दयानिधि

दुनिया भर के 114 दृश्यों को देखा गया जिनमें से 83 फीसदी में पक्षी, 11 फीसदी स्तनधारी, जबकि 3.5 फीसदी अकशेरुकी और 2 फीसदी मछलियां कोविड-19 के कचरे के सबसे अधिक संपर्क में थे।महामारी के दौरान बनाए गए अरबों फेस मास्क और दस्ताने प्लास्टिक प्रदूषण को लेकर एक और बड़े मुद्दे को सामने ला रहे हैं। कोविड-19 बीमारी के बहुत आगे निकल जाने और आने वाली सदियों तक इसके हमारे साथ रहने के आसार हैं।

अब दुनिया भर के सामुदायिक विज्ञान अवलोकनों का उपयोग करते हुए एक अध्ययन किया गया है। अध्ययन में पाया गया है कि डिस्पोजेबल फेस मास्क और प्लास्टिक के दस्ताने सैकड़ों वर्षों तक नहीं तो दसियों वर्षों तक वन्य जीवों के लिए खतरा पैदा कर सकते हैं। इन फेस मास्कों के जानवरों के शरीर में फसना सबसे आम खतरों में से एक है, कुछ जानवर प्लास्टिक के मलबे में फंसने के बाद मर गए हैं।

अध्ययनकर्ता डॉ. एलेक्स कहते हैं कि हम वास्तव में नहीं जानते कि महामारी से होने वाली बर्बादी से कितनी बड़ी समस्या हो सकती है। चूंकि दुनिया के कई इलाकों में आनावश्यक गतिविधि पर प्रतिबंध लगाया गया था, हम कभी भी इस मुद्दे की वास्तविक सीमा को नहीं जान पाएंगे। लेकिन यह अध्ययन हमें प्रभावित प्रजातियों की विशाल विविधता का एक हिस्सा दिखता है। डॉ. एलेक्स बॉन्ड, प्रमुख क्यूरेटर और संग्रहालय में पक्षियों के प्रभारी क्यूरेटर हैं।

यह अध्ययन दुनिया भर के केवल 114 अवलोकनों पर आधारित है, इस बात के आसार हैं कि यह वन्यजीवों पर कोविड-19 कचरे के बहुत बड़े प्रभावों के एक छोटे से हिस्से को उजागर करता है।महामारी के बढ़ते स्वरूप के चलते दुनिया भर में प्रति माह अनुमानित 129 अरब से अधिक मास्क की मांग रही, महामारी के कचरे का प्रभाव और अधिक स्पष्ट हो जाएगा क्योंकि और भी अधिक प्लास्टिक हमारे पारिस्थितिक तंत्र में अपना काम करता है।

एलेक्स कहते हैं कि हम अपने पर्यावरण में अधिकांश कूड़े को छानते हैं, क्योंकि यह कुरकुरे का पैकेट या सिगरेट बट्स जैसे उदाहरणों का प्रतिनिधित्व करता है जिन्हें हमने वर्षों या दशकों से देखा है। जबकि पीपीई किट ने महामारी के शुरुआती दिनों में हमारे अपशिष्ट प्रबंधन प्रणालियों को भर दिया था, तो यह बहुत अधिक स्पष्ट था क्योंकि यह नया था। अब जब हम जमीन पर पड़ा एक नीला फेस मास्क देखते हैं तो हम उससे बच के निक जाते हैं। यह कूड़ा तेजी से हमारे पर्यावरण में रोजमर्रा के अनुभव का हिस्सा बन गया है।

कोविड-19 महामारी ने प्लास्टिक प्रदूषण को कैसे बढ़ाया?

जब मार्च 2020 में कोविड-19 को महामारी घोषित किया गया था, तो वैज्ञानिकों ने इसे एकल या एक बार उपयोग होने वाले प्लास्टिक के उत्पादन और उपयोग में अभूतपूर्व वृद्धि के रूप में जाहिर किया था। पीपीई उद्योग के बाजार की अहमियत महामारी के पहले वर्ष में लगभग 200 गुना तक बढ़ गई  क्योंकि वायरस के फैलने को रोकने के लिए दुनिया भर के देशों में इसे जरूरी पाया गया था।

इनमें से कुछ जरूरी चीजों में विशेष प्रकार के फेस मास्क और अन्य सुरक्षात्मक चीजों के बारे में भी निर्देश दिए गए थे, जिनमें से अधिकांश एक बार उपयोग होने वाली चीजें थी। मार्च से अक्टूबर 2020 तक फेंके गए फेस मास्क की मात्रा में 80 गुना से अधिक की वृद्धि हुई, जो वैश्विक स्तर पर सभी डंप किए गए कूड़े का लगभग 1 फीसदी तक है।

इनमें से कुछ फेस मास्कों ने निर्जन क्षेत्रों में भी अपना रास्ता बना लिया, माना जाता है कि सोको द्वीप समूह के समुद्र तटों पर पाए जाने वाले 70 फीसदी फेस मास्क पास के हांगकांग से बह कर आए थे।इस बीच, डिस्पोजेबल दस्ताने, शुरू में अप्रैल 2020 में वैश्विक स्तर पर लगभग 2.4 फीसदी डंप किए गए कूड़े तक पहुंच गए, लेकिन फिर साल के आगे बढ़ने के साथ-साथ 0.4 फीसदी तक कम हो गए थे।

 

