वहीं पक्षियों की आठ में से एक यानी 12.8 फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर हैं. वैश्विक स्तर पर पक्षियों की 49 फीसदी यानी करीब 5,412 प्रजातियों की संख्या में गिरावट आ रही है। यह जानकारी पक्षियों के लिए काम कर रहे अंतराष्ट्रीय संगठन बर्ड लाइफ इंटरनेशनल द्वारा जारी नई रिपोर्ट “स्टेट ऑफ द वर्ल्डस बर्ड्स” में सामने आई है जिसे हर चार साल में जारी किया जाता है।
गौरतलब है कि इससे पहले 2018 की रिपोर्ट में, बर्डलाइफ इंटरनेशनल ने पाया था कि दुनिया भर में पक्षियों की 40 फीसदी प्रजातियों में गिरावट आ रही थी जो अब बढ़कर 49 फीसदी पर पहुंच गई है मतलब कि इन चार वर्षों में गिरावट में 9 फीसदी की वृद्धि आई है।
पक्षी पूरी धरती पर हर जगह मौजूद हैं, इनमें ऊंचे समुद्रों पर शानदार ढंग से उड़ने वाले अल्बाट्रोस से दूरदराज के वर्षावनों में गहराई में घोसला बनाने वाले मालेओस, पानी में आधा किलोमीटर नीचे गोता लगाकर मछली पकड़ने वाले एम्परर पेंगुइन से लेकर शहरों में गगनचुंबी इमारतों पर ऊंचे घोंसले बनाने वाले पेरेग्रीन फाल्कन्स तक पक्षियों की अनगिनत प्रजातियां शामिल हैं। यह पक्षी न केवल जैवविविधता का हिस्सा हैं बल्कि साथ ही हमारी धरती की सेहत का हाल भी बतलाते हैं।
वहीं रिपोर्ट से पता चला है कि पक्षियों की करीब 38 फीसदी यानी 4,234 प्रजातियों की आबादी स्थिर बनी हुई है जबकि 6 फीसदी (659) में वृद्धि हो रही है वहीं अन्य 6 फीसदी (693) के बारे में कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है।
यहां तक कि कुछ मामलों में आम और व्यापक रूप से मौजूद पक्षियों की आबादी में भी तेजी से गिरावट आ रही है। देखा जाए तो इन सामान्य प्रजातियों में आती गिरावट उन्हें संकटग्रस्त प्रजातियों की श्रेणी में शामिल करने के लिए काफी न हो लेकिन इनकी गिरावट पर्यावरण और इकोसिस्टम को प्रभावित कर सकती है।
वहीं यदि इंटरनेशनल यूनियन फॉर कंजर्वेशन ऑफ नेचर (आईयूसीएन) द्वारा संकटग्रस्त प्रजातियों के लिए जारी रेड लिस्ट में पक्षियों से जुड़े आंकड़ों को देखें तो दुनिया भर में पक्षियों की 1409 प्रजातियां खतरे में हैं। वहीं पक्षियों की आठ में से एक प्रजाति यानी 12.8 फीसदी प्रजातियां विलुप्त होने की कगार पर है। यदि इन पक्षी प्रजातियों की कुल संख्या को देखें तो वो 231 है, जबकि 423 प्रजातियां ऐसी हैं जिनपर यदि ध्यान न दिया गया तो वो आने वाले समय में दुनिया से खत्म हो जाएंगी।
इंसान ही है प्रकृति का सबसे बड़ा दुश्मन
रिपोर्ट के अनुसार पक्षियों में आ रही इस गिरावट के लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं। पता चला है कि कृषि क्षेत्र में तेजी से होता विस्तार गहनता के चलते पक्षियों की आबादी तेजी से कम हो रही है। कृषि के लिए जंगलों का तेजी से विनाश हो रहा है जोकि दुनिया भर में पक्षियों की करीब दो-तिहाई प्रजातियों का घर है। इसके साथ-साथ जिस तरह कृषि में भारी मशीनों और कीटनाशकों का उपयोग हो रहा है वो भी इन पक्षियों और उनके आवास को नुकसान पहुंचा रहा है।
देखा जाए तो कृषि विस्तार करीब 73 फीसदी पक्षी प्रजातियों में गिरावट की वजह है। इसके साथ-साथ वन का तेजी से किया जा रहा विनाश, आक्रामक प्रजातियां, प्राकृतिक संसाधनों की बढ़ती लूट और जलवायु परिवर्तन जैसे कारक भी इनके लिए बड़ा खतरा हैं।
इसी का नतीजा है कि 1980 के बाद से यूरोप में वहां कृषि भूमि में पाए जाने वाले पक्षियों में 57 फीसदी से ज्यादा की गिरावट आई है। वहीं इथियोपिया में घास के मैदानों को कृषि भूमि में बदलने के कारण वहां रहने वाले लिबेन लार्क पक्षियों की आबादी केवल 15 वर्षों में 80 फीसदी घट गई है। इस पक्षी के अब 50 से भी कम जोड़े बचे हैं।
इसी तरह उत्तरी अमेरिका में 1970 के बाद से करीब 290 करोड़ पक्षी खत्म हो गए हैं, जोकि वहां पक्षियों की कुल आबादी का करीब 29 फीसदी है। वहीं यूरोपियन यूनियन में भी 1980 से 60 करोड़ पक्षी गायब हो चुके हैं। इसी तरह ऑस्ट्रेलिया में भी 2000 से 2016 के बीच समुद्री पक्षी प्रजातियों में 43 फीसदी की गिरावट दर्ज की गई है। इसी तरह भारतीय गिद्धों और लुप्तप्राय ग्रेट इंडियन बस्टर्ड में आई गिरावट भी इसका जीवंत उदाहरण है।
देखा जाए तो पक्षियों की आबादी में आती गिरावट के लिए हम इंसान जिम्मेवार हैं। जो किसी न किसी रूप में इनको प्रभावित कर रहे हैं। ऐसे में यह हमारी जिम्मेवारी है कि हम इन पक्षियों को बचाने के लिए आगे आएं। समय बीतने के साथ संरक्षण के लिए चुनौतियां और बढ़ रही हैं। ऐसे में सरकारों को अपने वादों को ठोस कार्रवाई में तब्दील करना होगा। जिन क्षेत्रों में वो विफल रहीं हैं उन्हें वहां सफल होना होगा, क्योंकि इन पक्षियों और हमारा भविष्य एक दूसरे पर ही निर्भर है।