलोमीटर है, यह विस्तार वर्ष 1970 से 2010 के औसत विस्तार की तुलना में कम है। इस दौरान ग्लेशियर के पिघलने की दर में बृद्धि के असर से यहाँ से निकलने वाली नदियों में पानी का बहाव बढ़ गया है। ग्लेशियर के तेजी से पिघलने की दर बढ़ने के कारण इस क्षेत्र में ग्लेशियर झीलों की संख्या और क्षेत्र तेजी से बढ़ रहां है। वर्ष 1990 में इस पूरे क्षेत्र में 1275 ग्लेशियर झीलें थीं और इनका संयुक्त क्षेत्र 106.11 वर्ग किलोमीटर था। वर्ष 2018 तक झीलों की संख्या 1490 तक और कुल क्षेत्र 133.36 वर्ग किलोमीटर तक पहुँच गया।

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वैज्ञानिकों के अनुसार तेजी से बर्फ पिघलने का कारण तापमान बृद्धि के साथ ही सापेक्ष आर्द्रता में कमी और उस ऊंचाई पर तेज हवाओं का चलना भी है। तापमान बृद्धि के असर से दुनियाभर के ग्लेशियर के पिघलने की दर तेज हो गयी है और अनुमान है कि वर्ष 2050 तक पृथ्वी ग्लेशियर-विहीन हो जायेगी। इस शोधपत्र के अनुसार इस तरह के प्रभाव साबित करते हैं कि मनुष्य अपनी जिद और प्रदूषण के कारण पूरी पृथ्वी को ही स्थाई तौर पर बदलता जा रहा है।

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