कोरोना वायरस को लेकर हर दिन नई बातें सामने आ रही हैं। हाल ही में किए गए एक शोध में पता चला कि कोरोना हमारे शरीर में हैप्पी हाईपोक्सिया (Happy hypoxia) की समस्या को बढ़ा रहा है, जिसके कारण कोरोना मरीजों की मौत का आंकड़ा बढ़ता जा रहा है। इसको लेकर वैज्ञानिकों द्वारा किए गए एक अध्ययन में पता चला है कि हैपी हाईपोक्सिया वाले मरीजों को कोरोना के लक्षण या तो बहुत ही कम महसूस होते हैं या शरीर में ऑक्सीजन की कमी महसूस होने लगती है। हालांकि इसमें सांस लेने में कठिनाई के कोई संकेत नहीं हैं।
अमेरिकी जर्नल ऑफ रेस्पिरेटरी एंड क्रिटिकल केयर मेडिसिन में प्रकाशित अध्ययन के अनुसार, इस हालत की नई समझ, जिसे साइलेंट हाईपोक्सिमिया के रूप में भी जाना जाता है। वर्तमान या कोरोना की दूसरी लहर के दौरान यह अनावश्यक मरीजों में इंटुबेशन और वेंटिलेशन को रोक सकता है। इंटुबेशन एक ट्यूब डालने की प्रक्रिया है, जिसे एंडोट्रैचियल ट्यूब (ईटी) कहा जाता है। इसे मुंह के माध्यम से सांस की नली में डाला जाता है। ऐसा इसलिए किया जाता है ताकि सांस लेने में सहायता के लिए मरीज को वेंटिलेटर पर रखा जा सके।
अमेरिका में लोयोला विश्वविद्यालय शिकागो स्ट्रिच स्कूल ऑफ मेडिसिन में एक प्रोफेसर मार्टिन जे. टोबिन ने कहा कि हैप्पी हाइपोक्सिया चिकित्सकों के लिए विशेष रूप से आश्चर्यजनक है, क्योंकि यह बुनियादी जीव विज्ञान को परिभाषित करता है। अध्ययन में ऑक्सीजन के बहुत कम स्तर वाले 16 कोविड -19 रोगियों को शामिल किया गया, जिनमें सामान्य ऑक्सीजन की तुलना में 50 प्रतिशत ऑक्सीजन की कमी थी।
टोबिन ने कहा कि जब कोविड -19 के रोगियों में ऑक्सीजन का स्तर कम हो जाता है, इस हालात में मस्तिष्क तब तक प्रतिक्रिया नहीं देता है, जब तक कि ऑक्सीजन स्तर बहुत कम नहीं हो जाता। शोधकर्ताओं ने कहा कि इसके अलावा आधे से अधिक रोगियों में कार्बन डाइऑक्साइड का स्तर निम्न था, जो एक अत्यंत निम्न ऑक्सीजन स्तर के प्रभाव को कम कर सकता है। टोबिन ने कहा कि जिनमें सूंघने की क्षमता में कमी महसूस हो रही है। ऐसे दो-तिहाई रोगियों में यह लक्षण पाया जा सकता है।
हैप्पी हाइपोक्सिया का मतलब होता है कि खून में ऑक्सीजन के स्तर का बहुत कम हो जाना और मरीज को इसका पता भी नहीं चल पाना। दरअसल, कोरोना मरीजों में शुरुआती स्तर पर कोई लक्षण नहीं दिखता या फिर हल्का लक्षण दिखता है, वे बिल्कुल ठीक और ‘हैप्पी’ नजर आते हैं, लेकिन अचानक से उनका ऑक्सीजन सेचुरेशन घटकर 50 फीसदी तक पहुंच जा रहा है, जो जानलेवा साबित हो रहा है।
- हैप्पी हाइपोक्सिया का कारण क्या है?
विशेषज्ञों के मुताबिक, हैप्पी हाइपोक्सिया का प्रमुख कारण फेफड़ों में खून की नसों में थक्के जम जाने को माना जाता है। इसकी वजह से फेफड़ों को पर्याप्त मात्रा में ऑक्सीजन नहीं मिल पाती और खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होने लगता है। विशेषज्ञों का कहना है कि हाइपोक्सिया की वजह से दिल, दिमाग, किडनी जैसे शरीर के प्रमुख अंग काम करना बंद कर सकते हैं।
- कोरोना मरीज हैप्पी हाइपोक्सिया को कैसे पहचानें?
इसमें होठों का रंग बदलने लगता है यानी होंठ हल्के नीले होने लगते हैं। इसके अलावा त्वचा का रंग भी लाल या बैंगनी होने लगता है। अगर गर्मी न हो तो भी लगातार पसीना आता है। ये सभी खून में ऑक्सीजन सेचुरेशन कम होने के लक्षण हैं। इसलिए लक्षणों पर लगातार ध्यान देना पड़ता है और जरूरत पड़ने में तुरंत अस्पताल में भर्ती कराना चाहिए।
- युवाओं में क्यों ज्यादा हो रही है ये परेशानी?
विशेषज्ञ कहते हैं कि युवाओं की इम्यूनिटी यानी रोग प्रतिरोधक क्षमता मजबूत होती है और अन्य लोगों के मुकाबले उनकी सहनशक्ति भी ज्यादा होती है, ऐसे में ऑक्सीजन सेचुरेशन अगर 80-85 फीसदी तक भी आ जाए तो उन्हें कुछ महसूस नहीं होता है, जबकि बुजुर्गों का ऑक्सीजन सेचुरेशन इतना हो जाए तो उन्हें काफी परेशानी होने लगती है। यही वजह है कि युवाओं का ऑक्सीजन सेचुरेशन जब काफी नीचे चला जाता है तब उन्हें इसका अहसास होता है, लेकिन तब तक काफी देर हो चुकी होती है।
- हैप्पी हाइपोक्सिया से कैसे बचें?
डॉक्टर और विशेषज्ञ लगातार ये सलाह देते आए हैं कि कोरोना मरीजों को समय-समय पर शरीर के ऑक्सीजन लेवल की जांच करते रहनी चाहिए। हैप्पी हाइपोक्सिया से बचने का यही सबसे अच्छा तरीका भी है। इसलिए बेहतर है कि आप किसी खुशफहमी में न रहें कि आपको तो सांस लेने में कोई दिक्कत महसूस नहीं हो रही है तो हम ऑक्सीजन लेवल की जांच क्यों करें, बल्कि यह बेहद ही जरूरी है। किसी भी तरह की समस्या होने पर आप डॉक्टर से सलाह जरूर लें।