आज 23 नवंबर है। देश के महान वैज्ञानिक जे सी बोस का स्मृति दिवस। आज के ही दिन, 23 नवंबर 1937 को, गिरिडीह झारखंड स्थित अपने आवास पर उनका निधन हुआ था। देश ने आजादी के 75 वर्ष पूरे कर लिए।
इसे देश भर में अमृत महोत्सव के रूप में मनाया गया। यह सिलसिला अब भी जारी है। पर यह सवाल काफी महत्वपूर्ण है कि मौजूदा भारत को गढ़ने एवं यहां तक पहुंचाने वाले अपने नायकों के साथ हम कैसा सलूक करते हैं। बेहद जरूरी है उनकी विरासत की रक्षा तथा उनके सपनों एवं कार्यों को नई पीढ़ी के साथ जोड़ना, उसे आगे बढ़ाना एवं मंजिल तक पहुंचाना।
जगदीश चंद्र बोस का जीवन परिचय
- पूरा नाम जगदीश चंद्र बोस
- जन्म 30 नवम्बर 1858
- जन्मस्थान फरीदपुर, ढाका जिले
- पिता भगवान चन्द्र बोस
- माता बामा सुंदरी बोस
- पत्नी अबला बोस
- व्यवसाय भौतिक विज्ञानी
- राष्ट्रीयता ब्रिटिश राज
वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस
जगदीश चंद्र बोस एक महान भारतीय वैज्ञानिक होने के साथ-साथ एक प्रसिद्ध भौतिकशास्त्र, जीवविज्ञानी, बहुशास्त्र ज्ञानी, वनस्पतिविज्ञानी एवं पुरातात्विक थे, जिन्होंने यह साबित किया था कि पेड़-पौधों में भी भावनाएं होती हैं। इसके साथ ही वे पहले ऐसे वैज्ञानिक थे, जिन्होंने रेडियो और माइक्रोवेव ऑप्टिक्स का अविष्कार किया था।
प्रारंभिक जीवन
जगदीश चन्द्र बोस का जन्म बंगाल के मुंशीगंज इलाके में 30 नवम्बर 1858 को हुआ था। उनके पिता भगवान चन्द्र बोस फरीदपुर में डिप्टी मजिस्ट्रेट और ब्रह्म समाज के नेता थे और माता का नाम ‘बामा सुंदरी बोस’ था। बचपन से ही जगदीश चंद्र बोस को पेड़ पौधों से बेहद लगाव था। साथ ही साथ उनको महाभारत, गीता और रामायण पढ़ने का शौक भी था। बोस बचपन से ही महाभारत के एक महान किरदार ‘कर्ण’ से प्रभावित थे। जिस प्रकार कर्ण ने संपूर्ण जीवन में कभी भी हार नहीं मानी थी, उसी प्रकार जगदीश चंद्र बोस का भी यही मानना था, कि हमें जीवन में सफलता पाने के लिए कभी हार नहीं माननी चाहिए।
शिक्षा
जगदीश चंद्र बोस ने अपनी प्रारंभिक शिक्षा बंगाल के स्थानीय स्कूल से प्राप्त की। बाद में वे आगे की पढ़ाई के लिए कोलकाता आ गए। कोलकाता विश्वविद्यालय से भौतिक विज्ञान की पढ़ाई पूरी करने के बाद, वे आगे पढ़ने के लिए इंग्लैंड के कैंब्रिज विश्वविद्यालय चले गए। 1884 में कैम्ब्रिज विश्वविद्यालय से स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद बोस पुनः भारत लौट आए। इसके बाद उन्हें कोलकाता में स्थित प्रेसिडेंसी कॉलेज में भौतिक विज्ञान के अध्यापक के लिए नियुक्त किया गया।
जगदीश चंद्र का आविष्कार
जगदीश चंद्र बोस ने क्रेस्कोग्राफ नामक यंत्र बनाया। जो पेड़ पौधे की अत्यंत सूक्ष्म से सूक्ष्म गतिविधियों को भी ट्रैक कर सकता था। इस यंत्र के द्वारा बोस पेड़-पौधे और दूसरे जीव-जंतु में अनेक समानताएं प्रदर्शित करने में सफल हुए।
10 मई 1901 की बात है। रॉयल सोसाइटी लंदन का हॉल जाने माने वैज्ञानिको से खचाखच भरा हुआ था। सभी वैज्ञानिक जगदीश चंद्र बोस के इस प्रयोग को देखने के लिए इंतजार कर रहे थे। जिसमें यह सिद्ध किया जाना था कि ‘पेड़ पौधे में भी हमारी तरह संवेदनशीलता होती है’।
उन्होंने एक पौधा लिया और उसकी जड़ों को एक बोतल भरे ब्रोमाइंड नामक जहर में डुबो दिया।पौधे का संबंध अपने यंत्र से कर दिया जो पर्दे पर एक प्रकाश बिंदु द्वारा पौधे की गति प्रदर्शित करता था। पौधे से पैदा होने वाले स्पंद प्रकाश बिंदु को पर्दे पर पेंडुलम की भांति गति करा रहे थे। अचानक ही प्रकाश बिंदु ने तेजी से गति की और बाद में एकदम रुक गया।
