विकास शर्मा

डॉ एपीजे अब्दुल कालाम का जीवन संघर्षों से भरा रहा. लेकिन उनमें जो सबसे अच्छी बात रही कि उन्होंने कभी हालात को खुद पर स्थायी तौर पर हावी होने नहीं दिया. इस तपस्या के बाद वे ऐसे निखर के निकले कि सादगी, सरलता और विनम्रता में राष्ट्रपति पद जैसी उपाधि भी उनकी मजबूती को बदल नहीं सकी. वे जीवन के अंतिम क्षणों तक वैज्ञानिक और शिक्षक बने रहे.

 

अंग्रेजी में कहावत है कि “वन्स अ कॉप ऑल्वेज अ कॉप” आजकल की बातचीतों में इस कहावत को कई तरह के व्यवसायों पर लागू किया जाता है. लेकिन क्या इसे देश के पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम पर लागू किया जा सकता है. इसका एक कारण है और वह यह है कि डॉ कलाम हमेशा ही शिक्षक और वैज्ञानिक ही रहे. राष्ट्रपति पद पर पहुंचने के बाद भी उन्होंने अपनी सादगी और सरल बर्ताव नहीं छोड़ा और वे वैसे ही रहे जैसे की तब  थे जब वे शिक्षक थे और वे ताउम्र ऐसे ही रहे. 27 जुलाई को उनकी पुण्यतिथि उनके साथ उनके जीवन से ली जाने वाली शिक्षाओं को भी याद करने का दिन है.

 

कोई बीमारी नहीं थी डॉ कलाम को
27 जुलाई 2015 को, जिस दिन उनका देहांत हुआ, उस दिन भी वे आआईएम शिलॉन्ग में लेक्चर दे रहे कि उन्होंने कार्डिएक अरेस्ट हो गया जो उनके जीवन का काल साबित हुआ. 83 साल की उम्र में पहुंच कर भी वे रिटायर नहीं हुए थे और उसी  तरह का जीवन जी रहे थे जैसा कि वे बरसों से जीते चले आ रहे थे. वे किसी भी तरह हृदय रोग से ग्रसित नहीं थे, ना उन्हें किसी तरह के हृदयाघात की समस्या आई थी, और ना ही उन्हें किसी तरह की कोई बीमारी थी.

 

अभावों के बीच पढ़ाई
एपीजे अब्दुल कलाम का जन्म 15 अक्टूबर 1931को भारत के तमिलनाडु के रामेश्वरम में हुआ था. वे अपने भाई बहनों में सबसे छोटे थे. उनका बचपन एक मछुआरे के घर बहुत ही अभावों में गुजरा था. पढ़ाई से उन्हें गहरा लगाव था. इस वचह से वे औसत छात्र होने के बाद भी होनहार और मेहनती छात्र माने जाते थे. भौतिकी और गणित उनके प्रिय विषय हुआ करते थे. बचपन के अभाव कभी उनकी पढ़ाई में बाधा नहीं बन सके.

 

नजदीकी नाकामी ने किया था निराश
डॉ कलाम का जीवन बताता है कि वे कोई विशिष्ठ, सुख सुविधा या प्रतिभा सम्पन्न व्यक्ति नहीं थे. उन्होंने भौतिकी में स्तानक की डिग्री त्रिचिरापल्ली के सेंट स्टीफन कॉलेज से हासिल की. अपनी लगन और प्रतिभा से उन्होंने शिक्षकों को बहुत प्रभावित किया. लेकिन बहुत कम अंकों से फाइटर पायलट बनने का ख्वाब पाने से चूक गए क्योंकि 8 लोगों के चयन में उनका स्थान 9वां आया.

 

नई दिशा नए लक्ष्य की ओर
कलाम यहां रूके नहीं उन्होंने अपना नया सपना गढ़ा.आईआईटी मद्रास में पढ़ाई पूरी कर वे रक्षा अनुसंधान और विकास सेवा के सदस्य बने और अंततः भारत के रक्षा अनुसंधान और विकास संगठन (DRDO) के एरोनॉटिकल डिवेलपमेंट एस्टैब्लिश्मेंट में वैज्ञानिक बने. जिसके बाद उन्होंने पीछे मुड़कर नहीं देखा. 1969 में  वे भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संस्थान, इसरो से लंबे समय के लिए जुड़े.

 

देश के मिसाइल मैन
यहां से डॉ कलाम ने पीछे मुड़कर नहीं देखा वे लगातार सफलता हासिल करते रहे और अपने वरिष्ठों के हमेशा ही खास बने रहे. उन्हें बैलेस्टिक मिसाइल के लिए प्रोजेक्ट डेविल और प्रोजेक्ट वैलिएंट की जिम्मेदारी मिली. उनके नेतृत्व में ही भारत ने अग्नि, आकाश, नाग, पृथ्वी और त्रिशूल जैसी मिसाइल विकसित की और भारत को लंबी दूरी तक मार करने वाली इन विशेष मिसाइलों में आत्मनिर्भर कर दिया. लगातार सफल होते होते वे जल्दी ही देश के मिसाइल मैन के रूप में मशहूर हो गए थे.

 

लगातार सफलता से अप्रभावित
जीवन के इस मुकाम बल्कि उससे पहले ही डॉ कलाम बहुत ही सम्मानीय व्यक्ति हो चुके थे. वे प्रधानमंत्री के रक्षा सलाहकार रहे. फिर पोखरण 2 परमाणु परीक्षण की सफलता में उन्होंने बड़ा योगदान दिया. पद्मश्री और पद्मविभूषण तो पहले ही सम्मानित हो चुके डॉ कलाम को 1997 में भारत रत्न से भी सम्मानित किया गया. फिर साल 2002 में वे भारत के राष्ट्रपति तक बने. लेकिन तमाम बुलंदियों के बीच उन्होंने अपनी सादगी और विनम्रता नहीं छोड़ी.

राष्ट्रपति पद कार्यकाल पूरा करने के बाद डॉ कलाम वापस अपने पसंदीदा कार्य करने में लग गए. उन्होंने शिलॉन्ग, इंदौर और अहमदाबाद के भारतीय प्रबंध संस्थान के विजिटिंग प्रोफेसर बने. तिरुवनन्तपुरम के भारतीय अंतरिक्ष विज्ञान और तकनीक संस्थान के चासंलर, अन्ना यूनिवर्सिटी में एरोस्पेस इंजीनियरिंग के प्रोफेसर रहने के साथ देश के कई बड़े संस्थानों के शिक्षण कार्य करते रहे. लेकिन इस दौरान कभी किसी को यह नहीं लगा कि वे भारत के पूर्व राष्ट्रपति हैं और हमेशा की तरह उनकी सरलता और सादगी कायम रही.

   (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )
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