रेहाना कौसर
घरेलू हिंसा न केवल भारत की समस्या है, बल्कि पूरा विश्व इस भयावह स्थिति से गुजर रहा हैं
देश के अन्य हिस्सों की तरह केंद्र शासित प्रदेश जम्मू और कश्मीर के सीमावर्ती जिला पुंछ के सुरनकोट तहसील स्थित सीरी चौहाना गांव में भी किशोरियों के खिलाफ हिंसा की ऐसी घटनाएं आम हैं। यहां ऐसे कई घर हैं, जहां किशोरियां स्कूल छोड़ चुकी हैं।
उन्हें इससे वंचित कर घर के कामों में लगा दिया गया है। इस संबंध में गांव की एक 17 वर्षीय किशोरी हफ़ीज़ा बी कहती है कि ