दिल्ली-एनसीआर में हर साल सर्दी में हवा के दमघोंटू होने पर पराली का धुंआ आरोप प्रत्यारोप की राजनीति का आधार बनता है। इसके विपरीत बीते वर्ष की सर्दी में दमघोंटू हवा के लिए स्थानीय स्तर का प्रदूषण 80 फीसदी जिम्मेदार पाया गया है। इस संबंध में सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट (सीएसई) ने विश्लेषण किया है। शोधकर्ताओं ने चेतावनी दी है कि अगर इस पर तुरंत कार्रवाई नहीं की गई तो आने वाले वर्षों में यह प्रवृत्ति और खराब हो सकती है।
सीएसई ने एक अक्तूबर 2021 से 28 फरवरी 2022 के दौरान दिल्ली-एनसीआर में निगरानी स्टेशनों से वास्तविक समय के आंकड़ों का विश्लेषण किया है। इससे पता चलता है कि इस सर्दी में विभिन्न चरणों में भारी और लंबे समय तक बारिश के बावजूद धुंध और प्रदूषण के स्तर में वृद्धि हुई है। इस दौरान कोरोना महामारी के कारण लगने वाले लॉकडाउन और बारिश के कारण कुछ दिन संतोषजनक श्रेणी के भी दर्ज किए गए हैं, जो कि बीते तीन सीजन में दर्ज नहीं हुए।
सीएसई के कार्यकारी निदेशक अनुमिता चौधरी कहती हैं कि बढ़े हुए प्रदूषण के स्तर और स्मॉग एपिसोड प्रणालीगत प्रदूषण का एक प्रमाण है, जो सभी क्षेत्रों में प्रदूषण नियंत्रण के लिए अपर्याप्त बुनियादी ढांचे और प्रणालियों के कारण क्षेत्र में जारी है। इसे तभी काबू में किया जा सकता है जब साल भर की कार्रवाई सभी क्षेत्रों और क्षेत्र में अधिक कठोर और एक समान हो जाए। स्वच्छ वायु मानकों को पूरा करने के लिए कार्रवाई का प्रदर्शन आधारित होना चाहिए। सीएसई के अर्बन लैब एनालिटिक्स के कार्यक्रम प्रबंधक अविकल सोमवंशी कहते हैं कि भले ही पूरे क्षेत्र में मौसमी औसत में काफी भिन्नता है, लेकिन बड़ी दूरी के बावजूद इस क्षेत्र में सर्दियों के प्रदूषण के एपिसोड खतरनाक रूप से उच्च हैं।
विश्लेषण में प्रयुक्त डाटा
विश्लेषण के लिए केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) के 81 वायु गुणवत्ता निगरानी स्टेशनों द्वारा दर्ज आंकड़ों का विश्लेषण किया है। साथ ही खेत में पराली धुएं के आंकड़े सिस्टम ऑफ एयर क्वालिटी एंड वेदर फॉरकास्टिंग एंड रिसर्च (सफर) से लिए गए हैं। मौसम के आंकड़े भारतीय मौसम विभाग के सफदरजंग मौसम केंद्र से लिए गए हैं।
पराली के धुएं का 48 फीसदी तक योगदान
सफर के अनुसार, उत्तरी राज्यों में पराली के धुएं ने 10 अक्तूबर 2021 से दिल्ली के पीएम 2.5 स्तर में योगदान देना शुरू कर दिया था। इसका प्रभाव 30 नवंबर 2021 तक रिकॉर्ड किया गया। इन 52 दिनों के दौरान प्रदूषण में इसका योगदान एक फीसदी से 48 फीसदी के बीच रहा। इस सर्दी पराली की आग का वायु गुणवत्ता पर असर पिछले दो सर्दियों की तुलना में चार दिन कम था। बीते वर्ष सर्दी में 25 दिन गंभीर स्तर की वायु गुणवत्ता दर्ज की गई। वहीं, इससे पिछली सर्दियों में ऐसे 23 दिन दर्ज हुए थे।
सर्दियों में प्रदूषण के क्षेत्रीय प्रोफाइल से पता चलता है कि पूर्वी क्षेत्र भी दिल्ली-एनसीआर जितना ही प्रदूषित है: पूर्वी मैदानी इलाकों जिसमें बिहार के नए निगरानी वाले 19 शहर और कस्बे शामिल हैं, में पीएम 2.5 का स्तर दिल्ली एनसीआर के समान ही था सर्वाधिक 10 प्रदूषित शहरों में बिहार के 6 शहर शामिल है जिसमें सिवान और मुंगेर शीर्ष पर हैं। उत्तरी मैदानी इलाकों में गाजियाबाद दिल्ली फरीदाबाद और मानेसर सूची में तीसरे, पांचवें, सातवें और दसवें स्थान पर हैं। भले ही बिहार के छोटे शहरों का मौसमी औसत एनसीआर के बड़े शहरों को टक्कर देता हो लेकिन धुंध के चरणों के दौरान उनका चरम प्रदूषण तुलनात्मक रूप से कम रहा है।