National Doctors Day 2021 : हर साल 1 जुलाई को देशभर में डॉक्टर्स डे बड़े उत्साह के साथ मनाया जाता है। यह खास दिन डॉक्टर्स के योगदान को सम्मान देने के लिए मनाया (National Doctor’s Day) जाता है।

यूं तो डॉक्टर्स को हमेशा ही भगवान का दर्जा दिया जाता है। लेकिन कोरोना काल में चिकित्सकों ने इस शब्द को सच कर दिखाया। कोरोना काल में बिना अपनी परवाह किए धरती के भगवान मरीजों की सेवा में जुटे रहे , सफेद कोट पहने और गले में आला डाले डॉक्टरों को यू हीं धरती का भगवान नहीं बोला जाता। कोरोना महामारी में यह साबित भी किया। कोरोना की दूसरी लहर में कई  डॉक्टरों की जान गई, कइयों ने अपने परिजनों को भी खोया, लेकिन हिम्मत नहीं हारी और दूसरों की जान बचाने के लिए जुट रहे। इन्हीं के भरोसे से लोगों को बल मिला। लगातार ड्यूटी करने के बाद भी इनका हौसला बरकरार है। बचाव के चलते घर पर बच्चों से दूरी बरत रहे हैं।

चुनौतियां थीं… साथियों की सहयोग, सूझबूझ और लगातार काम से महामारी पर विजय पाई 

पीजीआई जैसे संस्थान के निदेशक की जिम्मेदारी को निभाते हुए महामारी के इस दौर में कोविड अस्पताल के बेहतर संचालन का जिम्मा किसी चुनौती से कम नहीं था। ऐसे में चंडीगढ़ के साथ ही पंजाब, हरियाणा, हिमाचल, उत्तराखंड और लगभग देश के कोने-कोने से आने वाले हजारों मरीजों की उम्मीदें भी पूरी करनी थीं। संकट की घड़ी में हमने सूझबूझ और सामंजस्य से इस पर विजय पाई। सहयोगियों के साथ मिलकर लगातार कई-कई घंटे काम किया। मुझे गर्व है कि साथियों ने अपनी परवाह और परिवार की चिंता किए बगैर मरीजों को इस संकट से निकाला। संकट से उबरने के लिए जब पूरे देश की निगाहें आप पर हो, तब उस मौके पर बेहतर से बेहतर करने का प्रयास जारी रखना चाहिए। इस सोच के साथ ही महामारी से मुकाबले की तैयारियां लगातार मजबूत कीं। परिणामस्वरूप हमारे सामूहिक प्रयास की बदौलत हजारों मरीजों को नई जिंदगी मिल गई। -प्रो जगतराम, निदेशक पीजीआई

मौजूदा समय सिर्फ फर्ज के लिए.. संकट टलने के बाद अपनों के साथ वक्त बिताएंगे
महामारी का यह दौर बेहद जिम्मेदारियों से भरा रहा। केंद्र सरकार द्वारा पीजीआई में कोविड-19 अस्पताल संचालित करने का निर्देश मिलने पर मुझे पीजीआई में कोविड-19 प्रबंधन का चेयरमैन बनने का अवसर मिला। महामारी के दौरान कोविड-19 अस्पताल के बेहतर प्रबंधन के साथ पीजीआई के प्रत्येक विभाग में आने वाले मरीजों व वहां काम कर रहे डॉक्टर , कर्मचारियों के सुरक्षा की जिम्मेदारी भी थी। पीजीआई को संक्रमण मुक्त बनाने के लिए प्रत्येक स्तर पर चौकस व्यवस्था उपलब्ध कराने के लिए हम लगातार जुटे रहे। इस दौरान सभी साथियों ने अपने को परिवार से दूर कर लिया। 24 घंटे पीजीआई में बेहतर व्यवस्था बहाल करने की सोच व उसे साकार करने का प्रयास जारी रहा। अगर एक बार यह संकट की घड़ी गुजर गई तो फिर अपनों के साथ ही हमें वक्त गुजारना है। इसलिए मौजूदा समय सिर्फ फर्ज के लिए दिया जाएगा। -प्रो. जीडी पुरी, पीजीआई के डीन एकेडमी और कोविड प्रबंधन के चेयरमैन

यह वक्त गैरों के बारे में सोचने का है जो  डॉक्टर पर भरोसा कर अस्पताल आते हैं
अक्टूबर 2020 को स्वास्थ्य निदेशक की जिम्मेदारी मिली। चुनौतियां काफी ज्यादा थीं, लेकिन घबराई नहीं। महामारी से मुकाबले के लिए खुद के साथ ही स्वास्थ्य विभाग को और मजबूत करने पर काम किया। इसके लिए चिकित्सा अधिकारियों के साथ लगातार बैठकर कर रणनीति तैयार करती रही। इस दौरान खुद और साथियों को संक्रमण से बचाने के लिए भी सजग रहीं। मेरी साथ ही बेटी जीना भी जीएमसीएच 32 में कोरोना के मरीजों के इलाज में जुटी रही। महामारी के भयानक दौर ने हमें सबक सिखाया कि हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। खुद को 14 महीनों तक लगातार अपनों से दूर रखा। संक्रमण से लोगों को बचाने के लिए टीकाकरण अभियान में जी जान से जुट गई। महामारी के इस दौर में पूरा शहर परिवार की तरह है। अगर हम केवल अपने घर के सदस्यों की चिंता करेंगे तो वह अपने फर्ज के साथ इंसाफ नहीं होगा। इसलिए यह समय अपने बारे में नहीं उन गैरों के बारे में सोचने का है जो एक डॉक्टर पर भरोसा कर अस्पताल में आते हैं। -डॉ. अमनदीप कंग, स्वास्थ्य निदेशक 

मेहनत और ईमानदारी के साथ किसी काम को किया जाए तो फिर ईश्वर भी साथ देता है 
महामारी के इस दौर से मुकाबला करना आसान नहीं था। इस चुनौती से हमारे काबिल साथियों ने सूझबूझ और मेहनत के बल पर पार पाया। घर और परिवार की चिंता किए बिना 24 घंटे मरीजों को बेहतर इलाज मुहैया कराने में जुटे रहे। अस्पताल में कोविड-19 के मरीजों के साथ ही नॉन कोविड के मरीजों के इलाज की व्यवस्था को सुचारु रूप से संचालित करने के लिए सभी विभागों के प्रमुखों व निचले स्तर से ऊपर के स्तर तक के कर्मचारियों के साथ सामंजस्य स्थापित किया। अगर मेहनत और ईमानदारी के साथ किसी काम को किया जाए तो फिर ईश्वर भी साथ हो लेते हैं। डायरेक्टर प्रिंसिपल की जिम्मेदारी को निभाते हुए कई बार अपने परिवार से दूर भी रही। ड्यूटी के बाद संक्रमण के खतरे को ध्यान में रखते हुए खुद को अपनों से अलग कर लेती थी। इस बात की खुशी है कि त्याग और परिवार के साथ से मरीजों जान बचाने में सफलता हासिल की। -डॉ. जसविंदर कौर, डायरेक्टर प्रिंसिपल जीएमसीएच

 

 

 

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