मिट्टी हर जगह एक रंग की नहीं होती है. भौगोलिक परिस्थितियों के अनुसार इसके अन्य गुणों के साथ रंग में भी बदलाव आता है. आखिर मिट्टी के अलग- अलग रंग क्यों होते हैं, क्या केवल जगह बदलने से ही मिट्टी का रंग बदल जाता है और क्या वास्तव में मिट्टी के रंग से काफी कुछ जानकारी मिल पाती है. इन सवालों के जवाब बहुत रोचक हैं.

कहा जाता है कि मिट्टी को बनने में हजारों से लाखों साल का समय लग जाता है. मिट्टी का स्वरूप भी हर जगह पर एक सा नहीं है. हर जगह की मिट्टी के गुणो में अंतर देखने को मिलता है और सबसे बड़ा अंतर मिट्टी का रंग होता है. वैज्ञानिक, कृषि विशेषज्ञ आदि सभी मिट्टी का वर्गीकरण रंगों के आधार पर करते हैं. लेकिन एक अहम सवाल यही है कि आखिर मिट्टी का रंग बदलता कैसे है या क्या है जिससे मिट्टी का रंग निर्धारित होता है क्या रंग की वजह से मिट्टी की गुण प्रभावित होते हैं या उल्टा होता है. ऐसे कई सामान्य सवाल हैं जो एक बार तो जटिल विज्ञान के प्रश्न लगते हैं, पर इनके जवाब रोचक हैं.

कई कारकों का असर
दरअसल मिट्टी का रंग देने का प्रमुख कारण उसकी रासायनिक संरचना होती है लेकिन इस पर भी कारकों का प्रभाव होता है यानि ये कारक मिट्टी के रंग को भी प्रभावित करते हैं. रंग में स्थान के कारण भी अतंर देखने को मिलता है. इनमें  तापमान, बारिश जैसे जलवायु कारकों के अलावा मिट्टी के मौजूद जैविक तत्व भी उसके रंग का प्रभावित करने में योगदान देते हैं.

मिट्टी में लाल रंग का कारक
लाल रंग की मिट्टी बहुत से क्षेत्रों में पाई जाती है जिसमें कई बार कत्थई जैसे रंग होने का भी आभास होता है. इसे लाल रंग की मिट्टी ही कहते हैं. मिट्टी में लाल के होने का कारण उसमें अमूमन आयरन ऑक्साइड की उपस्थिति की संकेत है. इसी को जंग भी कहते हैं. मिट्टी जितने अधिक लाल रंग की होती है, उतनी ही अधिक पुरानी होती है.

और भी होते हैं लाल रंग के कारण
लेकिन ऐसा नहीं है कि केवल आयरन ऑक्साइड के कारण ही मिट्टी में लाल रंग होसकता है कई  जगह कोकोनीनो बलुआ पत्थर भी लाल रंग का कारण होता जो कि एरिजोना के सेडोना के पास की चट्टानों में मिलता है. वहीं कई बार मिट्टी लाल रंग की चट्टान से नहीं बनती और फिर भी उसमें लाल रंग आ जाता है क्योंकि उसकी धूल में मिला लोहा आक्सीकृत हो जाता है और रंग में लालिमा आ जाती है. ऐसी मिट्टी में समय के साथ आयरन ऑक्साइड की मात्रा बढ़ती जाती है और मिट्टी लाल होती रहती है.

पीला रंग क्यों
गौर करने वाली बात यह है कि कई इलाकों में पीले रंग की मिट्टी भी बहुत अधिक मात्रा में पाई जाती है. इस रंग की वजह भी आयरन ऑक्साइड की मात्रा होती है. जब भी मिट्टी में आयरन ऑक्साइड की मात्रा थोड़ी कम मात्रा में होती है तब मिट्टी का रंग लाल होने की वजह से पीला हो जाता है. इतना ही नहीं इसका अन्य विशेषताओं पर भी खासा असर होता है.

गहरे या काले रंग की मिट्टी
जिन मिट्टी में रंग गहरे रंग का या काले रंग के आसपास का रंग होता है, उनमें ज्यादा जैविक पदार्थ होने की मात्रा होने की संभावना होती है. जिन शीतोष्ण जलवायु में पर्याप्त वर्षा होती है वहां कि मिट्टी में ह्यूमस या खाद (मृत पौधों का विखंडित पदार्थ) होने के कारण वह गहरे रंग की होती है. ऐसी मिट्टी कृषि के लिए बहुत उपयोगी होती हैं.

हलके रंग में कमी
वहीं दूसरी ओर हल्के रंग की मिट्टी में कम ह्यूमस या खाद होती है. ऐसी मिट्टी वर्षावनों या रेगिस्तान में पाई जाती है. इससे पता चलता है कि मिट्टी में पोषण की कमी और ह्यूमस गायब हो गया है. लाल और पीले रंग की मिट्टी में भी ह्यूमस नहीं होता है और इसिलिए वे भी कृषि के लिहाज से बहुत अच्छी नहीं मानी जाती हैं.

सफेद मिट्टी बताता है कि या तो उसमें चूना है या फिर उसमें काफी नमक है. कहीं कहीं सफेद रंग क्वार्ट्जाइट जैसे पदार्थों की वजह से भी आ जाता है. प्रायः इस तरह की मिट्टी रेगिस्तान में दिखती है. यह मिट्टी सभी जगह ऊपरी हलकी परत के नीचे मिलती है. वहीं नमक को पानी अपने साथ किसी झील में ला जाता है और वह सूख कर नमक छोड़ जाता है जिससे मिट्टी सफेद रंग की दिखने लगती है. खेती के लिहाज से ऐसी मिट्टी बहुत खराब होती है.

       (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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