स्मॉग दिल्ली-एनसीआर ही नहीं, बल्कि समूचे उत्तर भारत की समस्या बनती जा रही है। सर्दियों के साथ ही उत्तर भारत के कई शहरों में प्रदूषण का स्तर दिल्ली के बराबर या अधिक हो जाता है। नवंबर से दिल्ली-एनसीआर, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, राजस्थान में धुंध छाने लगती है, जो अन्य इलाकों में तो आने वाले महीनों में छंटती जाती है लेकिन दिल्ली-एनसीआर व उत्तर प्रदेश के शहरों में फरवरी तक बनी रहती है।

इन क्षेत्र में खेतों में फसलों के जलाने, वाहनों के प्रदूषण, निर्माण व औद्योगिक गतिविधियों के बढ़ने से स्थिति खराब हो रही है। सेंटर फॉर साइंस एंड एन्वायरन्मेंट (सीएसई) के ताजा विश्लेषण में 56 शहरों में 137 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों को शामिल किया है। सीएसई की कार्यकारी निदेशक अनुमिता रायचौधरी का कहना है कि उत्तर भारत की स्थिति देश के बाकी हिस्सों से अलग है।

ये एक लैंड-लॉक्ड क्षेत्र है, जहां एक तरफ हिमालय पहाड़ है, तो दूसरी ओर हजारों किलोमीटर तक मैदान हैं। सर्दियों में हवा की मिक्सिंग हाइट काफी नीचे आ जाती है और हवा की गति बहुत धीमी हो जाती है। इस वजह से क्षेत्र में पैदा हो रहा प्रदूषण छंटने की बजाय लंबे समय तक स्थिर बना रहता है। अन्य राज्यों की तुलना में दिल्ली, एनसीआर और उत्तर प्रदेश में प्रदूषण स्रोत अधिक हैं।

सीएसई के प्रोग्राम मैनेजर अविकल सोमवंशी कहते हैं, कि सर्दियों में तापमान कम होने पर शांत मौसम, हवा की दिशा व समूचे परिवेश में परिवर्तन से विपरीत वायुमंडलीय स्थिति बनती है, प्रदूषण फैलता है और स्थिर बना रहता है, जिससे उत्तर भारत में घनी धुंध छाई रहती है। नवंबर के दौरान खेत की पराली की आग व दिवाली के पटाखों से निकलने वाले धुएं से हवा गंभीर श्रेणी में पहुंच जाती है।

पंजाब, हरियाणा में धीरे-धीरे वायु गुणवत्ता में सुधार आने से वह गंभीर से खराब व मध्यम श्रेणी तक आ जाता है, लेकिन दिल्ली-एनसीआर व यूपी में फरवरी तक हवा बहुत खराब श्रेणी में रहती है। राजस्थान में सर्दियों की शुरुआत में कुछ असर दिखता है लेकिन बाद में कम प्रदूषण रहता है।

पराली और पटाखा बने काल

 पिछले साल, दिल्ली के प्रदूषण में पराली जलाने की हिस्सेदारी पांच नवंबर को 42 प्रतिशत पर पहुंच गई थी. वर्ष 2019 में एक नवंबर को दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली के प्रदूषण का हिस्सा 44 प्रतिशत था. दिल्ली के पीएम 2.5 प्रदूषण में पराली जलाने से हुए उत्सर्जन की हिस्सेदारी पिछले साल दिवाली पर 32 प्रतिशत थी, जबकि 2019 में यह 19 प्रतिशत थी. पराली जलाने से निकलने वाले धुएं में तेजी आने के बीच दिवाली की रात बड़े पैमाने पर पटाखा फोड़े जाने के कारण शुक्रवार को दिल्ली-एनसीआर क्षेत्र में धुंध की मोटी परत छा गई.  दिल्ली का वायु गुणवत्ता सूचकांक (AQI) गुरुवार रात ‘गंभीर’ श्रेणी में प्रवेश कर गया और शुक्रवार को दोपहर 12 बजे यह 462 पर पहुंच गया. फरीदाबाद (460), ग्रेटर नोएडा (423), गाजियाबाद (450), गुड़गांव (478) और नोएडा (466) में दोपहर 12 बजे वायु गुणवत्ता ‘गंभीर’ श्रेणी में दर्ज की गई.

पराली जलाने की 3500 घटनाएं हुईं दर्ज

 दिल्ली का बेस पॉल्यूशन (प्रदूषण का आधार) जस का तस बना हुआ है, केवल दो कारक जुड़े हैं- पटाखे और पराली जलाना. उन्होंने यहां संवाददाताओं से कहा, ‘बड़ी संख्या में लोगों ने पटाखे नहीं फोड़े. मैं उन सभी को धन्यवाद देता हूं, लेकिन कुछ लोगों ने जानबूझकर पटाखे फोड़े. बीजेपी ने उनसे यह सब करवाया.’ मंत्री ने कहा कि पराली जलाने की करीब 3,500 घटनाएं हुई हैं और इसका असर दिल्ली में दिखाई दे रहा है. शून्य से 50 के बीच एक्यूआई को ‘अच्छा’, 51 और 100 के बीच ‘संतोषजनक’, 101 और 200 को ‘मध्यम’, 201 और 300 को ‘खराब’, 301 और 400 के बीच ‘बहुत खराब’ और 401 और 500 को ‘गंभीर’ माना जाता है.

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