जियोर्दानो ब्रूनो 16वीं सदी के प्रसिद्ध इटेलियन दार्शनिक, खगोलशास्त्री, गणितज्ञ और कवि थे। उनका जन्म सन् 1548 में शोला, इटली में हुआ था, जबकि उनके खगोलीय विचारों के कारण तत्कालीन धर्मांध सत्ता व्यवस्था ने 17 फरवरी, 1600 को उन्हें जिंदा जला कर मार डाला। इस प्रकार उन्होंने धर्मांधता, संकीर्णता पूर्वाग्रह एवं कट्टरता का साहस पूर्वक मुकाबला करते हुए अपनी शहादत दी। उनकी स्मृति में आल इंडिया पीपुल्स साइंस नेटवर्क ( AIPSN ) ने 17 फरवरी, उनके शहादत दिवस को देश भर में खगोल विज्ञान दिवस (Astronomy Day ) के रूप में मनाने का निर्णय किया है। झारखंड में साइंस फार सोसायटी एवं वैज्ञानिक चेतना साइंस वेब पोर्टल इस अभियान के साथ है।
दरअसल जियोर्दानो ब्रूनो ने खगोल वैज्ञानिक निकोलस कोपरनिकस के विचारों का समर्थन किया था। वह भी उस समय, जब यूरोप में लोग धर्म के प्रति अंधे थे। निकोलस कोपरनिकस ने कहा था – ‘ब्रह्माण्ड का केंद्र पृथ्वी नहीं, सूर्य है।’ ब्रूनो ने निकोलस कोपरनिकस के विचारों का समर्थन करते हुए कहा – ‘आकाश सिर्फ उतना नहीं है, जितना हमें दिखाई देता है। वह अनंत है और उसमें असंख्य विश्व है।’ धर्म के प्रति ब्रूनो का विचार था कि – ‘धर्म वह है, जिसमें सभी धर्मों के अनुयायी आपस में एक-दूसरे के धर्म के बारे में खुलकर चर्चा कर सकें।’ ब्रूनो का विचार था कि – हर तारे का वैसा ही अपना परिवार होता है जैसा कि हमारा सौर परिवार है। सूर्य की तरह ही हर तारा अपने परिवार का केंद्र होता है। महान खगोलशास्त्री जियोर्दानो ब्रूनो की धारणा थी कि – ‘इस ब्रह्मांड में अनगिनत ब्रह्मांड हैं। ब्रह्मांड अनंत और अथाह है।’ ब्रूनो का मत था कि – ‘धरती ही नहीं, सूर्य भी अपने अक्ष पर घूमता है।’
जियोर्दानो ब्रूनो बड़े निर्भीक और क्रांतिकारी विचार वाले थे। इसलिए चर्च के पादरियों का विरोध भी उन्हें डरा ना सका। ब्रूनो जीवन भर चर्च की कठोर यातनाएँ सहते रहे। उन्होंने अपने जीवनकाल के लगभग 8 वर्ष जेल में बिताए मगर उन्होंने कभी हिम्मत नहीं हारे। उन्हें हारता ना देखकर 17 फरवरी, सन् 1600 ई. को धर्म के ठेकेदारों ( तत्कालीन पोप और चर्च के पादरियों ) ने खुलेआम रोम में भरे चौराहे पर ब्रूनो को खंभे से बांध कर मिट्टी का तेल उन पर छिड़क कर जला डाला। ब्रूनो ने हँसते हुए आग में जलना स्वीकार किया। लेकिन वे अपने तथ्यों और निष्कर्षों पर अडिग रहे। उनके चेहरे पर डर या पश्चाताप का कोई अहसास नहीं था। उन्हें पूर्ण विश्वास था कि एक ना एक दिन ऐसा अवश्य आएगा जब पूरी दुनिया उनकी खोज को सत्य मानेगी। आखिरकार सत्य की जीत हुई और विश्व ने उनके सिद्धांतों को स्वीकार कर ही लिया। ब्रूनो के जीवनकाल में ये तथ्य लोगों को समझ में नहीं आया और उनको पुरजोर विरोध हुआ। लेकिन उनकी निर्मम हत्या के बाद यह साबित हो गया कि सूर्य भी अपने अक्ष पर घूमता है। ब्रूनो की मृत्यु के लगभग 200 वर्षों बाद हमारे सौरमंडल के 7वें ग्रह ‘यूरेनस’ की खोज हुई।
दरअसल मानव समाज के विकास का कारण कूपमंडुकता व जड़ मानसिकता का विवेकसम्मत विचारों के संघर्ष की निरंतरता ही है. पुराने रूढ़ विचार हमेशा नए विचार की राह में रोड़ा बनकर आते हैं। लकड़ी के हल में जब लोहा लगाया गया ते इसका भी विरोध हुआ था. पुराने खयालात वाले लोगों ने इसका विरोध किया था और इसका मजाक उड़ाया था। तर्क और विवेक, जिसने पूंजीवाद को जन्म दिया आज पूरे विश्व के लिए खतरा बन गया है. जिस पूंजीवाद ने सामंतवाद को खत्म करने में अपनी भूमिका निभाई थी उसे फिर जीवित करने की कोशिश की जा रही है. हम देखते हैं कि अमेरिका में पाठ्यक्रम में बिग बैंग थ्यूरी के जगह पुन:बाइबिल में वर्णित क्रिएशन की थ्यूरी को पढ़ाया जा रहा है .भारत में पंच सितारा बाबाओं के प्रवचन टी बी चैनलों पर प्रसारित किये जाते हैं ताकि लोग अंधविश्वास में रहें और वैज्ञानिक दृष्टिकोण को कुंठित किया जा सके। हमने पिछले कोरोना काल में भी देखा कि किस प्रकार अंधविश्वास एक कारोबार बनकर उभरा है. यह और पीड़ादायक हो जाता है जब सरकार के मुखिया और मंत्री इसे प्रोत्साहित करते हैं. आज भी तर्कशील, विज्ञान परक सोच वाले डॉ नरेन्द्र दाभोलकर, गोविन्द पानसरे, गौरी लंकेश, डॉ क्षय एस एम कलबुर्गी जैसे अनेकों ब्रूनो शहीद हो रहे हैं. ये सारे लोग इसलिए मारे गए क्याेंकि इन्होंने कट्टरता के आगे झुकने से इन्कार कर दिया तथा उससे समझौता नहीं किया तथा अंधविश्वास और अवैज्ञानिक सोच का निर्भीकता पूर्वक डटकर विरोध किया।