जैसे-जैसे कूड़े का स्तर बढ़ता गया, महामारी से संबंधित मलबे से जूझ रहे वन्यजीव अधिक सामान्य होते गए। उदाहरण के लिए, आरएसपीसीए ने एक गुल को बचाने के बाद चिंता जताई, जिसके पैरों के चारों ओर कसकर एक फेस मास्क उलझा हुआ था जिसके कारण उसे चलने में कठिनाई हो रही थी।

कूड़े से वन्यजीवों की मौत हो सकती है, पहले माना जाता है कि एक अमेरिकी रॉबिन अप्रैल 2020 में कनाडा में एक फेस मास्क में फंसने के बाद मृत पाया गया था। उस वर्ष बाद में, ब्राजील में मैगेलैनिक पेंगुइन द्वारा खाए गए एक फेस मास्क के बारे में माना जाता है कि इसके कारण पक्षी की मृत्यु हो गई थी।

भले ही मृत्यु का प्रत्यक्ष कारण न हो, कूड़ा-करकट वन्यजीवों को कमजोर कर सकता है और उन्हें घातक चोटों के प्रति अधिक संवेदनशील बना सकता है। उदाहरण के लिए, रॉटरडैम में एक गुल एक कार से टकरा गया था, जबकि वह एक फेस मास्क से उलझा हुआ था, जिसके बारे में माना जाता है कि इससे उसके बचने की क्षमता सीमित हो गई थी। पक्षियों के अलावा, कोविड-19 मास्क और दस्ताने ने चमगादड़, केकड़े, हाथी और कई अन्य वन्यजीवों पर भी असर डाला है। वर्तमान में अध्ययनकर्ता इस बात की जांच करना चाहते थे कि इस कूड़े ने वन्यजीवों को कैसे प्रभावित किया है और कैसे सामुदायिक वैज्ञानिक ऐसे समय में जांच करने में मदद कर सकते हैं जब अंतरराष्ट्रीय यात्रा पर भारी प्रतिबंधित लगे थे।

कोविड-19 के कचरे से वन्यजीव कैसे प्रभावित हुए?

अध्ययनकर्ताओं ने अप्रकाशित वैज्ञानिक रिपोर्ट, सामुदायिक विज्ञान प्लेटफॉर्म और सोशल मीडिया नेटवर्क सहित विभिन्न स्रोतों से आंकड़ों का उपयोग किया। तब प्रत्येक महामारी अपशिष्ट घटना के बारे में अधिक से अधिक जानकारी हासिल करने के लिए गवाहों से संपर्क किया गया था।

कुल मिलाकर, अध्ययनकर्ताओं ने दुनिया भर के 114 दृश्यों को देखा गया जिनमें से 83 फीसदी में पक्षी, 11 फीसदी स्तनधारी, जबकि 3.5 फीसदी अकशेरुकी और 2 फीसदी मछलियां कोविड-19 के कचरे के सबसे अधिक संपर्क में थे।

मौजूदा परिणाम इस बात की तस्दीक करता है कि पक्षियों को प्लास्टिक से उलझने का विशेष खतरा है, समुद्री पक्षी प्रजातियों की अनुमानित तीसरी और मीठे पानी की प्रजातियों का दसवें हिस्से में सिंथेटिक वस्तुओं को पाया  गया है।

एलेक्स कहते हैं कि कई पक्षी घोंसले का निर्माण करते हैं और वे आम तौर पर उन्हें फिलामेंट वस्तुओं से बनाते हैं, चाहे वह घास, टहनियां, काई या मकड़ी का रेशम हो। दुर्भाग्य से, बहुत सारे कचरे में समान विशेषताएं होती हैं, विशेष रूप से मास्क जैसी वस्तुएं जिनमें कानों के चारों ओर लूप होते हैं। जब इसे घोंसलों में शामिल किया जाता है, तो यह वयस्कों और उनके चूजों दोनों के लिए एक उलझने का खतरा पैदा करता है।

उन्होंने कहा कि यह अध्ययन अंग्रेजी भाषा की खोजों तक सीमित था और सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म जो दुनिया के कुछ देशों में प्रभावी नहीं हैं, शोध इस बात की जानकारी प्रदान करता है कि महामारी पर्यावरण को कैसे प्रभावित करती रहेगी।

डिस्पोजेबल फेस मास्क को नष्ट होने में लगभग 450 साल तक का समय लग सकते हैं, कोविड-19 के दौरान छोड़े गए कचरे को भविष्य में वैश्विक प्लास्टिक प्रदूषण से निपटने के किसी भी प्रयास पर विचार करना होगा। कचरे के खिलाफ इस लड़ाई में, अध्ययन ने दिखाया कि समस्या को खोजने और दूसरों को सचेत करने में मदद करने के लिए सामुदायिक वैज्ञानिकों पर सहयोगी के रूप में भरोसा किया जा सकता है। अध्ययनकर्ताओं ने क्षेत्र को अधिक न्यायसंगत बनाते हुए प्लास्टिक प्रदूषण के खिलाफ लड़ाई में वैज्ञानिकों और नीति निर्माताओं की सहायता करने के लिए सभी क्षेत्रों के लोगों की मदद करने के लिए अधिक सुव्यवस्थित सामुदायिक विज्ञान प्लेटफार्मों को विकसित करने के लिए अधिक प्रयासों का आह्वान किया। यह अध्ययन साइंस ऑफ द टोटल एनवायरनमेंट में प्रकाशित हुआ है।

( ‘डाउन टू अर्थ ‘ पत्रिका से साभार )

Spread the information