"A lot of people are eating seafood all the time, and fish are eating plastic all the time, so I think that's a problem," says a marine toxicologist.

दयानिधि

एक नए अध्ययन से पता चलता है कि लेट्यूस का पौधा मिट्टी से प्लास्टिक के कणों को ग्रहण कर उन्हें खाद्य श्रृंखला में स्थानांतरित कर सकता है। प्लास्टिक प्रदूषण के बारे में चिंता तब और बढ़ गई जब यह महसूस किया गया कि वातावरण में प्लास्टिक माइक्रोप्लास्टिक और नैनोप्लास्टिक के रूप में जाने जाने वाले बहुत छोटे टुकड़ों में टूट जाता है। यह आशंका है कि नैनोप्लास्टिक, अपने छोटे आकार के कारण, मनुष्य के शरीर में गुजर सकता है और हमारे अहम अंगों में प्रवेश कर सकता है।

 

पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय के एक नए अध्ययन से पता चलता है कि लेट्यूस का पौधा मिट्टी से प्लास्टिक के कणों को ग्रहण कर सकता है और उन्हें खाद्य श्रृंखला में पहुंचा सकता है। पौधों, अकशेरूकीय और कशेरुकियों के शरीर में नैनोप्लास्टिक की विषाक्तता के बढ़ते सबूतों के बावजूद, खाद्य जाल में प्लास्टिक के पहुंचने की हमारी समझ सीमित है। उदाहरण के लिए, मिट्टी के पारिस्थितिक तंत्र में नैनोप्लास्टिक और मिट्टी में रहने वाले जीवों द्वारा उनका उपभोग किए जाने के बारे में बहुत कम जानकारी है। इसके बावजूद कि खेती की जाने वाली मिट्टी में विभिन्न स्रोतों से नैनोप्लास्टिक मिल रहे है जैसे कि वायुमंडलीय जमाव, अपशिष्ट जल से सिंचाई, खेती करने के लिए सीवेज का उपयोग आदि।

पौधों, विशेष रूप से खेती की जाने वाली मिट्टी में सब्जियों और फलों द्वारा मिट्टी से नैनोप्लास्टिक के ग्रहण करने को मापना एक महत्वपूर्ण कदम है, कि क्या और किस हद तक नैनोप्लास्टिक खाद्य पौधों में अपना रास्ता बना सकते हैं, जिसकी वजह से यह हमारे भोजन तक पहुंच रहा है।

प्लास्टिक कैसे पहुंचा हमारे भोजन तक ?

पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय के शोधकर्ताओं ने जीवों में नैनोप्लास्टिक का पता लगाने और उसे मापने के लिए एक नया, धातु फिंगरप्रिंट-आधारित तकनीक विकसित की है। इस नए अध्ययन में, उन्होंने इस तकनीक का उपयोग एक मॉडल खाद्य श्रृंखला में किया है, जिसमें तीन पौष्टिकता संबंधी स्तर शामिल हैं, यानी लेट्यूस, ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा प्राथमिक उपभोक्ता के रूप में और कीटभक्षी मछली (रोच) द्वितीयक उपभोक्ता के रूप में।

शोधकर्ताओं ने पर्यावरण में आमतौर पर पाए जाने वाले प्लास्टिक कचरे का इस्तेमाल किया, जिसमें पॉलिस्ट्रीन (पीएस) और पॉलीविनाइल क्लोराइड (पीवीसी) नैनोप्लास्टिक शामिल हैं।

लेट्यूस के पौधे 14 दिनों के लिए प्लास्टिक से दूषित मिट्टी के माध्यम से नैनोप्लास्टिक के संपर्क में थे, जिसके बाद उन्हें काटा गया और कीड़ों को खिलाया गया। कीड़ों  में ब्लैक सोल्जर फ्लाई लार्वा, जो कई देशों में प्रोटीन के स्रोत के रूप में उपयोग किए जाते हैं शामिल थे। पांच दिनों तक लेट्यूस खिलाने के बाद, इन कीड़ों को मछलियों को अगले पांच दिनों तक खिलाया गया।

शोधकर्ताओं ने स्कैनिंग इलेक्ट्रॉन माइक्रोस्कोपी का उपयोग करते हुए पौधों, लार्वा और मछली का विश्लेषण किया। छवियों से पता चला कि नैनोप्लास्टिक पौधों की जड़ों द्वारा उठाए गया था जो कि पत्तियों में जमा हो गया था। फिर, नैनोप्लास्टिक्स को दूषित लेट्यूस से कीड़ों में स्थानांतरित कर दिया गया। कीड़ों के पाचन तंत्र की छवियों से पता चला है कि पीएस और पीवीसी नैनोप्लास्टिक दोनों मुंह और आंत में मौजूद थे, यहां तक ​​कि उन्हें 24 घंटे तक अपना पेट खाली करने के बाद भी वह उनमें पाया गया।

कीड़ों में पीएस नैनोप्लास्टिक की मात्रा पीवीसी नैनोप्लास्टिक की मात्रा से काफी कम थी, जो लेट्यूस में पीएस कणों की कम संख्या के अनुरूप है। जब मछली को दूषित कीड़े खिलाए गए थे, तो मछली के गलफड़ों, यकृत और आंतों के ऊतकों में नैनोप्लास्टिक के कणों का पता चला था, जबकि मस्तिष्क के ऊतकों में कोई कण नहीं पाया गया था।

मुख्य अध्ययनकर्ता और पूर्वी फिनलैंड विश्वविद्यालय के डॉ फजल मोनिख ने कहा कि हमारे परिणाम बताते हैं कि लेट्यूस मिट्टी से नैनोप्लास्टिक ग्रहण कर सकता है और उन्हें खाद्य श्रृंखला में स्थानांतरित कर सकता है।

इससे पता चलता है कि मिट्टी में छोटे प्लास्टिक कणों की उपस्थिति शाकाहारी और मनुष्यों के लिए स्वास्थ्य से जुड़े खतरों को बढ़ा सकती है यदि इन निष्कर्षों को अन्य पौधों और फसलों और क्षेत्र की व्यवस्था के लिए सामान्यीकृत पाया जाता है, तो यह और भी खतरनाक हो सकता हैं। हालांकि, इस विषय पर अभी और शोध की भी तत्काल आवश्यकता है।

( ‘डाउन टू अर्थ ‘ पत्रिका से साभार )

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