द लांसेट ग्लोबल हेल्थ में छपी ‘इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनीशिएटिव’ के एक अध्ययन के मुताबिक, भारत में 1990-2019 के दौरान न्यूरोलॉजिकल विकारों की संख्या दोगुनी हुई है. 2019 में देश में माइग्रेन या तनाव संबंधी सिरदर्द सर्वाधिक प्रचलित विकार था, जिसने 48.8 करोड़ लोगों को प्रभावित किया.
भारत में 1990 से 2019 तक कुल रोग भार में गैर-संचारी और चोट से संबंधित तंत्रिका विकारों (नर्व/न्यूरोलॉजिकल डिसऑर्डर) की संख्या दोगुनी से अधिक हो गई है वहीं संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों में तीन-चौथाई की कमी आई है.यह जानकारी ‘इंडिया स्टेट-लेवल डिजीज बर्डन इनीशिएटिव’ के एक अध्ययन के निष्कर्षों में सामने आई है. 1990 से भारत के हर राज्य में तंत्रिका संबंधी विकारों और उनकी प्रवत्ति के कारण बीमारी के भार का पहला व्यापक अनुमान बुधवार को ‘द लांसेट ग्लोबल हेल्थ’ में प्रकाशित हुआ.सामने आए तथ्यों के अनुसार भारत में गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों का भार मुख्य रूप से आबादी की उम्र बढ़ने के कारण बढ़ रहा है.
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद (आईसीएमआर) ने एक विज्ञप्ति में कहा कि पांच साल से कम उम्र के बच्चों में संचारी रोगों की कुल तंत्रिका संबंधी विकारों के भार में हिस्सेदारी रही वहीं अन्य सभी आयु वर्गों में गैर-संचारी तंत्रिका संबंधी विकारों की सबसे ज्यादा संख्या रही.द लांसेट ग्लोबल हेल्थ में प्रकाशित अध्ययन में कहा गया है कि स्ट्रोक भारत में न्यूरोलॉजिकल विकारों के कारण मृत्यु दर का प्रमुख कारण है. साल 2019 में स्ट्रोक से 6,99,000 मौतें हुईं जो देश में हुई कुल मौतों का 7.4 प्रतिशत है.
- हाल ही में जरनल ऑफ स्ट्रोक में छपे एक लेख के अनुसार भारत के शहरी इलाकों में प्रति एक लाख की आबादी में से 262 लोगों इस बीमारी से ग्रसित पाए गए हैं।
- ग्रामीण इलाकों में प्रति लाख लोगों में से 424 लोग स्ट्रोक की वजह से विभिन्न बीमारियों के चपेट में आ चुके हैं।
- अन्य देशों की तुलना में भारत जैसे विकासशील देशों में स्ट्रोक के मामलों में दस गुना बढ़ोतरी देखने को मिली है।
- हाल ही में लैंसेट पत्रिका के अनुसार 1990-2010 के बीच एक तिहाई स्ट्रोक के मामले अब 26-64 उम्र के लोगों में देखने को मिल रहा है।
- धूम्रपान, खान-पान और आधुनिक जीवन शैली को स्ट्रोक का सबसे महत्वपूर्ण कारण माना जाता है।