विकास कुमार
उत्तर प्रदेश के आदिवासी बहुल ज़िले सोनभद्र में औद्योगीकरण से होने वाले प्रदूषण के कारण जन स्वास्थ्य की समस्या ने विकराल रूप ले लिया है. इसका सबसे बड़ा उदाहरण है इस क्षेत्र में हवा और पानी मे फ्लोरिड तय मानक से अधिक होने से हज़ारों लोग इसकी चपेट में आ चुके हैं. बच्चे भी फ्लोरोसिस की चपेट में आ रहे हैं, जिससे उनका भविष्य अंधकार में दिख रहा है. वहीं सोनभद्र के चोपन, म्योरुपर, दुद्धी और वभनी ब्लॉक सबसे ज़्यादा प्रभावित ब्लॉक हैं. इसमें करीब 50 हजार की आबादी ऐसे ही इलाके में जी रही है, जहां फ्लोराइड पानी पीने को मजबूर है. वैज्ञानिक चेतना की ख़ास ग्राउंड रिपोर्ट में इस मामले को जाने विस्तार में
फ्लोरोसिस से तबाह पूरा गांव
सोनभद्र के चोपन ब्लॉक के ग्राम पंचायत के पडरच के पड़वा कोड़वारी, पटेल नगर में मायूसी हैं. गांव वाले बातचीत के दौरान बताते हैं कि फ्लोराइड युक्त ज़हरीला पानी पीने से आज इस गांव के सारे लोग फ्लोरोसिस की चपेट में हैं. उनका कहना है कि अब तक इस बीमारी से पचास से अधिक मौत हो चुकी है. हर उम्र के लोग चाहे वे युवा, बच्चें बुजुर्ग हो या महिलाएं, घुटनों में दर्द और कमजोरी, पैरों की हड्डियां टेढ़ी होना , कमर झुकना , दांत पीले पड़ना एक आम बात हो चुकी है.
पिछले 5 साल से फ्लोरोसिस से पीड़ित इस गाँव के निवासी विजय कुमार शर्मा कहते है़ ” रोग की शुरआत दाहिने पैर नहीं उठने से महसूस हुई. इसके बाद दवाई खाना शुरू किया और इलाज़ के लिए बनारस से लेकर लखनऊ तक गया. डॉक्टरों ने मुझे कहा कि फ्लोराइड युक्त पानी पीने के कारण यह समस्या उत्पन हुई. होमियोपैथी की दवा खाते रह गए लेकिन इसका कोई असर नहीं हुआ “. विजय शर्मा सरकार से मांग करते हैं कि वे इस बीमारी से पीड़ित बच्चो का ख़याल रखे और शुद्ध जल की व्यवस्था करे ताकि आने वाले पीढ़ी कम से कम इस बीमारी की चपेट में ना आए.
बच्चों पर भी बुरा असर
आठ से दस साल की उम्र में पहुंचते ही बच्चों के दांत सड़ने लगते हैं. इसमें लड़के और लड़कियां दोनों शामिल हैं. इस गांव में हमने ज़्यादातर बच्चे के दांत सड़े हुए देखे. एक छोटे बच्चे का पैर काफी कमजोर दिखा. स्थानीय लोगों के अनुसार 20 से 25 साल की उम्र तक पहुंचते-पहुंचते लोगों की कमर झुक जा रही है। वहीं 30/35 साल की उम्र आते आते लोग लाठी के साथ चलने के लिए मजबूर हैं. वही इस गांव में व्याप्त ग़रीबी के कारण भी फ्लोरोसिस और घातक बीमारी साबित होती है क्योंकि बेहतर इलाज के अलावा पौष्टिक आहार की भी ज़रूरत होती है नहीं तो फ्लोरोसिस के कारण पीड़ित दूसरी लाइलाज़ बीमारी के भी शिकार होते है़
इस गांव के लोग सरकारी उपेक्षा के शिकार
पीड़ित विजय शर्मा के घर के नजदीक एक हैंडपम्प के पास एक फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगा है जो काफी लंबे समय से निष्क्रिय हो चुका है .
