देश में जनता की जिंदगी से खिलवाड़ करने का नजारा न केवल लॉकडाउन में देखने को मिला था, बल्कि लॉकडाउन के बाद भी देखने को मिल रहा है। देश की स्वास्थ्य व्यवस्था कैसी है? यह बात किसी से छिपी नहीं है। जहाँ एक तबका इलाज के अभाव में दम तोड़ रहा है, तो वहीं दूसरा तबका गलत इलाज से मौत के मुँह में समाता जा रहा है। इसके खासकर दो मुख्य कारण हैं, जिसमें एक है घटिया स्वास्थ्य व्यवस्था और दूसरा है नकली या बगैर मान्यता प्राप्त दवाओं का कारोबार। जो यह साबित करता है, कि देश में जनता की जिंदगी के साथ भारी खिलवाड़ किया जा रहा है। यह बात ऐसे ही नहीं कही जा रही है, बल्कि कंसल्टेंट फिजिशियन और डायबेटोलॉजिस्ट की सर्वे रिपोर्ट में सनसनीखेज खुलासा हुआ है।

भारत के निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में साल 2019 में इस्तेमाल की गयी 47 प्रतिशत से अधिक एंटीबायोटिक दवाओं के लिए केंद्रीय औषधि नियंत्रक की मंजूरी नहीं ली गई थी। ’द लांसेट’ पत्रिका में ‘रीजनल हेल्थ- साउथ ईस्ट एशिया’ में प्रकाशित शोध में यह जानकारी दी गई है। शोध में पता चला है कि भारत में साल 2019 में जिन एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग किया गया, इसमें सबसे अधिक (7.6 प्रतिशत) एजिथ्रोमाइसिन 500mg गोली इस्तेमाल की गई। इसके बाद (6.5 प्रतिशत) सेफिग्जाइम 200mg गोली का उपयोग किया गया।

अमेरिका के बोस्टन विश्वविद्यालय और पब्लिक हेल्थ फाउंडेशन ऑफ इंडिया, नई दिल्ली के शोधकर्ताओं ने निजी स्वास्थ्य क्षेत्र में एंटीबायोटिक दवाओं के इस्तेमाल की समीक्षा की। भारत में 85 से 90 प्रतिशत तक एंटीबायोटिक दवाओं का इस्तेमाल किया जाता है। इस दौरान लगभग 5000 दवा कंपनियों के उत्पाद रखनेवाले 9 हजार स्टॉकिस्ट से डेटा एकत्र किया गया। इन आँकड़ों में सार्वजनिक स्वास्थ्य सेवाओं के माध्यम से दी जानेवाली दवाएं शामिल नहीं थीं। हालांकि इस शोध और राष्ट्रीय स्वास्थ्य लेखा अनुमानों के अनुसार देश में जितनी भी दवाएं बेची जाती हैं, उनमें इनका हिस्सा 15 से 20 प्रतिशत से भी कम है।

शोधकर्ताओं ने पाया कि पिछले अनुमानों की तुलना में एंटीबायोटिक दवाओं की खपत की दर में कमी आई है, लेकिन बैक्टीरिया से होनेवाले विभिन्न रोगों से व्यापक रूप से लड़नेवाली एंटीबायोटिक दवाओं का अपेक्षाकृत काफी अधिक इस्तेमाल हुआ है। शोध के निष्कर्षों से पता चलता है, कि 2019 में वयस्कों के बीच डिफाइन्ड डेली डोज (प्रतिदिन डोज की दर) 5,071 मिलियन रही। शोध के अनुसार भारत में 47.1 प्रतिशत एंटीबायोटिक दवाओं को बिना केंद्रीय औषधि नियंत्रक की मंजूरी के इस्तेमाल किया गया।

