ललित मौर्या
क्या आप जानते हैं कि हमारी सांसों के जरिए माइक्रोप्लास्टिक हमारे दिमाग में पैठ बना सकता है। इस बारे में किए गए एक नए अध्ययन में पहली बार वैज्ञानिकों को मस्तिष्क के उस हिस्से में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं, जो सूंघने की क्षमता को नियंत्रित करता है।
यह इस बात का भी सबूत है कि इंसानी शरीर में प्लास्टिक के इन महीन कणों की मात्रा अनुमान से कहीं ज्यादा हो सकती है।
जर्नल जामा नेटवर्क ओपन में प्रकाशित इस अध्ययन के नतीजे दर्शाते हैं कि ब्राजील के साओ पाउलो में पोस्टमार्टम किए गए 15 वयस्कों में से आठ के मस्तिष्क में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी के सबूत मिले हैं। गौरतलब है कि प्लास्टिक के यह बेहद महीन कण मस्तिष्क के घ्राण बल्ब (ऑल्फेक्ट्री बल्ब) नामक हिस्से में मौजूद थे, जोकि हमारे सूंघने की क्षमता को प्रभावित करता है।
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने इस बात पर भी प्रकाश डाला है कि आखिर प्लास्टिक के यह महीन कण मानव शरीर के भीतर कैसे जगह बना रहे हैं। अध्ययन में लिए गए नमूनों में पॉलीप्रोपाइलीन के अंश मिले हैं, जोकि रेशे और कण दोनों के रूप में मौजूद था।
अध्ययन में शोधकर्ताओं को घ्राण बल्ब में 16 तरह के सिंथेटिक पॉलीमर और फाइबर के अंश मिले हैं। इन कणों का आकार 5.5 माइक्रोन से 26.4 माइक्रोन के बीच था। वहीं जो रेशे मिले हैं उनकी औसत लम्बाई 21.4 माइक्रोन थी।
इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल और अन्य अंगों के बाद दिमाग में भी मिले माइक्रोप्लास्टिक्स के सबूत
प्लास्टिक के यह महीन कण शरीर के भीतर कैसे पहुंचे इस बारे में शोधकर्ताओं का मानना है की हवा में मौजूद माइक्रोप्लास्टिक के यह कण शायद इन लोगों की सांस के जरिए मस्तिष्क में पहुंचे होंगें। अध्ययन के मुताबिक घ्राण बल्ब में माइक्रोप्लास्टिक की मौजूदगी मस्तिष्क के अन्य हिस्सों तक इसके पहुंचने के “संभावित मार्ग” की ओर भी इशारा करती है।
गौरतलब है कि हाल ही में अमेरिका के नेशनल इंस्टीट्यूट ऑफ हेल्थ द्वारा साझा किए एक अध्ययन में इस बात की पुष्टि हुई थी कि माइक्रोप्लास्टिक के यह हानिकारक कण इंसानों के दिमागी तक में पैठ बना चुके हैं।
देखा जाए तो मस्तिष्क में इनकी मौजूदगी बेहद चिंता का विषय है क्योंकि ऐसा माना जाता था कि रक्त-मस्तिष्क अवरोध, दिमाग के लिए एक सुरक्षा कवच जैसा है जो रक्त में मौजूद हानिकारक चीजों जैसे विषाक्त कणों आदि से दिमाग को सुरक्षित रखता है। हालांकि इसके बावजूद दिमाग में इन कणों की मौजूदगी बड़े खतरे की ओर इशारा करती है।
प्लास्टिक की पनाहगाह बनता इंसानी शरीर
बता दें कि इससे पहले वैज्ञानिकों इंसानी रक्त, नसों, फेफड़ों, गर्भनाल, लीवर, किडनी, अस्थि मज्जा, प्रजनन अंगों, घुटने और कोहनी के जोड़ों के साथ अन्य अंगों में भी माइक्रोप्लास्टिक्स के मौजूद होने की पुष्टि कर चुके हैं। यहां तक की इंसानों के अंगों के साथ रक्त, दूध, सीमन और यूरीन में भी इसकी मौजूदगी के सबूत मिले हैं।
यह इस बात का भी सबूत है कि कभी जिस प्लास्टिक को वरदान से कम नहीं समझा जाता था, आज वो बढ़ते उपयोग और उचित प्रबंधन की कमी के चलते इंसानों के साथ-साथ पर्यावरण के लिए भी अभिशाप बन चुका है।
दुनिया में आज शायद ही कोई ऐसी जगह बची है, जहां प्लास्टिक के यह महीन कण मौजूद न हों। वैज्ञानिकों को हिमालय की ऊंची चोटियों से लेकर समुद्र की गहराई में यहां तक की हवा और बादल में भी भी प्लास्टिक के इन महीन कणों की मौजूदगी के सबूत मिले हैं।
यहां तक की हमारे भोजन, पानी और जिस हवा में हम सांस लेते हैं उसमें भी यह हानिकारक कण घुल चुके है, जो धीरे-धीरे हमारे शरीर में जगह बना रहे हैं। विशेषज्ञों ने यह भी चेताया है कि प्लास्टिक कोशिकाओं तक में घुसपैठ कर रहा है, और उनमें बदलाव कर रहा है।
सावधान! रक्त और फेफड़ों के बाद अब वैज्ञानिकों को इंसानी नसों में मिले माइक्रोप्लास्टिक के अंश
यह एक बड़े खतरे की ओर भी इशारा है, क्योंकि आज जिस वातावरण में हम सांस ले रहे हैं वो भी स्वास्थ्य के लिए खतरा बन सकती है।
एक अन्य अध्ययन के हवाले से पता चला है कि हम इंसान अपनी सांस के जरिए हर घंटे माइक्रोप्लास्टिक्स के करीब 16.2 कण निगल सकते हैं। निगले गए इस प्लास्टिक्स की मात्रा कितनी ज्यादा है, इसका अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि यदि हफ्ते भर निगले गए इन कणों को जमा किया जाए तो इनसे एक क्रेडिट कार्ड बनाने जितना प्लास्टिक इकट्ठा हो सकता है।
बता दें कि प्लास्टिक के अत्यंत महीन टुकड़ों को माइक्रोप्लास्टिक के नाम से जाना जाता है। इन कणों का आकार एक माइक्रोमीटर से पांच मिलीमीटर के बीच होता है। प्लास्टिक के इन महीन कणों में भी जहरीले प्रदूषक और केमिकल होते हैं जो स्वास्थ्य को गंभीर नुकसान पहुंचा सकते हैं। एक अध्ययन में सामने आया है कि माइक्रोप्लास्टिक के संपर्क में आने के बाद आंत में कैंसर कोशिकाएं तेजी से फैल सकती हैं।
हाल ही में अंतराष्ट्रीय वैज्ञानिको ने प्लास्टिक में करीब 16,325 केमिकल्स के मौजूद होने की पुष्टि की थी। इनमें से 26 फीसदी केमिकल इंसानी स्वास्थ्य के साथ-साथ पर्यावरण दोनों के लिए चिंता का विषय हैं।
(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )