विकास शर्मा

उड़ने वाली कार भविष्य में सच तो होंगी, लेकिन यह भविष्य कितनी जल्दी आएगा इस पर तेजी से काम चल रहा है. दुनिया की कई कंपनियों ने उड़ने वाली कार या यात्री ड्रोन बनाने में सफलता भी हासिल कर ली है. लेकिन दुनिया के बड़े देश अभी इनके लिए तैयार नहीं हैं क्योंकि इनके लिए बहुत सारे नियामक और नियंत्रण व्यवस्थाएं बनानी होंगी.

तकनीक भविष्य की ओर इशारा करती है और असंभव लगने वाली बातों को संभव बनाती है. उड़ने वाली कारें ऐसी एक कल्पना है जिस पर बहुत ज्यादा काम हो रहा है और सफलता भी मिल रही है. उड़ने वाली टैक्सी या ड्रोन से लोग सड़कों की जगह हवा में यात्रा कर सकते हैं. बड़ी ऑटोमोबाइल और एरोस्पेस कंपनीयां तो नए मॉडल पेश कर रही हैं. लेकिन क्या हमारे शहर इनके लिए तैयार हैं भी या नहीं यह एक सवाल है.

बोइंग, हुडेई, एयरबस, टोयोटा जैसी कंपनियां इस तरह के वाहनों का विकास कर रही हैं जो फ्लाइंग कार, फ्लाइंग टैक्सी,पैसेंडर ड्रोन के रूप में सेवाएं दे सकेंगे. इतना ही नहीं इस तरह की कंपनियां नए युग के ऐसे वाहन को लॉन्च करने के लिए भी तैयार हैं. लेकिन यूरोप और अमेरिका अभी इसके लिए तैयारी कर रहे हैं. वे इनके लिए एयर टैक्सी वाले नए नियामक तैयार कर रहे हैं. ऑस्ट्रेलिया भी इसी दिशा में काम कर रहा है.

यह बहुत ही रोमांचक और उत्साहित करने वाली बात लगती है. लेकिन यहां कई तरह की वैज्ञानिक और सुरक्षा चुनौतियां हैं जिन्हें पार पाने की जरूरत है. इनमें से एक परिघटना है इन वाहनों की अस्थिर करने वाली तेज हवा से निपटना. इन वाहनों में आंधी तूफान वाली तेज हवा से निपटने वाली क्षमता जरूर होना चाहिए.

ऑस्ट्रेलिया की आरएमआईटी यूनिवर्सिटी के एरोस्पेस इंजीनियर डॉ अब्दुलगनी मोहम्मद और उनकी टीम एक दशक से इस विषय पर अध्ययन कर रहे हैं और हाल ही में उन्होंने अपनी पड़ताल के नतीजे प्रकाशित करने जा रहे हैं. मोहम्मद कहना है कि निचली ऊंचाई पर उड़ान भरने वाले विमानों में हवा के झोंके जोखिम पैदा कर देते है क्योंकि वे बहुत ही कम गति से उड़ा भरते और उतरते हैं. ऐसे झोंके एक ही पल में बहुत बड़ी सुरक्षा चुनौती खड़ी कर सकते है.

इसका मतलब यही हुआ कि एयर टैक्सी या ड्रोन जो शहरों में काम करेंगे उन्हें अंतरिक्ष या एयरपोर्ट पर उड़ानों की तुलना में उड़ान भरने या उतरने के लिए और ज्यादा ताकत की जरूरत होगी. उन्हें ऐसी शक्तिशाली मोटर की जरूरत होगी जो तीजे से प्रोपेलर का धक्का बदल सकें जिसके लिए और ज्यादा ऊर्जा की जरूरत होगी. इसके साथ ही नियामक बनाने वालों को मौसम की चुनौतियों का भी ख्याल रखना होगा और इसमें खतरनाक और जोखिम भरे इलाकों की पहचान करना बहुत जरूरी होगा.

इस तरह के वाहनों की लैंडिंग और टेकऑफ यानि उड़ान भरने और उतरने वाली जगहों की पहचान करते समय बहुत सावधानी बरतनी होगी, लेकिन एक बात और साफ है इस तरह के सिस्टम के लिए मौसम की सटीक जानकारी की जरूरत होगी जिससे दुर्घटना की संभावना को अतिन्यूनतम किया जा सके. ऐसे में इमारतों की वजह से बनने वाले हवा के झोकें समस्याकारक होंगे और इमारतों की डिजाइन बहुत अहम हो जाएंगी.

जिस तरह से मैट्रो और हाइवे के लिए मार्ग निर्धारित होते हैं उस तरह से एयर टैक्सी के लिए भी हवाई मार्ग सुनिश्चित करना मुफीद होगा. यानि ये ऐसे स्थानों के ऊपर से उड़ें जिसके नीचे आपात लैंडिग हो सके. उनके गिरने से जानमाल का नुकसान होने की संभवना नहीं के बराबर हैं. ऐसे रास्तों को तय करना आज के जटिल शहरी सरंचना में तो बहुत ही मुश्किल है और ना ही शहरी नियोजन में अभी व्यापक तौर पर इस पर ध्यान दिया जा रहा है.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

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