अकेलापन जीवन की एक बड़ी मनोवैज्ञानिक समस्या है, लेकिन यह अकेलापन बूढ़े लोगों में ज्यादा होता है. क्या इसकी वजह यह है कि युवा बूढ़ों को नजरअंदाज ज्यादा करते हैं या फिर इसका कोई शारीरिक कारण है. नए अध्ययन में इसी बात की पड़ताल की गई है कि आखिर इसके क्या प्रभाव है, इसे कितनी गंभीरता लेने की जरूरत है. अध्ययन में पाया गया है. अकेलेपन का संबंध अहसासों और उम्मीदों से ज्यादा है.

 

जीवन में अकेलापन एक छोटी समस्या नहीं हैं. आज की जीवनशैली में लोग एक दूसरे का साथ खोते जा रहे हैं और व्यस्तताओं के नाम पर संबंधों में दूरियां बढ़ती जा रही है. समाज में एक दूसरे का भावनात्मक साथ का महत्व हमें कोविड महामारी ने और ज्यादा सिखाई है. लेकिन अकेलेपन संबंधी चुनौतियों के बारे में दुनिया के नेता पहले ही चेताने लगे थे. साल 2018 में ब्रिटेन पहला ऐसा देश बना जिसने अकेलेपन के लिए मंत्री बनाया था. इसके बाद जापान ने 2021 में ऐसा मंत्रालय बनाया था. 

 

पिछले शोधों ने दर्शाया है कि अकेलेपन एक भावना से कहीं ज्यादा बढ़कर चीज है. इसके सेहत पर बहुत गहरे असर हो सकते हैं और इसका डिमेन्शिया, अल्जाइमर जैसी बीमारियां दिल की बीमारियां स्ट्रोक, आदि के जोखिम बढ़ाने से संबंधित हैं. कई वैज्ञानिक दावा करते हैं यह धूम्रपान या मोटापे जैसी समस्या के समकक्ष मानी जा सकती है.

 

नए अध्ययन किंग्स कॉलेज लंदन के शोधकर्ताओं की टीम ने इस बात पर प्रकाश डाला है कि लोग क्यों अकेलापन महसूस क्यों करते हैं और वह बुढ़ापे के जीवन में ऐसा ज्यादा महसूस क्यों किया जाता है. इस अध्ययन यह पड़ताल भी की गई कि इस मामले में क्या किया जा सकता है. केसीएल के हेल्थ सर्विस और पॉपुलेशन रिसर्च की स्नातक छात्रा और इस अध्ययन की प्रमुख लेखक सामिया अख्तर खान ने बताया कि अकेलापन वास्तव में प्रत्याशित और वास्तविक समाजिक संबंधों में विसंगति का नतीजा है.

 

वर्तमान शोध में हमने अकेलेपन से संबंधित जिस समस्या की पहचान की वह यह थी कि हमने वास्तव में इस विचार के बारे में नहीं सोचा कि लोग अपने संबंधों में उम्मीद क्या करते हैं. हम आशाओं की इस परिभाषा के आधार पर काम करते हैं, लेकिन हम हकीकत में यह नहीं पहचान पाते हैं कि वो आशाएं क्या और कसे वह जीवनकाल या संस्कृति के साथ बदल जाएंगीं.

 

अख्तर-खान और उनके सहयोगियों के मुताबिक अकेलेपन के मामले में बूढ़े लोगों में कुछ संबंधों की उम्मीदें हो सकती हैं जिन्हें मोटे तौर पर अनदेखा किया गया होगा. जैसे शायद वे सम्मान चाहते हों, या लोगों से उम्मीद करते हों कि वे उनकी बात सुनें या फिर उनके अनुभवों में रुचि लें, उनकी गलतियों से सीखे और जिससे वे गुजरें हैं और जिससे से बाधाओं को पार कर ने निकले उसकी प्रशंसा करें.

 

इसके अलावा अकेलापन महसूस कर रहे बूढ़े लोग यदि दूसरों के लिए या फिर अपने समुदाय के लिए कुछ करना चाहते हैं और अपनी परंपराओं या कौशल को आगे शिक्षा, मार्गनिर्देशन, आदि के जरिए अगली पीढ़ी या दूसरों को देना चाहते हैं. यानि उम्मीदों का पूरा होना लंबे समय तक जीवन के उत्तर काल में अकेलेपन से निपटने में मदद करती है.दुर्भाग्य से अकेलेपन को मापने के नियमित पैमानों मे इन कारकों को शामिल नहीं किया गया है. ज्यादातर ऐसा इसलिए हता है कि बूढ़े लोगों के श्रम और योगदान को आर्थिक पैमानों के सूचकांको में शामिल नहीं किया जाता है. महामारी के कराण इंसानो जो अभी अकेलेपन की समस्याएं झेल रहे हैं, यह साफ करने के लिए और ज्यादा शोध की जरूरत है कि लोग क्यों अपने जीवन के अलग-अलग समयमें अकेलापन महसूस करते हैं.

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