किसी बीमारी को प्रभावी तरीके से कंट्रोल करने के लिए एंटीबायोटिक्स दी जाती है। प्रभावी होने के बावजूद बिना डॉक्टर की सलाह के इन्हें लेना खतरनाक हो सकता है। एंटीबायोटिक दवाएं आसानी से उपलब्ध हो जाती है। इस कारण बहुत से लोग इन्हें सामान्य बीमारियों में भी लेने लगे हैं। अक्सर हम लोग सिरदर्द, पेटदर्द या बुखार होने पर बिना डॉक्टर की सलाह लिए कोई भी एंटीबायोटिक दवाई ले लेते हैं। लेकिन जरूरत से अधिक एंटीबायोटिक दवाई का सेवन करने पर डायरिया जैसी पेट की गंभीर बीमारियां हो सकती है। अधिक एंटीबायोटिक का सेवन आपके लिए नुकसानदायक साबित हो सकता है। गलत एंटीबायोटिक लेना भी एक समस्या बन सकता है।

एंटीबायोटिक से बैक्टीरिया अपने आप को इस तरह बदल लेते हैं कि दवाई, कैमिकल्स या इंफेक्शन हटाने वाले किसी भी इलाज का इन पर या तो बिल्कुल ही असर नहीं पड़ता या फिर बहुत कम असर पड़ता है। अगर आप भी अगर सेहत संबंधी छोटी-छोटी समस्याओं के लिए एंटीबायोटिक दवाइयां लेते हैं तो सावधान हो जाएं, क्योंकि आपकी ये आदत आपकी सेहत को कई तरह से नुकसान पहुंचा सकती है।

विश्व स्वास्थ्य संगठन (डब्ल्यूएचओ) ने ड्ग्स रेजिस्टेंट बैक्टेरिया की ग्रोथ को कम करने की सिफारिश के लिए कुछ कदम उठाने आवश्यकता बताई है। इसमें सर्टिफाइड हेल्थ प्रोफेशनल के प्रस्क्राइब करने पर ही एंटीबायोटिक्स का इस्तेमाल करें। एंटीबायोटिक दवाओं का उपयोग करने पर अपने डॉक्टर की सलाह का पालन करें। बची हई एंटीबायोटिक्स को कभी भी किसी को शेयर नहीं करें। वहीं हेल्थ वर्कर्स अपने हाथों, उपकरणों और पर्यावरण को साफ करके संक्रमण…

घातक

लैंसेट में छपी एंटीबायोटिक दवाओं के बेअसर रहने से होनेवाली मौतों का अनुमान लगाने वाली ये रिपोर्ट 204 देशों में किए गए विश्लेषण के बाद तैयार की गई. अंतरराष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम की ओर से किए गए इस विश्लेषण का नेतृत्व अमेरिका के वाशिंगटन विश्वविद्यालय ने किया.

इस टीम ने अनुमान लगाया कि वर्ष 2019 में दुनिया भर में ऐसी बीमारियों से 50 लाख तक लोगों की मृत्यु हुई जिनमें एएमआर की भूमिका रही. ये उन 12 लाख मौतों के अलावा है जिनके लिए सीधे-सीधे एएमआर वजह था. यानी लगभग 60 लाख से ज़्यादा लोगों की मौत के पीछे एएमआर की भूमिका हो सकती है.

इसकी तुलना यदि दूसरी बीमारियों से की जाए तो समझा जाता है कि उसी वर्ष एड्स से 860,000 और मलेरिया से 640,000 लोगों की मौत हुई.

एएमआर से होने वाली ज़्यादातर मौतें निमोनिया जैसे लोअर रेस्पिरेटरी इन्फेक्शन यानी फेफड़ों से जुड़े संक्रमण या ब्लडस्ट्रीम इन्फेक्शन से हुईं जिससे कि सेप्सिस हो सकता है.

एमआरएसए (मेथिसिलिन प्रतिरोधी स्टैफिलोकोकस ऑरियस) विशेष रूप से घातक था. वहीं ई. कोलाई और कई अन्य बैक्टीरिया से होनेवाली बीमारियों के लिए भी दवाओं के बेअसर रहने को वजह माना गया.

शोध के लिए अस्पतालों से मरीज़ों के रिकार्ड्स, अध्ययनों और अन्य डेटा स्रोतों के आधार पर बताया गया कि छोटे बच्चों को सबसे अधिक ख़तरा था. एएमआर से जुड़ी मौतों में हर पाँचवाँ मामला किसी पाँच साल से कम उम्र के बच्चे का था.

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