ललित मौर्या

भारत में वायु प्रदूषण से संघर्ष की शुरूआत जन्म से पहले ही हो जाती है। जो आगे चलकर जीवन भर चलती रहती है। गौरतलब है कि गर्भावस्था के दौरान जब माएं वायु प्रदूषण के संपर्क में आती हैं तो इसका असर न केवल उनके स्वास्थ्य पर बल्कि साथ ही उनके भ्रूण के स्वास्थ्य पर भी पड़ता है। जो आगे चलकर जन्म के समय बच्चों में कई विकृतियों को जन्म देता है।

इसको लेकर हाल ही में किए एक नए अध्ययन से पता चला है कि भारत में ओजोन प्रदूषण का संपर्क जन्म के समय नवजातों के वजन में कमी की वजह बन रहा है। रिसर्च से पता चला है कि भारत में 2019 के दौरान गर्भवती महिलाओं के पीक सीजन में ओजोन के संपर्क में आने से नवजातों के वजन में औसतन 54.6 ग्राम की कमी दर्ज की गई थी। इसी तरह 2003 में यह आंकड़ा 57.9 ग्राम दर्ज किया गया था।

निम्न और मध्यम आय वाले देशों पर किए इस अध्ययन से पता चला है कि गर्भावस्था के दौरान जमीनी स्तर पर ओजोन के उच्च स्तर के संपर्क में आने वाली माएं साफ हवा में सांस लेने वाली महिलाओं की तुलना में कम वजन वाले बच्चों को जन्म देती हैं। इस अध्ययन के नतीजे जर्नल साइंस एडवांसेज में प्रकाशित हुए हैं।

गौरतलब है कि जन्म के समय वजन भ्रूण के विकास का एक महत्वपूर्ण संकेतक है। जब किसी शिशु का जन्म के समय वजन ढाई किलोग्राम से कम होता है तो उसे सामान्य से कम माना जाता है। जो दर्शाता है कि गर्भावस्था के दौरान मां को पर्याप्त पोषण नहीं मिला या फिर वो स्वास्थ्य संबंधी समस्याओं से जूझ रही थी।

इसी तरह जिन शिशुओं का जन्म के समय वजन सामान्य से कम होता है उन्हें आगे चलकर भविष्य में स्वास्थ्य सम्बन्धी समस्याओं का कहीं ज्यादा सामना करना पड़ता है। शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इसकी वजह से उनमें ह्रदय सम्बन्धी बीमारियों और अन्य कारणों से मृत्यु दर की आशंका बढ़ जाती है।

यदि  2015 के आंकड़ों को देखें तो जन्म लेने वाले 14.6 फीसदी बच्चों का वजन सामान्य से कम होता है। कुल मिलकर दो करोड़ से ज्यादा बच्चे इस समस्या से पीड़ित थे। इनमें से 91 फीसदी बच्चों का जन्म निम्न और मध्यम आय वाले देशों में हुआ था। इसमें से 48 फीसदी शिशुओं का जन्म दक्षिण एशिया में जबकि 24 फीसदी का उप-सहारा अफ्रीका में हुआ था।

जितना ज्यादा प्रदूषण, उतना ज्यादा खतरा

इस नए अध्ययन में यह भी सामने आया है कि ओजोन के स्तर में हर 10 भाग प्रति बिलियन (पीपीबी) की वृद्धि से जन्म के समय नवजात के वजन में 19.9 ग्राम की कमी आ सकती है। विश्लेषण के मुताबिक ओजोन के संपर्क में आने से जन्म के समय वजन में लगातार कमी देखी गई और इस मामले में ओजोन की कोई भी सुरक्षित सीमा नहीं पहचानी गई।

जन्म के समय बच्चों के वजन पर ओजोन प्रदूषण के पड़ते प्रभावों को समझने के लिए शोधकर्ताओं ने 2003 से 2019 के बीच भारत सहित 54 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में 697,148 नवजात शिशुओं के आंकड़ों का विश्लेषण किया है।

