हाल ही में किए एक शोध से पता चला है कि ओमिक्रॉन वेरिएंट (बी.1.1.529), टीकों और संक्रमण के कारण शरीर में पैदा हुई प्रतिरक्षा से बच सकता है। ऐसे में यह शोध इस संक्रमण से बचने के लिए नए टीकों और उपचार की आवश्यकता पर बल देता है। कोलंबिया विश्वविद्यालय द्वारा किया गया यह शोध हांगकांग विश्वविद्यालय के वैज्ञानिकों के सहयोग से किया गया है जोकि जर्नल नेचर में प्रकाशित हुआ था। 

गौरतलब है कि कोरोना वायरस का यह वेरिएंट, वायरस के स्पाइक प्रोटीन में होने वाले अनगिनत और खतरनाक परिवर्तनों को लेकर चर्चा में है। अपने इन बदलावों के चलते यह वायरस मौजूदा टीकों और दवा से मिली प्रतिरक्षा और उसकी प्रभावशीलता के लिए खतरा पैदा कर सकता है। इतना ही नहीं दुनिया भर में जिस तेजी से यह वायरस फैल रहा है, वह अपने आप में चिंता का विषय है। 

अपने इस शोध में शोधकर्ताओं ने ओमिक्रॉन के खिलाफ टीकों द्वारा उत्पन्न एंटीबॉडी क्षमता का परीक्षण किया है। जिसके लिए उन्होंने प्रयोगशाला में ओमिक्रॉन और उसकी नकल के खिलाफ यह परीक्षण किया है। इसके लिए उन्होंने व्यापक रूप से इस्तेमाल किए जाने वाले टीकों मॉडर्ना, फाइजर, एस्ट्राजेनेका, जॉनसन एंड जॉनसन को अपने अध्ययन में शामिल किया है।

पता चला है कि इन टीकों की दोनों खुराक लेने वाले व्यक्तियों में भी अन्य वेरिएंट की तुलना में ओमिक्रॉन के खिलाफ काफी कम प्रतिरक्षा विकसित हुई थी। इतना ही नहीं शोध में यह भी सामने आया है कि पहले से संक्रमित हो चुके लोगों के शरीर में पैदा हुई प्रतिरक्षा ओमिक्रॉन के खिलाफ असरदायक नहीं थी। 

इस वेरिएंट के खिलाफ बूस्टर शॉट भी नहीं दे सकता सुरक्षा

जिन लोगों को दो एमआरएनए टीकों में से किसी एक का भी बूस्टर शॉट दिया गया था, उनके सुरक्षित रहने की संभावना कहीं ज्यादा थी। हालांकि इसके बावजूद उनके द्वारा पैदा हुई प्रतिरक्षा इस वेरिएंट के खिलाफ उतनी असरकारक नहीं थी। 

इस बारे में अध्ययन से जुड़े शोधकर्ता डेविड डी हो ने  एक अखबार को यह जानकारी दी है कि पहले से संक्रमित हो चुके और टीके की दोनों खुराक लेने के बाद भी ओमिक्रॉन वेरिएंट से संक्रमित होने का खतरा बना रहता है। यहां तक की तीसरा बूस्टर शॉट भी इस वेरिएंट के खिलाफ पर्याप्त सुरक्षा नहीं दे सकता है। लेकिन शोधकर्ताओं ने इसे लेने की सलाह दी है क्योंकि यह जो प्रतिरक्षा पैदा करता है उसका फायदा जरुर होगा।

गौरतलब है कि इस शोध में जो निष्कर्ष सामने आए हैं वो काफी हद तक दक्षिण अफ्रीका और यूके में इस वेरिएंट पर किए गए अध्ययनों से मेल खाते हैं। इन अध्ययनों में भी सामने आया था कि टीकों की दो खुराक भी इस वेरिएंट के खिलाफ उतने प्रभावी नहीं हैं। 

अब तक जो जानकारी उपलब्ध है उसके अनुसार

संक्रमण के दौरान यदि शुरुआत में ही इलाज शुरू कर दिया जाए तो मोनोक्लोनल एंटीबॉडी कई लोगों में कोविड को गंभीर होने से रोक सकती है। लेकिन नए अध्ययन से पता चला है कि वर्तमान में जितने भी उपचार उपयोग में है और विकसित किए जा रहे हैं वो ओमिक्रॉन के खिलाफ बहुत कम प्रभावी हैं। शोधकर्ताओं ने केवल चीन में स्वीकृत बीआरआईआई-198 को ही इस वेरिएंट के खिलाफ प्रभावी पाया था। 

अन्य शोधकर्ताओं ने ओमिक्रॉन वेरिएंट में चार नए स्पाइक म्यूटेशन की भी पहचान की है जो वायरस को एंटीबॉडी से बचने में मदद करते हैं। उनके अनुसार यह जानकारी नए संस्करण का मुकाबला करने में मददगार सकती है। हो का सुझाव है कि वैज्ञानिकों को ऐसे टीके और उपचार विकसित करने की जरुरत है जो इस बात का बेहतर तरीके से अनुमान लगा सके कि यह वायरस कैसे विकसित हो रहा है। 

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