ललित मौर्या
मेडिकल जर्नल न्यूरोलॉजी में प्रकाशित एक नई रिसर्चसे पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों ने न्यूरोइन्फेक्शियस रोगों के लिए पारंपरिक भौगोलिक क्षेत्रों से परे भी अनुकूल माहौल तैयार कर दिया है। ऐसे में यह बीमारियां नए क्षेत्रों को अपनी चपेट में ले रही हैं
जलवायु परिवर्तन एक ऐसा खतरा है, जिससे न केवल पर्यावरण बल्कि इंसानी स्वास्थ्य भी नहीं बचा है। इसी कड़ी में एक और हिस्सा जुड़ गया जब रिसर्च से पता चला है कि बदलती जलवायु और बढ़ते तापमान के साथ सिरदर्द, डिमेंशिया, मल्टीपल स्केलेरोसिस और पार्किंसंस जैसी न्यूरोलॉजिकल डिजीज यानी तंत्रिका संबंधी रोगों का जोखिम कहीं ज्यादा बढ़ सकता है।
इतना ही नहीं समीक्षा में यह भी पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों के चलते स्ट्रोक की समस्या कहीं ज्यादा आम होती जा रही है। पता चला है कि इसके कारण न केवल डिमेंशिया के मरीजों को अस्पतालों के कहीं ज्यादा चक्कर काटने पड़ रहे हैं। साथ ही मल्टीपल स्केलेरोसिस के लक्षण भी कहीं ज्यादा गंभीर हो रहे हैं।
बदलती जलवायु ने जहां पहले ही पूरी दुनिया को अपने आगोश में ले लिया है। वहीं मौसम की चरम घटनाओं जिनमें लू का कहर शामिल है उनके प्रभाव पूरी दुनिया में सामने आने लगे हैं। ऐसा ही कुछ इस बार गर्मियों में देखने को मिला था जब लू ने अमेरिका, यूरोप और एशिया के कई हिस्सों को झुलसा दिया था। बदलती जलवायु का ही नतीजा है कि इस साल भारत ने अपने 122 वर्षों के इतिहास में सबसे गर्म मार्च को दर्ज किया था।
देखा जाए तो एक तरफ सारी दुनिया वैश्विक तापमान में होती वृद्धि को सदी के अंत तक 1.5 डिग्री सेल्सियस पर सीमित रखने का प्रयास कर रही है वहीं संयुक्त राष्ट्र का अनुमान है कि तापमान में होती यह वृद्धि 2.9 डिग्री सेल्सियस तक जा सकती है। ऐसे में जहां दुनिया पहले ही बढ़ते तापमान के गंभीर परिणामों से त्रस्त है वो आने वाले समय में विनाशकारी रूप ले लेंगे। इसका खामियाजा इंसानी स्वास्थ्य को भी उठाना पड़ेगा।
ऐसे में न्यूरोलॉजिकल डिजीज पर पड़ते बढ़ते तापमान के असर को समझने के लिए वैज्ञानिकों ने 1990 से 2022 के बीच जलवायु परिवर्तन, प्रदूषण, और न्यूरोलॉजिकल डिजीज पर प्रकाशित 364 शोधों की समीक्षा की है। हालांकि इन अध्ययनों में केवल वयस्कों पर पड़ते प्रभाव को देखा गया था, उसमें बच्चे शामिल नहीं थे।
इन अध्ययनों से तापमान में आते बदलाव के साथ तंत्रिका संबंधी लक्षणों के खराब होने का पता चला है। साथ ही इसमें बढ़ते तापमान के साथ किलनी और मच्छरों से फैलते संक्रमण के बीच के संबंधों पर प्रकाश डाला है। इतना ही नहीं शोध में वायु प्रदूषण के रक्त प्रवाह सम्बन्धी रोगों की बढ़ती दर और गंभीरता को उजागर किया है।
बदलती जलवायु के साथ नए क्षेत्रों को अपना निशाना बना रही हैं यह बीमारियां
रिसर्च में सामने आया है कि मौसम की यह चरम घटनाएं और तापमान में होता उतार-चढ़ाव स्ट्रोक की घटनाओं और उसकी गंभीरता में होती वृद्धि से जुड़े थे। इसके अलावा बढ़ते तापमान की वजह से माइग्रेन सिरदर्द, मनोभ्रंश के शिकार रोगियों के अस्पताल में भर्ती होने के मामले कहीं ज्यादा बढ़ गए थे। साथ ही यह मल्टीपल स्केलेरोसिस की बढ़ती गंभीरता से भी सम्बंधित थे।
इस रिसर्च में वेस्ट नाइल वायरस, मेनिंगोकोकल मेनिनजाइटिस और किलनी से होने वाले एन्सेफलाइटिस जैसे उभरते न्यूरोइन्फेक्शियस रोगों और जलवायु परिवर्तन के संबंध को भी दर्शाया है। पता चला है कि जलवायु में आते बदलावों ने इन रोगों के लिए पारंपरिक भौगोलिक क्षेत्रों से परे भी अनुकूल परिस्थितियों तैयार की हैं। ऐसे में जानवरों और कीटों से फैलने वाली यह बीमारियां नए क्षेत्रों में लोगों के लिए खतरा पैदा कर रही हैं।
इस रिपोर्ट में वायु प्रदूषकों जैसे नाइट्रेट्स और पीएम 2.5 के संपर्क में आने के जोखिम को भी उजागर किया है। वायु प्रदूषण के यह महीन कण स्ट्रोक की घटनाओं के साथ उसकी गंभीरता से भी जुड़े थे। इसके साथ ही यह सिरदर्द, मनोभ्रंश, एमएस और पार्किंसंस जैसे विकारों के बिगड़ने से भी जुड़े थे।
इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता एंड्रयू धवन का कहना है कि “जलवायु परिवर्तन मानवता के लिए कई चुनौतियां पेश कर रहा है, जिनमें से कुछ का अभी भी पूरी तरह अध्ययन नहीं किया गया है। उदाहरण के लिए उनके अनुसार इस समीक्षा में भोजन और पानी की असुरक्षा से तंत्रिका संबंधी स्वास्थ्य पर पड़ते असर के बारे में कोई अध्ययन नहीं मिला है।”
“हालांकि फिर भी यह स्पष्ट है कि तंत्रिका संबंधी स्वास्थ्य और जलवायु परिवर्तन एक दूसरे से जुड़े हुए हैं। इसी तरह न्यूरोइन्फेक्शियस रोगों के प्रसार को कम करने के तरीकों पर अभी और अध्ययन करने की जरूरत है। इसी तरह वायु प्रदूषण हमारे नर्वस सिस्टम को कैसे प्रभावित कर रहा है इसे समझने के लिए आगे और अध्ययन की आवश्यकता है।”
(‘डाउन टू अर्थ‘ पत्रिका से साभार)