अध्ययन में शामिल 51.6 फीसदी नवजात लड़के थे। इनका औसत वजन करीब तीन किलोग्राम था। इस अध्ययन में शामिल करीब 39.1 फीसदी यानी 272,741 महिलाऐं भारतीय थी। आंकड़ों में यह भी सामने आया है कि इस दौरान पीक सीजन में ओजोन का स्तर 52.67 पीपीबी था। जो उत्तर भारत में सबसे ज्यादा, जबकि कैरिबियन में सबसे कम था।

इन आंकड़ों के आधार पर शोधकर्ताओं ने 123 निम्न और मध्यम आय वाले देशों में ओजोन प्रदूषण के कारण जन्म के समय नवजात शिशुओं के वजन में कमी का आंकलन किया है। रिसर्च के मुताबिक इन 123 देशों में जन्म के समय बच्चों के वजन में औसत कमी 43.8 ग्राम दर्ज की गई। शोधकर्ताओं के मुताबिक ओजोन का सबसे ज्यादा प्रभाव दक्षिण एशिया, मध्य पूर्व और उत्तरी अफ्रीका में देखा गया।

आंकड़े दर्शाते हैं कि नवजातों के वजन पर ओजोन का सबसे ज्यादा प्रभाव जॉर्डन में दर्ज किया गया जहां उनके वजन में औसतन 64.3 ग्राम की कमी दर्ज की गई। इसी तरह फिलिस्तीन में 62.5 ग्राम, ईराक में 57.1 ग्राम और मिस्र में 56.9 ग्राम की कमी रिकॉर्ड की गई। वहीं भारत में यह आंकड़ा 54.6 ग्राम दर्ज किया गया है।

गौरतलब है कि इससे पहले भी वायु प्रदूषण के भ्रूण के विकास पर पड़ते प्रभावों को उजागर किया गया है। उदाहरण के लिए, एक वैश्विक अध्ययन से पता चला है कि वातावरण में मौजूद सूक्ष्म कण यानी पीएम2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि, जन्म के समय नवजात के वजन में औसतन 22 ग्राम की कमी से जुड़ी है। इसी तरह वजन में आने वाली औसतन 30 ग्राम की कमी के लिए सीधे तौर पर पीएम2.5 को जिम्मेवार माना जा सकता है।

इसी तरह पीएम2.5 के स्तर में हर 10 माइक्रोग्राम प्रति घन मीटर की वृद्धि जन्म के समय कम वजन होने के जोखिम में 11 फीसदी का इजाफा कर सकती है। इसी तरह इसकी वजह से नवजात के समय से पहले जन्म लेने का जोखिम भी 12 फीसदी बढ़ जाता है।

हालांकि इससे पहले किसी भी अध्ययन में निम्न और मध्यम आय वाले देशों में जन्म के समय वजन पर ओजोन के पड़ते प्रभावों का आकलन नहीं किया गया था। समस्या यह है कि निम्न और मध्यम आय वाले देशों में खासकर दक्षिण एशिया और उप-सहारा अफ्रीका में आधे से अधिक नवजात शिशुओं का जन्म के समय वजन नहीं लिया जाता। ऐसे में इससे जुड़े सबूत काफी हद तक केवल उच्च आय वाले देशों तक ही सीमित हैं।

एक विश्लेषण से पता चला है कि यदि एक गर्भवती महिला अपनी पूरी गर्भावस्था के दौरान ओजोन के संपर्क में रहती है तो इसके स्तर में हर दस भाग प्रति बिलियन की वृद्धि के साथ उसके बच्चे का वजन 4.6 से 27.3 ग्राम तक कम हो सकता है।

अमेरिका, चीन और कोरिया में किए ऐसे ही अध्ययनों से पता चला है कि ओजोन के स्तर में हर दस पीपीबी की वृद्धि के साथ बच्चे का जन्म के समय वजन 5.7 से 7.9 ग्राम तक कम हो सकता है। ऐसे में शोधकर्ताओं के मुताबिक यदि बढ़ते प्रदूषण को नियंत्रित करने के लिए प्रभावी नीतियां बनाई जाएं तो वो शिशुओं को स्वस्थ बनाने में मददगार साबित हो सकती हैं।        

(‘डाउन-टू-अर्थ’ से साभार )

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