वहीं गांव की एक युवा निवासी मधु पटेल बताती है ” जल निगम में लगी टंकी से पानी नल से पानी हफ्ते में एक बार या कभी कभी महीने में एक बार घरों को मिलता है. हम चापाकल से पाने पीने को मज़बूर है “
हिंदुस्तान में छपी रिपोर्ट में आंकड़ों के अनुसार सोनभद्र के दक्षिणांचल के चार प्रभावित ब्लॉक चोपन, म्योरुपर, दुद्धी और वभनी ब्लॉक के 269 गांवों में वर्ष 2011 से 2015 के बीच जल निगम द्वारा चिंहित किए गए हैंडपंपो में प्रत्येक पर पौने तीन लाख रुपए की लागत से 1100 फ्लोराइड रिमूवल प्लांट लगाए गए थे लेकिन इसमें ज़्यादातर प्रशासनिक अनदेखी के कारण निष्क्रिय होकर जंग खा रहे है़.
औद्योगीकरण से बढ़ता प्रदूषण बड़ा कारण
क्षेत्रफल के हिसाब से उत्तर प्रदेश का दूसरा बड़ा जिला सोनभद्र को ऊर्जा की राजधानी भी कहा जाता है. यह औद्योगिक क्षेत्र चार राज्यों ( मध्य प्रदेश, झारखंड, छत्तीसगढ़, बिहार ) की सीमा से सटा हुआ है. सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में कोयला आधारित 10 पावर प्लांट हैं, जो 21,000 मेगावाट बिजली का उत्पादन करते हैं यानी भारत का लगभग 10 प्रतिशत ऊर्जा का उत्पादन यहीं से होता है. यहाँ बाक्साइट, चूना पत्थर, कोयला और सोना जैसे कई खनिज भी भारी मात्रा में मौजूद है़. आज सिंगरौली-सोनभद्र क्षेत्र में 350 से ज़्यादा कारख़ाने मौजूद है़.
इस क्षेत्र में खनन से उत्तर प्रदेश सरकार को लगभग 27,198 करोड़ रुपए का राजस्व मिलता है. लेकिन इस विकास के मॉडल से स्थानीय आबादी कों सिर्फ विस्थापन, ग़रीबी, प्रदूषण की मार झेलनी पड़ी है. वही स्वतंत्र पत्रकार जगत विश्वकर्मा एल्युमीनियम और कोयला पॉवर प्लांट इस फ्लोरोसिस संबंधित प्रदूषण का मुख्य स्रोत्र मानते हैं. कोयले-पत्थर की गर्द पानी-हवा-मिट्टी को प्रदूषित कर रही हैं. वे आगे कहते हैं इन उद्योगों से टनों की तादाद में रासायनिक कचरा बिना किसी प्रोसेसिंग के नदी-नालों में फेंका जा रहा. पहले कोयला पावर प्लांट भी रिहंद नदी में फ्लाई ऐश को सीधे फेंकती थी जिसमे फ्लोराइड, आर्सेनिक , मरक्यूरी जैसे खतरनाक केमिकल्स मैजूद थे जिससे मछलियां तक मरी पाई गई.
