विकास शर्मा

जीव विज्ञान की दुनिया में चार्ल्स डार्विन के कार्यों की प्रासंगिकता आज भी है जितनी पहले थे. ये सच है कि आज कि दुनिया में हमारे पास अनुवाशिंकी,आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के साथ उन्नत तकनीक और बेहतर जानकारी है जबकि नए तरह कै वायरस आदि की कई नई चुनौतियां भी हैं.

जीव विज्ञान में बहुत ही बड़ा कार्य करने वाले चार्ल्स डार्विन अंग्रेजी प्रकृतिविद, भूवैज्ञानिक और जीवविज्ञानी थे जिनका उद्भव जीवविज्ञान विशेष योगदान था. उन्होंने प्राणियों में विकासवाद और विविधता का सिद्धांत दिया था जिसे आज भी जीवविज्ञान की रीढ़ माना जाता है. यूं तो उनके शोधकार्यों में 20 साल से ज्यादा का समय लगा था, लेकिन उनके नतीजे उनके समय में कई लोगों को पचे नहीं थे. उनके सिद्धांत की जब भी परीक्षा हुई है, वे खरे उतरे हैं. 19 अप्रैल को उनकी पुण्यतिथि पर हम एक अहम सवाल पर विचार करेंगे कि आधुनिक विज्ञान के दौर में उनकी प्रासंगिकता कितनी कायम है.

12 फरवरी 1809 को इंग्लैंड के श्रुएसबरी, श्रोपशायर के एक सम्पन्न परिवार में पैदा हुए चार्ल्स डार्विन को परंपरागत पढ़ाई में कभी दिलचस्पी नहीं रही. अपने डॉक्टर पिता के सहायक रहे और डार्वि ने भूगर्भविज्ञान भी पढ़ा लेकिन प्रकृति विज्ञान में उनकी रुचि धीरे धीरे ही विकसित हुई और गहरी होती चली गई. 1831 में 22 साल की उम्र में ही उन्हें बीगल नाम के जहाज से दुनिया घूमने का मौका मिला और 5 साल की यात्रा में उन्होंने पक्षियों और पौधों के बहुत से जीवाश्म का अध्ययन किया.

चार्ल्स डार्विन अधिकांश योगदान उनके विकासवाद की किताब ऑन द ओरिजिन ऑफ स्पीशिस के जरिए रहा. अपने गहरे अध्ययन और अवलोकन के आधार पर उन्होंने विभिन्न प्रजातियों के बीच सरंचना, आकार, रंग, क्षमताएं आदि के आधार पर अंतर कर उनके गुणों को परिभाषित किया और बताया कि ये गुण कैसे विकसित हुए और उनकी प्रजातियों के विकास में क्या भूमिका थी. इसी के जरिए उन्होंने अपनी “अस्तित्व के लिए संघर्ष” की धारणा को प्रतिपादित किया.

डार्विन के अनुसार प्रजातियों में अनुकूलन और विविधता ही उन्हें अपना अस्तित्व बनाए रखने में मददगार रहती है. इससे प्रजातियों के विलुप्त होने या ना होने की वजहों का भी खुलासा होता है. डार्विन ने बताया की जीव एक ही और समान पूर्वज के वंशज हैं जिनमें प्राकृतिक चयन की प्रक्रिया द्वारा समय के साथ उनमें विविधता आती गई. इन सब तरह की व्याख्याओं की वजह से उन्हें मूल तौर से उस सिद्धांत का समर्थन करने वालों का विरोध झेलना पड़ा जिसमें माना गया कि सभी कुछ ईश्वर या परमशक्ति द्वारा नियोजित है.

डार्विन के सिद्धांतों को कई तरह की समस्याओं के हल के खोज का जरिया माना जाता है और यह परीक्षण आज भी जारी है. आज दुनिया में जिस तरह से वायरस के खिलाफ इंसानों की जंग चल रही है वह अभूतपूर्व है और डार्विन के सिद्धांतों के मुताबिक इंसान खुद को बचाए रखने के लिए कोई ना कोई तरीका खोज लेगा या जैविक रूप से आंतरिक तौर पर ही ईजाद कर लेगा जिससे वह वायरसों पर विजय हासिल करेगा नहीं तो उसका खुद ही अस्तित्व संकट में आ जाएगा. क्योंकि इंसान की तरह वायरस पर भी अस्तित्व के लिए संघर्ष और विविधता वाला सिद्धांत लागू हो रहा है.

इसी तरह से जलवायु परिवर्तन भी एक तरह से डार्विन के सिद्धांतों की परीक्षा का जरिया बन गया है. और देखा जा रहा है कि किसी तरह से प्रजातियां खुद में अनुकूलन के लिए बदलाव ला रही हैं. ऐसा ही कुछ आर्टिफीशियल इंटेलिजेंस के बारे में भी कहा जा रहा है कि उसकी निश्चितता या अनिश्चितता इंसान के भावी उपयोग और उसकी प्रतिक्रिया पर निर्भर करती है. अनुवांशिकी में जितने भी प्रयोग हो रहे हैं, ध्यान से देखने पर उनका आधार भी डार्विन के सिद्धांत ही देखने को मिलेंगे. कई वैज्ञानिक आविष्कारों और खोजों के पीछे डार्विन के सिद्धांतों की प्रेरणा भी तो रही है.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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