देश और दुनिया में मौसम संबंधी उतार-चढ़ाव न केवल तेज हो रहे हैं, बल्कि आपदाकारी घटनाओं में बढ़ोतरी देखी जा रही है। भारत भी इससे अछूता नहीं है। हाल ही में जारी इंटरगवर्नमेंटल पैनल ऑन क्लाइमेट चेंज (आईपीसीसी) की रिपोर्ट बताती है कि वर्तमान में लगभग 50 फीसदी मानव आबादी उन इलाकों में रहती है, जो बाढ़, लू (हीट वेव) और चक्रवात जैसे जोखिम की चपेट में हैं।  भारत के लिए इसका यह मतलब है कि यहां जलवायु संकट के जोखिम वाले राज्यों में मौसम संबंधी उतार-चढ़ाव बढ़ने के अलावा आपदाओं के आने की आशंका बहुत ज्यादा है। इतना ही नहीं, भारत में 60 फीसदी से ज्यादा आबादी ग्रामीण इलाकों में रहती है, जिसके सामने जलवायु संकट से प्रभावित होने का जोखिम सबसे ज्यादा है। 

जलवायु परिवर्तन का कृषि पर प्रभाव | Hindi Water Portal

जोखिम की चपेट में आने की सर्वाधिक आशंका वाले भारत जैसे देशों में जलवायु संकट के कारण कृषि उत्पादकता और आपूर्ति शृंखलाओं पर बड़े पैमाने पर असर पड़ने का अनुमान है। यही नहीं, यह पानी और लार्वा जनित रोगों को बढ़ा सकता है, जो ग्रामीण इलाकों में इंसानों का बड़े पैमाने पर पलायन शुरू कर सकता है। इसलिए, ग्रामीण क्षेत्रों में अनुकूलन तंत्रों और प्राथमिकताओं को नए सिरे से परिभाषित करने की जरूरत है। वर्ष 2021 में जारी काउंसिल ऑन एनर्जी, एन्वायरनमेंट ऐंड वाटर (सीईईडब्ल्यू) के जलवायु सुभेद्यता सूचकांक (क्लाइमेट वल्नरबिलिटी इंडेक्स) के अनुसार, 80 प्रतिशत से अधिक भारतीय जलवायु संबंधी आपदाओं के लिहाज से सर्वाधिक संवेदनशील जिलों में रहते हैं। भले ही जलवायु संकट का जोखिम लगातार बढ़ रहा हो, लेकिन 2019 तक सिर्फ 32 प्रतिशत जिलों में ही अद्यतन जिला आपदा प्रबंधन योजना मौजूद थी। 

world bank: 2050 तक 60 करोड़ भारतीयों के जीवन स्तर को प्रभावित करेगा जलवायु परिवर्तन: विश्व बैंक - 'climate change will hit living standards of 600 million indians' | Navbharat Times

हमारी सरकारों को गांवों और ब्लॉक स्तर पर जलवायु संकट की स्थितियों को पहचानने की जरूरत है। जलवायु संकट से बचाव के उपायों से सुनिश्चित होगा कि बार-बार आने वाली जलवायु संबंधी आपदाओं के कारण जान-माल और रोजगार का नुकसान न हो। इसके लिए हर जिले में एक समान जोखिम और अनुभवों वाले गांवों और पंचायतों के स्तर पर साझेदारी तैयार की जानी चाहिए।  इसके लिए ऐसा मंच बनाया जा सकता है, जिससे एक जैसी जलवायु संबंधी प्रतिकूल घटनाओं वाली पंचायतें जुड़ें और अपने अनुभव साझा कर सकें। दूसरा, भारत को मनरेगा जैसी सामाजिक सुरक्षा योजनाओं में प्रकृति-आधारित समाधानों जैसे पारिस्थितिकी तंत्र (इको-सिस्टम) को प्राथमिकता देने वाली पद्धतियों को जोड़ना चाहिए। इसके तहत बायो-डाइक (मिट्टी का कटाव रोकने के जैविक सामग्री से तटबंध), सैंड बैग की दीवार और बांसों की बाड़ बनाने जैसे बुनियादी काम कराए जा सकते हैं। 

India ranked 5th among countries affected by climate change | जलवायु परिवर्तन से प्रभावित देशों में भारत 5वें स्थान पर - Dainik Bhaskar

ऐसे बुनियादी ढांचे बाढ़ और सूखे जैसे जलवायु खतरों के खिलाफ एक सुरक्षा कवच का काम कर सकते हैं। तीसरा, सभी क्षेत्रों में कारोबार पर पड़ने वाले प्रभावों को घटाने के लिए भारत को अपनी ग्रामीण सप्लाई चेन को जलवायु संकट को सहने में सक्षम बनाने की जरूरत है। आकलनों के अनुसार, भारत में माल ढुलाई की लागत सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) का चौदह प्रतिशत के बराबर है, जिसका प्रमुख कारण देश में ढुलाई का कमजोर ढांचा है।  ग्रामीण सप्लाई चेन को नए सिरे से तैयार करने से ग्रामीण अर्थव्यवस्था को बढ़ावा मिल सकता है। ग्रामीण सप्लाई चेन, विशेष रूप से कृषि जैसे नाजुक क्षेत्रों के लिए बजट में बढ़ोतरी, रोजगार पैदा करने और नई बुनियादी ढांचागत परियोजनाओं के जरिये ग्रामीण अर्थव्यवस्था को प्रोत्साहित कर सकती है। यह परोक्ष रूप से खाद्य सुरक्षा को सुधार सकता है और ग्रामीण क्षेत्रों से पलायन रोक सकता है। 

Changing Climate, Suffering Life Forms

तापमान बढ़ोतरी का सामना कर रही दुनिया में, ग्रामीण क्षेत्रों को शहरों में रहने वाली आबादी की तुलना में ज्यादा जलवायु संकट का जोखिम भुगतना पड़ सकता है। अब यह हम लोगों पर निर्भर करता है कि कैसे हम न केवल जलवायु परिवर्तन के जोखिमों को कम करें, बल्कि यह भी सुनिश्चित करें कि जलवायु परिवर्तन के खिलाफ हमारी लड़ाई में ग्रामीण भारत सबसे आगे रहें।

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