इसी पानी को सोनभद्र की बहुसंख्यक आबादी पीती थी. जगत विश्वकर्मा बनवासी सेवा आश्रम में कार्यकर्ता के तौर पर काम करते है.वे लंबे समय से पर्यावरण जागरूकता के क्षेत्र में काम कर रहे है. कई फ्लोरोसिस प्रभावित गांवों में काम के दौरान वो खुद भी फ्लोरोसिस से पीड़ित हुए .उनके द्वारा NGT में दिए पेटीशन का नतीजा था कि NGT ने औद्योगिक इकाइयों को निर्देश दिया कि क्षेत्र के नागरिकों को शुद्ध पेयजल उपलब्ध करवाया जाए. फ्लोराइड युक्त वेस्ट को रिहंद बाँध में न डालें। लेकिन सख्त निर्देशों के बाद भी लंबे समय तक औद्योगिक इकाइयों के कान में जू तक नही रेंगा. लंबे संघर्ष के बाद कुछ कंपनियों ने इसे संज्ञान में लिया और राख को ट्रीट कर निस्तारण पर काम कर रही लेकिन अभी अभी कई इकाई द्वारा नियमित तौर पर लापरवाही देखी जाती है
विभिन्न सर्वे में पाया गया कि फ्लोराइड की मात्रा तय मानक से कई गुना ज्यादा
वही दिल्ली स्थित संगठन सेंटर फॉर साइंस एंड एनवायरमेंट (सीएसई) ने वर्ष 2012 में सोनभद्र-सिंगरौली में सर्वे किया जिसमें यहाँ के लोगों के खून, नाखून और बालों की जांच की गई और बाद में जारी रिपोर्ट में फ्लोराइड मात्रा को 2 मिलीग्राम से ज्यादा है. जबकि पानी में फ्लोराइड की मात्रा का तय मानक प्रति लीटर एक मिलीग्राम है. वही बीते कुछ वर्षों में पर्यावरण अध्ययन से जुड़ी विभिन्न संस्थाओं द्वारा की गई रिपोर्ट बताती है कि यहां के पानी में फ्लोराइड की मात्रा अब तय मानक से कई गुना बढ़कर 14 मिलीग्राम तक पहुंच गई है. इसका असर यह है अब इस ज़िले में बच्चे जन्म से विकलांग हो रहे हैं
सामाजिक संगठन पीड़ितों की मदद करने के लिए आई आगे
वही सोनभद्र जिले में 1954 से काम कर रही सामाजिक संगठन बनवासी सेवा आश्रम भी लंबे समय से कानूनी लड़ाई और सामाजिक आंदोलन के द्वारा पीड़ितों को स्वच्छ जल और न्याय दिलाने का प्रयास कर रही. सितंबर 2020 से अब तक आश्रम 1793 से अधिक लोगों का स्वास्थ्य सर्वेक्षण कर चुका है। आश्रम ने प्रभावित ब्लॉक्स के जल स्रोतों के नमूनों का परीक्षण किया है। इसके सर्वेक्षण में पाया गया है कि गोविंदपुर में 33 स्रोतों में से 9 स्रोत, कुसाम्हा में 16 स्रोत पीने के पानी के लिए अनुपयुक्त हैं। कुसाम्हा में 579 लोगों और गोविंदपुर में 302 व्यक्तियों के मूत्र के नमूने में 18.9 मिलीग्राम तक फ्लोराइड पाया गया। सर्वे और विश्लेषण के बाद आश्रम ने 100 परिवारों का चयन किया है जिन्हें पौष्टिक आहार उपलब्ध कराया जाएगा
बदहाल जनस्वास्थ्य को सुधारने की सरकार की बड़ी ज़िम्मेदारी
फ्लोरोसिस से बचाव के लिए जल निगम की बड़ी जिम्मेदारी है कि सभी निष्क्रिय फ्लोराइड फ़िल्टर प्लांट को ठीक करके बहाल करें ताकि लोग ज़हरीले पानी को पीने को मजबूर ना हो. प्रशासन NGT द्वारा दिए निर्देशो का पालन कड़ाई से पालन करवाए ताकि औद्योगिक इकाइयों बेलगाम होकर खतरनाक रसायन से पर्यावरण और स्वास्थ्य का नुकसान ना करे. पीड़ितों को उचित मुआवज़ा दिया जाए और स्वच्छ पौष्टिक आहार की व्यवस्था भी करे.
विकास कुमार स्वतंत्र पत्रकार और रिसर्चर है. वे वैज्ञानिक चेतना के साथ भी जुड़े हैं