विकास शर्मा

जेम्स वेब टेलीस्कोप की मदद से वैज्ञानिकों ने ग्रह निर्माण की प्रक्रिया के बारे में एक अहम खुलासा किया है. टेलीस्कोप के मिड इन्फ्रारेड इंस्ट्रूमेंट के जरिए उन्होंने सूर्य के जैसे चार तारों की डिस्क का अध्ययन कर बाहरी हिस्से से बर्फ के कंकड़ से भाप अंदर की ओर आकर ग्रह निर्माण को संभव बनाती है. 

ब्रह्माण्ड में ग्रहों का निर्माण एक बहुत ही जटिल लंबी और बहुत सारी प्रक्रियाओं के नतीजे वाली प्रक्रिया है जिसमें करोड़ों से अरबों साल का समय लगता है. इसमें कोई हैरानी की बात नहीं कि अब तक वैज्ञानिक गहन अवलोकन के बावजूद यह पता करने में लगे हैं कि आखिर ऐसा कैसे हुआ था. समय समय पर इसे लेकर कई तरह के सिद्धांत दिए जाते है. हाल ही में नासा और ईसा के जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप की मदद से वे इस प्रक्रिया का खुलासा करने में एक सफल हुए हैं जिसमें वाष्पकृत पानी के उपयोग की अहम भूमिका है. इसके लिए शोधकर्ताओं को जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप के अवलोकनों की खासी मदद मिली.

बाहरी डिस्क से अंदर आते पथरीले कंकड़
शोधकर्ताओं ने भाप वाली प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क का अवलोकन किया और जिससे वे उस भौतिक प्रक्रिया की पुष्टि कर सके जिसमें बर्फ की परत वाले ठोस पदार्थ डिस्क यानी चक्रिका के बाहरी क्षेत्र से पथरीले ग्रह वाले इलाके में आते हैं. अभी तक कई सिद्धांत लंबे समय से बताते आए हैं कि बाहरी प्रोटोप्लैनेटरी डिस्क की ठंड में बने बर्फीले कंकड़ ग्रह निर्माण की प्रक्रिया में बीज की तरह काम करते हैं. यहीं से धूमकेतुओं का भी उदय होना माना जाता है.

भाप में बदलने का अवलोकन
इस सिद्धांत में का प्रमुख अनुमान यही है कि बर्फीले कंकड़ जब गर्म क्षेत्र में प्रवेश करते हैं तो ये भाप में बदल जाते हैं जिसका अवलोकन जेम्स वेब स्पेस टेलीस्कोप ने किया और बाहरी डिस्क के बर्फीले कंकड़ का आंतरिक डिस्क की भाप से सहसंबंध का खुलासा हो सका. इस नतीजे ने वेब के जरिए इस विषय पर पड़ताल की संभावनाएं खोलने काम किया है.

चार नवजात तारों की डिस्क का अध्ययन
इस अध्ययन में शोधकर्ताओं ने वेब के मिड इन्फ्रारेड इंस्ट्रूमेंट (एमआईआरआई) का उपयोग कर दो सुगठित और दो विस्तृत डिस्क का अध्ययन किया जो कि सूर्य जैसे तारों के आसपास मौजूद थीं.  सभी चारों तारे करीब 20 से 30 लाख साल पुराने है जो कि खगोलीय समय के अनुसार नवजात कहे जा सकते हैं.

पानी या भाप की मात्रा में विविधता
वेब अवलोकनों के जरिए वैज्ञानिकों ने यह पता लगाया कि क्या ज्यादा बर्फीले कंकड़ पहुंचने से सुगठित चक्रिकाओं के पथरीले ग्रह वाले इलकों में अधिक पानी है. उन्होंने पाया कि बड़ी डिस्क की तुलना में सुगठित डिस्क में ज्यादा पानी है. उन्होंने पाया कि बड़े ग्रह  इस प्रक्रिया में बाधक के तौर पर भूमिका निभाते हैं. ऐसा हमारे सौरमंडल में गुरु ग्रह ने किया होगा.

शुरु में नतीजों ने उलझाया
जब शोधकर्ताओं को आंकड़े मिले तो उन्हें नतीजे अजीब से लगे. उन्होंने बताया कि शुरुआती दो महीनों में वे इन शुरुआती नतीजे में ही उलझे रहे जो बता रहे थे कि सुगठित चक्रिकाओं में ठंडा पानी था और बड़ी चक्रिकाओं में गर्म पानी था. इसका कोई अर्थ नहीं निकलता था. क्योंकि उन्हनों ने समान तापमान वाले तारों से ही अवलोकन के आंकड़े हासिल किए थे.

कैसे साफ हुई तस्वीर
लेकिन जब शोधकर्ताओं ने सुगठित चक्रिका के आंकड़ों को बड़ी चक्रिकाओं के आकड़ों के साथ देखा तो उन्हें तस्वीर साफ होती दिखी और पता चला कि सुगठित चक्रिका की स्नोलाइन, जहां बर्फ सीधे भाप में बदलती है, के बहुत ही करीब, नेप्च्यून के कक्षा से दस गुना अधिक पास, ठंडा पानी अधिक है. उन्होंने पाया कि इस अधिक पानी की ही ग्रह निर्माण में अधिक अहम भूमिका है.

शोधकर्ताओं ने इस जानकारी को हासिल करने के लिए एमआईआरआई के मीडियम रिजोल्यूशन स्पैक्ट्रोमीटर (एमआरएस) नाम के उपकरण का उपयोग किया जो कि चक्रिकाओं की भाप को पकड़ने में ज्यादा संवेदनशील है. इसी के अवलोकन के नतीजों की वजह से ही शोधकर्ता इस पुरानी धारणा की पुष्टि कर सके कि डिस्क के बाहरी हिस्से से ही अंदर के पथरीले ग्रह के इलाकों में भाप और धूल पहुंचती है जिससे ग्रहों का निर्माण होता है.

      (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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