मंगल जैसे ग्रह के भविष्य के बारे में बताना वैज्ञानिकों के लिए आसान है. वे मंगल ग्रह की भूगर्भीय और भौगोलिक प्रक्रियाओं को समझकर इस बात का विस्तार से अनुमान लगा सकते हैं कि आने वाले 500 सालों में वह कैसी होगी. लेकिन पृथ्वी का पूर्वानुमान लगाना की वह 500 सालों में कैसी हो जाएगी, मुश्किल होगा क्योंकि मानवीय प्रभावों के कारण होने वाले बदलावों का अनुमान अभी लगाना बहुत ही मुश्किल है.

विज्ञान ने कई विषयों पर इतनी महारत हासिल कर ली है कि बहुत से मामलों में अब भविष्य के सटीक पूर्वानुमान लगाए जा सकते है. कई अब भी बहुत सारी प्रक्रियाएं और परिघटनाएं ऐसी हैं जिनका पूर्वानुमान लगाना बहुत मुश्किल है. इसका सबसे प्रचलित उदाहरण मौसम है जिसमें अक्सर देखा गया है कि मौसम विभाग के पूर्वानुमान सटीक नहीं होता या पूरी तरह से गलत भी साबित हो जाते हैं. लेकिन क्या यह पता लगाया जा सकता है कि पृथ्वी 500 साल बाद कैसी होगी. देखते हैं इस बारे में क्या कहता है विज्ञान

 

पहले भी नहीं था संभव
यह बिलकुल वैसा ही है वास्को डि गामा यह अनुमान लगाने का प्रयास करते कि आज का भारत किस तरह का दिखाई देता. यह काम ना तो तब भी आसान था और ना ही अब जब कि विज्ञान और तकनीक ने इतनी तरक्की कर ली है, आसान है. लेकिन क्या वास्तव में आज की तकनीक के लिए यह अनुमान लगाना संभव नहीं है. अगर ऐसे प्रयास किए जाएं तो किस तरह के नतीजे मिल सकते हैं. यह भी नजरअंदाज करने वाला सवाल नहीं है.

पृथ्वी नहीं रहती है एक समान
पृथ्वी पर बदलाव लाने वाले दो प्रमुख कारक है, एक प्रकृति है और दूसरा है जीवन जिसमें सबसे प्रमुख है मानवीय गतिविधियां. प्राकृतिक बदलाव की बात करें तो पृथ्वी निरंतर बदलाव की प्रक्रिया से गुजर रही है. वह निरंतर चलायमान है, वह डगमागाती है, उसके घूर्णन की धुरी में बदलाव होता है, यहां तक कि उसकी सूर्य की परिक्रमा करने वाली कक्षा में भी बदलाव आता है.

भूगर्भीय और भौगोलिक कारक
ये बदलाव हजारों सालों में एक बार आते हैं यहां तक हिमयुग भी इन्हीं की वजह से आते हैं. इसके अलावा भी भूगर्भीय बदालव, हर साल मौसमी गतिविधियों के कारण भौगोलिक बदलाव होते हैं जिनसे भूआकृतियों में बदलाव आता है, जैसे भारतीय प्रायद्वीप हर साल तीन सेमी उत्तर की ओर खिसक रहा है. यही वजह है कि लाखों सालों में हिमालय इतना ऊंचा हो गया है और अब भी हो रहा है.

जीवन और पृथ्वी
इस लिहाज से 500 साल का समय बहुत कम है. ऊपर बताई गई कई प्रक्रियाओं में इंसानी गतिविधियों ने उत्प्रेरक का काम भी किया है. पर उससे सपहले हम समझें कि जीवन का पृथ्वी पर क्या असर हो रहा है जिसका अनुमान लगाना और ज्यादा कठिन है. मानवों को छोड़ दें तो पिछले करोड़ों सालों में पृथ्वी पर जीवन ने पृथ्वी को कम नहीं बदला है, बल्कि जीवन खुद पृथ्वी का एक अहम हिस्सा हो गया है.

और इंसान की भूमिका
इंसान पृथ्वी को बहुत ज्यादा प्रभावित करते हैं, उन्होंने पहाड़ तक काट डाले हैं. जमीने खोद डाली हैं. जंगल उजाड़ डाले हैं, वन्यजीवों के आवासों को तोड़ कर रख दिया है शहर बनाए हैं, जमीन के बड़े हिस्सों में फसलें ऊगा कर उन्हें खेतों में बदल दिया है. भारी संख्या में कई प्रजातियों को विलुप्त तक कर दिया है.

मानवीय दखल
मानवीय दखल पूरे पारिस्थितिकी तंत्र को बदलने के साथ खत्म करने तक की क्षमता रखता है. और ना केवल उससे ऐसा हुआ है, बल्कि अब भी हो रहा है और आने वाले समय में भी इसके ऐसे ही जारी रहने की संभावना है. मानव ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार हैं जो जलवायु परिवर्तन का प्रमुख प्रभाव है. जीवाश्म ईंधन को जलाकर इंसान ने वायुमंडल का संयोजन बहुत हद तक प्रभावित किया है जिसके गहन नतीजे देखने को मिल रहे हैं.

यह स्पष्ट है कि 500 सालों बाद पृथ्वी बहुत ही ज्यादा बदल जाएगी, लेकिन कितनी और कैसी  बदलेगी काफी कुछ आने वाले दिनों में इंसान के फैसलों पर निर्भर करेगा. अगर मानव अपनी गतिविधियों के नकारात्मक प्रभावों को कम कर सके तो पृथ्वी पर नकारात्मक बदलाव कम देखने को मिल सकते हैं. लेकिन इतना तय है कि 500 साल के बाद की पृथ्वी का अनुमान लगाना बहुत मुश्किल है, जैसे आज से 500 साल पहले सड़क-रेल-जहाजों के साथ कम्प्यूटर-मोबाइल की दुनिया का अनुमान लगाना असंभव था.

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