विकास कुमार

गोवा का नाम सुनकर हमारे आंखों के सामने आखिर क्या नज़ारा आता है ? जी हां, एक आइडियल टूरिस्ट डेस्टिनेशन. आम भारतीयों के लिए यह कोई स्वर्ग से कम नहीं, जहां के खूबसूरत बीचेस (Beaches), एडवेंचर स्पोर्ट्स ( Adventure Sports ),चर्च (Churches ), Late Night Parties, लाजवाब खाना आपको मस्ती, सुकून और राहत के पल प्रदान करता है.

देश और दुनिया से सैलानी इस कारण यहाँ खिंचे चले आते हैं और गोवा किसी को मायूस नहीं करता. साल भर सैलानियों के कारण होने वाले आय से भारत के सबसे छोटे राज्य की संपन्नता का अंदाजा भी आराम से लगाया जा सकता है। इस कारण भारत के अन्य हिस्से के बैठे लोगों के लिए गोवा में किसी तरह की झुग्गी झोपड़ी, गंदगी, ग़रीबी, उत्पीड़न आदि की कल्पना करना आसान नहीं . लेकिन गोवा के इसी दूसरे पहलू को प्रभावशाली तरीके से सामने लेकर आती है, गोवा के एक युवा फिल्मकार कबीर नाइक की फ़िल्म ‘Pressure’. फ़िल्म बताती है कि दक्षिण गोवा के सबसे पुराने स्लम्स ( Slums ) में रहने वाली बड़ी आबादी के लिए पब्लिक टॉइलट्स ( Public Toilets ) का इस्तेमाल कर पाना एक बड़ा सपना है.

दक्षिण गोवा के क्षेत्र में गोवा की सबसे बड़ी स्लम आबादी

फ़िल्म शुरुआत में बताती है कि गोवा के उद्योगों  में देशभर के प्रवासी मजदूर काम करते हैं. कम वेतन में काम करने वाले यह मजदूर अपने कंपनी के आसपास बने झुग्गी में रहते हैं. इसके अलावा रेहड़ी वाले भी इन्हीं स्लम्स में गुजर बसर करते हैैं. दक्षिण गोवा के Mormugao तालुक में गोवा की 90 प्रतिशत स्लम आबादी रहती है. फ़िल्म दो सबसे बड़े और पुराने स्लम्स बाईन और बिरला स्लम्स में इस बड़ी गरीब आबादी की स्वच्छता के मानव अधिकार हनन की बात करती है

“रात में शौच के लिए जाना पड़ता है बीच”

बाईना बीच के निकट सबसे पुराने बाईना स्लम में एक महिला बताती है कि “रात 10 बजे ही पब्लिक टॉयलेट  बंद हो जाता है , रात 10 बजे के बाद आखिर हम शौच करने कहाँ जाएं ? रात में बीच( beach) के निकट शौच करने जाने पर पुलिस हमें रोकती है और पीटती है.”

पब्लिक टॉइलट्स में महिलाओं की सुरक्षा भी एक बड़ा मुद्दा है. लड़कों द्वारा छेड़खानी आम बात है. इस कारण लड़कियों में भय का माहौल है. बाल यौन शोषण के मुद्दे पर काम कर रही स्वयंसेवी संगठन द्वारा एक सर्वे में भी यह बात सामने आई कि बाईना स्लम की लड़कियों के लिए सार्वजनिक शौचालय सबसे असुरक्षित क्षेत्र है , जहाँ यौन अपराधियों में संपर्क में आने का ख़तरा हर वक्त मंडराता रहता है.

दूसरी ओर पब्लिक टॉयलेट्स बदहाल स्थिति में है. आधे से ज़्यादा महिला शौचालय का कोई रखरखाव नही है. पुरूष और महिला टॉयलेट्स को अलग करने के लिए कोई दीवार भी नहीं जिससे यौन शोषण का भय बना रहता है.

बिरला स्लम्स में यही हालत

फ़िल्म हमें एक दूसरे बड़े स्लम बिरला स्लम में सार्वजनिक शौचालय की समस्या दिखाती है. बिरला स्लम 40 साल पुराना स्लम और एक प्राइवेट जुआरी कंपनी की ज़मीन पर बनी है.

बिरला स्लम की निवासी एक महिला बताती है ” टॉयलेट्स सुबह 6 से रात 10 बजे तक खुला रहता है, जिसके बाद मालिक इसे बंद कर देता है. बुजुर्ग महिला और पुरूष को काफी परेशानी झेलनी पड़ती है. बड़ी आबादी के लिए यहाँ सिर्फ एक ही पब्लिक टॉयलेट है ‘

एक लड़की बताती है ” हमें इन टॉयलेट् में जाने के लिए अपने माँ बाप को साथ लेकर जाना पड़ता है, क्योंकि लड़के छेड़खानी, गाली गलौज करते है “.

बिरला के महिला/पुरूष दोनों शौचालय के द्वार पर पुरूष कर्मचारी ही बैठता है. भूतकाल में एक बुजुर्ग कर्मचारी ने एक नाबालिग का लंबे समय तक यौन शोषण भी किया था.

शौचालय की इस समस्या के कारण स्लम में माता-पिता ने बच्चों को रात में खाना खिलाना बंद कर दिया है, ताकि रात में उन्हें शौच जाने की नौबत ना आए. बच्चों को भूखे पेट सोना पड़ता है, इसका कारण खाने का अभाव नहीं, बल्कि टॉयलेट का अभाव  है.

21वी सदी के नए भारत में भी शौचालय एक सपना ?

आज जब सरकार द्वारा स्वच्छ भारत अभियान के अंतर्गत खुले में शौच की समस्या का निदान पाने की बात कही जाती है, प्रचार पर करोड़ों खर्च करके अपना पीठ थपथपाती है, तो यह मार्मिक फ़िल्म दक्षिणी गोवा के इन दो स्लम्स में सार्वजनिक शौचालय के अभाव के सच को उजागर कर सत्ता को आईना दिखाती है.
हर भारतीय के लिए साफ पानी और स्वछता एक मानव अधिकार है और किसी भी इंसान को इस मामूली सी ज़रूरत से वंचित नहीं होना चाहिए. जबकि ग्रामीण भारत के साथ शहरों की झुग्गी झोपड़ियों में  रहने वाली बड़ी आबादी आज भी इस अधिकार से वंचित है. शिक्षा, स्वास्थ्य, पानी, स्वछता , घर हर भारतीय का अधिकार है और नए भारत का गुणगान गाने वालों को ध्यान देना चाहिए कि इस देश मे दो भारत नहीं बसे -एक अति संपन्न और दूसरा जिसे शौचालय भी नसीब ना हो.

“Pressure” फ़िल्म झारखंड के लोहरदगा में होने वाले पहले झारखंड साइंस फ़िल्म फेस्टिवल में प्रदर्शित की जाएगी. युवा फिल्मकार कबीर नाइक भी फेस्टिवल में उपस्थित होंगें और फ़िल्म पर दर्शकों से संवाद भी करेंगें.

       विकास कुमार स्वतंत्र पत्रकार और रिसर्चर है .

      वे साइंस फिल्म फ़ेस्टिवल के को-ऑर्डिनेटर हैं एवं वैज्ञानिक चेतना के साथ भी जुड़े हैं

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