झारखंड का बेहद महत्वपूर्ण पर्व है ” करम ” , जिसका प्रकृति एवं प्राकृतिक जीवन से गहरा रिश्ता है। करम पर्व प्रकृति की सृजन शक्ति के सम्मान का पर्व है। या कहें कि यह प्राकृतिक सृजन शक्ति को कृतज्ञता व्यक्त करने वाला पर्व है, जो बीज से सृजित होकर क्रमशः पौधे एवं पेड़ का रूप धारण करता है । यही शक्ति कृषि का आधार है। आइए, प्रकृति को जाने, समझें इससे सीखें। प्रकृति से जुड़ें। प्रकृतिक जीवन जिएं। ऐसे में प्रकृति एवं सृजन का पर्व करम हमारे लिए खास एवं बेहद महत्वपूर्ण हो जाता है। प्रस्तुत है इसी तथ्य को रेखांकित करता यह महत्वपूर्ण आलेख –करमा पर्व भारत के झारखंड, छत्तीसगढ़, ओडिशा में मनाया जाता है. करमा पर्व 7 दिनों तक चलता रहता है. करम या करमा पर्व झारखंड के आदिवासियों और मूलवासियों का लोकपर्व है। यह पर्व फसलों और वृक्षों की पूजा का पर्व है। आपको यहाँ की संस्कृति और लोक नृत्य कला का आनन्द करमा पर्व में भरपूर देखने को मिलेगा। आदिवासियों के पारंपरिक परिधान लाल वार्डर की सफेद रंग की साड़ियाँ पहने लड़कियाँ जगह-जगह लोक नृत्य करते नजर आयेंगी।

यह पर्व पूरे राज्य में बड़ी ही धूमधाम से मनाया जाता है जबकि इस पर्व की तैयारियां महीनों पहले शुरू हो जाती हैं और पूजा पाठ एकादशी के पहले सात दिनों तक चलता है। झारखंड में करमा कृषि और प्रकृति से जुड़ा पर्व है, जिसे झारखंड के सभी समुदाय हर्षोल्लास के साथ मनाते हैं। करमा नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच गाकर मनाते हैं। इस पर्व को भाई-बहन के निश्छल प्यार के रूप में भी जाना जाता है।

झारखंड में हर जगह शुक्रवार को करमा पर्व मनाया जा रहा है। प्रकृति और भाई-बहन के निकटता का यह पर्व ये सन्देश देता है कि यहाँ की हरियाली और पेड़-पौधे इसलिए हरे-भरे हैं क्योंकि यहाँ के लोग प्रकृति की पूजा करते हैं। इनके देवता ईंट के बनाए किसी मन्दिर या घर में कैद नहीं होते बल्कि खुले आसमान में पहाड़ों में रहते हैं। झारखंडी संस्कृति के लोग किसी आकृति वाली मूर्ती की पूजा नहीं बल्कि प्रकृति की पूजा करते हैं। इनके हर पर्व की तिथियाँ, मन्त्र सबकुछ इनके अपने होते हैं।

आदिवासियों के लिए करमा पर्व सबसे बड़ा पर्व है। इस पर्व पर लोग पेड़ की पूजा करते हैं कुछ लोग नये पौधे लगाते हैं। मिलजुल कर मनाने वाला ये पर्व पर्यावरण के साथ-साथ रिश्तों को भी मजबूती देता है। लोग एक साथ नाचते गाते पूजा करते हैं।

हम जानते है कि आदिवासी प्रकृति पूजक हैं. जिस तरह सरहुल में सखुवा फूल की पूजा की जाती है, उसी तरह करम में करम पेड़ की डाली की पूजा किया जाता हैं. धान की रोनई के बाद व कटाई से पहले यह पर्व मनाया जाता हैं. साथ ही यह कामना की जाती है कि जिन खेतों में धान का बीज लगाया गया है, वह अंकुरित हो, उसमें कीड़े न लगे, फसल अच्छी हो.करम त्यवहार में एक विशेष नृत्य किया जाता है जिसे करम नाच कहते हैं । करम नृत्य को नई फ़सल आने की खुशी में लोग नाच-गाकर मनाया जाता है. 

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