ऐसा लगा जैसे किसी चूहे को जहर दे दिया गया हो और वह तड़प कर थोड़ी देर में मर गया हो।सचमुच पौधा जहर के प्रभाव के कारण मर गया था। इस प्रदर्शन को देख सारा हॉल तालियों की गड़गड़ाहट से गूंज उठा। लेकिन कुछ वनस्पति वैज्ञानिक इस प्रदर्शन से खुश नहीं हुए। क्योंकि बोस जैसा वैज्ञानिक उनके क्षेत्र में घुस बैठा था. उन्होंने इस प्रयोग की आलोचना की। लेकिन बॉस पर इस आलोचना का कोई प्रभाव नहीं पड़ा क्योंकि उन्हें पता था कि उनके सभी परीक्षण एकदम सही है।
जगदीश चंद्र बोस को वनस्पति विज्ञान के अलावा भौतिकी विज्ञान में भी काफी रुचि थी। उन्होंने रेडियो तरंगों पर काफी काम किया। इस विषय में काम करने की प्रेरणा उन्हें ‘हेनराक हर्टन’ के ऊपर ओलिवर लोस के शोध पत्र से मिली।
जबकि उन्हें कॉलेज में किसी भी प्रकार की कोई भी वित्तीय सहायता नहीं मिली। लेकिन उन्होंने किसी भी प्रकार की वित्तीय सहायता ना होने के बावजूद भी आवश्यक उपकरणों का निर्माण स्वयं ही 3 महीनों में कर लिया।
बोस एक वनस्पति शास्त्री के रूप में अधिक प्रसिद्ध थे लेकिन वह मूल रूप से भौतिकशास्त्री थे।एक तरह से उन्हें वायरलेस टेलीग्राफी का आविष्कारक कहा जा सकता है। जबकि उन्हें यह श्रेय कभी भी प्राप्त नही हुआ। 1895 में मारकोनी के पेटेंट लेने से 1 वर्ष पहले ही उन्होंने वायरलेस टेलीग्राफ का जनता के सामने प्रदर्शन किया था। लेकिन उनके पेटेंट कराने से पहले ही इसका श्रेय मारकोनी ने ले लिया।
उन्होंने रेडियो तरंगों का पता करने के लिए कोहरर नामक यंत्र बनाया। इस यंत्र के आधार पर उन्होंने पेड़-पौधे के अध्ययन के लिए अपना दूसरा यंत्र क्रेस्कोग्राफ बनाया. जिससे उन्हें विश्व ख्याति प्राप्त हुई।
वनस्पति विज्ञान में महत्वपूर्ण योगदान और प्रयोगों के लिए महात्मा गांधी, रविंद्र नाथ टैगोर और स्वामी विवेकानंद जैसे प्रसिद्ध व्यक्तियों ने उनके प्रयोगों का महत्व नहीं समझा। उन्हें अपने देश में प्रसिद्धि केवल तभी मिली जब पश्चिमी देशों ने उनके कार्यों को महत्वपूर्ण माना।
पुस्तकें
जगदीश चंद्र बोस ने अपने जीवन काल में दो प्रसिद्ध पुस्तकें भी लिखी थी. जो नीचे निम्नलिखित है
1 : द लिविंग एंड नॉन-लिविंग में प्रतिक्रिया
जगदीश चंद्र बोस द्वारा लिखी यह पुस्तक सन 1902 में प्रकाशित की गई। जगदीश चंद्र बोस ने इस पुस्तक में सजीव और निर्जीव वस्तुओं के बीच अंतर बताया है। इस पुस्तक में आपको पेड़-पौधों और वनस्पति से संबंधित काफ़ी जानकारियां देखने को मिलेंगी।
2 : पौधों का तंत्रिका तंत्र
1926 में बोस ने ‘द नर्वस मैकेनिज्म ऑफ प्लांट्स’ नामक पुस्तक लिखी। इस पुस्तक में उन्होंने पूर्ण रूप से पेड़ पौधों के बारे में बताया है। उन्होंने इस पुस्तक में पेड़ पौधों के नर्वस सिस्टम मैकेनिज्म के बारे में गहनता से लिखा है।
जगदीश चन्द्र का व्यक्तिगत जीवन
1887 में उन्होंने प्रसिद्ध ब्रह्म सुधारक दुर्गा मोहन दास की बेटी अबाला से शादी की। वह एक प्रसिद्ध नारीवादी स्त्री थीं और उन्होंने अपने व्यस्त वैज्ञानिक कैरियर के साथ- साथ पूरी तरह से अपने पति का समर्थन किया।
सम्मान और अवार्ड्स
- 1896 में लंदन विश्वविद्यालय से विज्ञान में डॉक्टरेट की उपाधि प्राप्त की
- इन्स्ट्यिूट ऑफ इलेक्ट्रिकल एण्ड इलेक्ट्रोनिक्स इंजीनियर्स ने जगदीष चन्द्र बोस को अपने ‘वायरलेस हॉल ऑफ फेम’ में सम्मिलित किया
- 1903 में ब्रिटिश सरकार ने बोस को कम्पेनियन ऑफ़ दि आर्डर आफ दि इंडियन एम्पायर (CIE) से सम्मानित किया
- उन्हें कम्पैनियन ऑफ़ द आर्डर ऑफ दि स्टर इंडिया (CSI) से विभूषित किया गया
- 1912 में भारत के स्टार ऑफ द ऑर्डर ऑफ कम्पेनियनने विज्ञान में उनके योगदान के लिए मान्यता दी गई।
- 1917 में ब्रिटिश सरकार ने उन्हें नाइट बैचलर की उपाधि दी
- 1920 में रॉयल सोसायटी के फैलो चुने गए
मृत्यु
23 नवंबर 1937 को 78 वर्ष की आयु में, गिरिडीह, झारखंड स्थित अपने आवास पर उनका निधन हो गया। इस असाधारण वैज्ञानिक के सम्मान में आचार्य जगदीश चंद्र बोस इंडियन बोटैनीक गार्डन का नाम रखा गया।