विकास शर्मा

भारत के मुंबई में एक अवसाद के शिकार मरीज की साइकोसर्जरी सफलतापूर्वक की गई है. जब अवसाद के इलाज में दवा और अन्य उपचार पद्धतियां कारगर नहीं रह जाती हैं तब डीप ब्रेन सिम्यूलेशन सर्जरी का उपयोग किया जाता है. इसमें मस्तिष्क के कुछ इलाकों में खास इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं दो दिमाग में तंत्रिकापथ में बदलाव करने में सक्षम होते हैं.

 

हाल ही में भारत के चिकित्सा के क्षेत्र में साइकोसर्जरी का एक नया लेकिन कम दिखना वाला मामला जानाकरी में आया. एक ऑस्ट्रेलिया महिला की डीप ब्रेन सिम्यूलेशन सर्जरी की गई जो डिप्रेशन या अवसाद के मामलों में तब अपनाई जाती है जब इलाज में दवा और अन्य सभी उपचार पद्धतियां कारगर नहीं रह जाते हैं. यह उपलब्धि इस बात का प्रमाण है कि देश ने साइको सर्जरी के मामले में कितनी तरक्की कर ली है. इस तरह की सर्जरी पार्किंसन, मिर्गी, और अवसाद जैसे कई मस्तिष्क विकारों के लिए उपयोग में लाई जाती है. 30 साल पुरानी इस पद्धति की खास बात यह है कि इसके दौरान मरीज को बेहोश नहीं किया जाता है.

 

अवसाद के लिए करवाई सर्जरी
ऑस्ट्रेलिया की एक महिला पिछले 26 साल से अवसाद की समस्या से जूझ रही थी. उसने दस महीने पहले ही डॉ परेश दोषी से सम्पर्क किया था और उसके बाद बीते 28 मई को उसकी यह खास सर्जरी की कई. इस मरीज को ऑस्ट्रेलिया के दो मरीजों से इस सर्जरी और डॉ दोषी की जानकारी मिली थी जो कुछ साल पहले यही सर्जरी करवा चुके थे.

 

पहली बार इस विकार के लिए सर्जरी
यह मुंबई ही नहीं भारत में भी पहली बार है कि डीबीएस सर्जरी डिप्रेशन के लिए की गई है.  भारत ने हाल की कुछ सालों में मानसिक स्वास्थ्य सेवा के मामलों में बहुत तरक्की की है. 2017 में मेंटल हेल्थकेयर एक्ट लागू होने के बाद यह इस तरह की पहली सर्जरी है. इस कानून को मरीजों अनावश्यक चिकित्सकीय उपचार पद्धतियों से बचाना है.

 

क्या होती है ये सर्जरी
डीप ब्रेन सिम्यूलेशन सर्जरी में एक दिमाग के कुछखास हिस्सों में इलेक्ट्रोड्स प्रतिस्थापित किए जाते हैं. इन इलेक्ट्रोड से निकली विद्युत तरंगें  या संकेत, जिन्हें कई बार लीड्स कहा जाता है, असामान्य मस्तिष्क गतिविधियों को नियंत्रित करने में उपयोगी होती है. इन विद्युत तरंगों के जरिए दिमाग में उन रासायनिक असंतुलन को भी सही किया जा सकता है जो कई तरह के दिमागी विकार भी पैदा कर देते हैं.

 

एक खास जेनेटर भी
इस सर्जरी में एक प्रोग्रामेबल जेनेटर सीने के ऊपरी हिस्से की चमड़ी के नीचे लगाया जाता है जो दिमाग बहुत से उत्तेजन संकेतों को नियंत्रित करने का काम करता है. अवसाद के मरीजों के सिर में दिमाग के अंदर के तंत्रिकापथों के बदलने के लिए इलेक्ट्रोड लगाए जाते हैं. यह प्रक्रिया तभी अपनाई जाती है जब दवाइयों से मरीज की स्थिति में सुधार नहीं होता है.

अन्य रोगों के लिए भी उपयोगी
डीबीएस सर्जरी अवसाद के लिए हाल ही में उपयोग में लाई जा रही है. लेकिन इसके अलावा यह ऑब्सेसिव कम्लशन डिसॉर्डर, पार्किंसन्स रोग, डिसटोनिया, मिर्गी, एसेंसियल ट्रेमर, आदि के लिए भी उपयोग में लाई जाती है. न्यूरोसर्जन डॉ परेश दोषी ने बताया कि सर्जरी के दौरान मरीज को जागृत अवस्था में रखा जाता है जसे इलेक्ट्रोड को रखने के प्रतिक्रिया देखी जा सके.

 

मनोचिकित्सा में दस साल से ही
डीबीएस सर्जरी का उपयोग 30 सालों से न्यूरोलॉजिकल स्थितियों के लिए किया जा रहा है. लेकिन दस साल पहले ही इसका उपयोग मनोवैज्ञानिक अवस्थाओं के लिए किया जाने लगा है. मेंटल हेल्थकेयर एक्ट के मुताबिक साइको सर्जरी तभी की जा सकती है जब मरीज को एग्रीमेंट की पूरी जानकारी दे दी जा चुकी हो और खास तौर से बनाए गए स्टेट मेंटल हेल्थ बोर्ड से अनुमति ले ली गई होगा इससे पहले इस तरह की प्रक्रिया अस्पताल का बोर्ड अपनाया करता था. ये नियामक मरीजों के अधिकारों की रक्षा करने और उन्हें अनावश्यक प्रक्रियाओं से बचाने के लिए बना है.

इसमें सबसे पहले मनोचिकित्सक तय करता है कि मरीज को सर्जरी की जरूरत है. इसके बाद न्यूरोसर्जन परीक्षण करता है और फिर मेडिकल बोर्ड स्वतंत्र रूप से सर्जरी की आवश्यकता की पड़ताल करता है. महाराष्ट्र पहला ऐसा राज्य बन गया है जिसके मेडिकल बोर्ड ने इसकी इजाजत दी है. लेकिन यह सर्जरी ऑस्ट्रेलिया में मान्य नहीं है क्योंकि यह अवसाद के लिए प्रयोगात्मक उपचार के तौर पर देखी जाती है. वहीं इस सर्जरी के नतीजों से चिकित्सक अब तक संतुष्ट हैं.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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