विश्व पर्यावरण दिवस पर्यावरण की सुरक्षा और संरक्षण हेतु पूरे विश्व में मनाया जाता है। इस दिवस को मनाने की घोषणा संयुक्त राष्ट्र ने पर्यावरण के प्रति वैश्विक स्तर पर राजनीतिक और सामाजिक जागृति लाने हेतु वर्ष 1972 में की थी। इसे 5 जून से 16 जून तक संयुक्त राष्ट्र महासभा द्वारा आयोजित विश्व पर्यावरण सम्मेलन में चर्चा के बाद शुरू किया गया था। 5 जून 1974 को पहला विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया।
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जल, जंगल और जमीन, इन तीन तत्वों के बिना प्रकृति अधूरी है। विश्व में सबसे समृद्ध देश वही हुए हैं, जहां यह तीनों तत्व प्रचुर मात्रा में हों। हमारा देश जंगल, वन्य जीवों के लिए प्रसिद्ध है। सम्पूर्ण विश्व में बड़े ही विचित्र तथा आकर्षक वन्य जीव पाए जाते हैं। हमारे देश में भी वन्य जीवों की विभिन्न और विचित्र प्रजातियां पाई जाती हैं। इन सभी वन्य जीवों के विषय में ज्ञान प्राप्त करना केवल कौतूहल की दृष्टि से ही आवश्यक नहीं है, वरन यह काफी मनोरंजक भी है।
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भूमंडल पर सृष्टि की रचना कैसे हुई, सृष्टि का विकास कैसे हुआ और उस रचना में मनुष्य का क्या स्थान है? प्राचीन युग के अनेक भीमकाय जीवों का लोप क्यों हो गया और उस दृष्टि से क्या अनेक वर्तमान वन्य जीवों के लोप होने की कोई आशंका है?
मानव समाज और वन्य जीवों का पारस्परिक संबंध क्या है ?
यदि वन्य जीव भूमंडल पर न रहें, तो पर्यावरण पर तथा मनुष्य के आर्थिक विकास पर क्या प्रभाव पड़ेगा? तेजी से बढ़ती हुई आबादी की प्रतिक्रिया वन्य जीवों पर क्या हो सकती है आदि प्रश्न गहन चिंतन और अध्ययन के हैं।इसलिए भारत के वन व वन्य जीवों के बारे में थोड़ी जानकारी आवश्यक है, ताकि पाठक भलीभाँति समझ सकें कि वन्य जीवों का महत्व क्या है और वे पर्यावरण चक्र में किस प्रकार मनुष्य का साथ देते हैं।
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साथ ही यह जानना भी आवश्यक है कि सृष्टि-रचना चक्र में पर्यावरण का क्या महत्व है। पहले पेड़ हुए या गतिशील प्राणी? फिर सृष्टि-रचना की क्रिया में हर प्राणी, वनस्पति का एक निर्धारित स्थान रहा है। इस सृष्टि-रचना में मनुष्य का आविर्भाव कब हुआ? प्रकृति के इस चक्र में विभिन्न जीव-जंतुओं में क्या कोई समानता है? वैज्ञानिक दृष्टि से उसको कैसे समझा जाए, जिससे हमें पता चले कि आखिर किसी प्रजाति के लुप्त हो जाने से मानव समाज और पर्यावरण पर क्या प्रभाव पड़ सकता है, क्योंकि आखिर हम भी एक प्रजाति ही हैं।
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आज हमें सबसे ज्यादा जरूरत है पर्यावरण संकट के मुद्दे पर आम जनता और सुधी पाठकों को जागरूक करने की। हमने पर्यावरण, वन्य जीव-जंतुओं और मानव समाज का सीधा रिश्ता आम आदमी की समझ के मुताबिक समझाने का प्रयास सरल व वैज्ञानिक दृष्टि से किया है। जीव-जंतुओं व जंगल का विषय है तो बड़ा ‘क्लिष्ट’, पर है उतना ही रोचक। इसे समझने के लिए सबसे पहले खुद पर पड़ रहे पर्यावरण के प्रभाव को जानना आवश्यक है।
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दिनोदिन गम्भीर रूप लेती इस समस्या से निपटने के लिए आज आवश्यकता है एक ऐसे अभियान की, जिसमें हम सब स्वप्रेरणा से सक्रिय भागीदारी निभाएँ। इसमें हर कोई नेतृत्व करेगा, क्योंकि जिस पर्यावरण के लिए यह अभियान है उस पर सबका समान अधिकार है।
तो आइए हम सब मिलकर इस अभियान में अपने आप को जोड़ें। इसके लिए आपको कहीं जाने या किसी रैली में भाग लेने की जरूरत नहीं, केवल अपने आस-पड़ोस के पर्यावरण का अपने घर जैसा ख्याल रखें
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जैसे कि –
* घर के आसपास पौधारोपण करें। इससे आप गरमी, भूक्षरण, धूल इत्यादि से बचाव तो कर ही सकते हैं, पक्षियों को बसेरा भी दे सकते हैं, फूल वाले पौधों से आप अनेक कीट-पतंगों को आश्रय व भोजन दे सकते हैं।
* शहरी पर्यावरण में रहने वाले पशु-पक्षियों जैसे गोरैया, कबूतर, कौवे, मोर, बंदर, गाय, कुत्ते आदि के प्रति सहानुभूति रखें व आवश्यकता पड़ने पर दाना-पानी या चारा उपलब्ध कराएँ। मगर यह ध्यान रहे कि ऐसा उनसे सम्पर्क में आए बिना करना अच्छा रहेगा, क्योंकि अगर उन्हें मनुष्य की संगत की आदत पड गई तो आगे चलकर उनके लिए घातक हो सकती है।
पर्यावरण पर बड़ी-बड़ी बातें करने से पहले हमें कुछ आदतें अपनाना होंगी व उनका पालन करना होगा, क्योंकि स्थितियां बदलने की सबसे अच्छी शुरुआत स्वयं से होती है।
महत्व :- पर्यावरण को सुधारने हेतु यह दिवस महत्वपूर्ण है जिसमें पूरा विश्व रास्ते में खड़ी चुनौतियों को हल करने का रास्ता निकालता हैं। लोगों में पर्यावरण जागरूकता को जगाने के लिए संयुक्त राष्ट्र द्वारा संचालित विश्व पर्यावरण दिवस दुनिया का सबसे बड़ा वार्षिक आयोजन है। इसका मुख्य उद्देश्य हमारी प्रकृति की रक्षा के लिए जागरूकता बढ़ाना और दिन-प्रतिदिन बढ़ रहे विभिन्न पर्यावरणीय मुद्दों को देखना है।
क्या बना कानून…….
पर्यावरण की सुरक्षा के लिए एक कानून भी लागू किया है जिसे 19 नवंबर 1986 से पर्यावरण संरक्षण अधिनियम के रूप में जाना जाता है. इस कानून के तहत जल, वायु, भूमि- इन तीनों से संबंधित चीजें आती हैं. उदाहरण के तौर पर, पौधों, सूक्ष्म जीव, अन्य जीवित पदार्थ आदि पर्यावरण के अंतर्गत आते हैं जिनका संरक्षण हम सब की जिम्मेदारी है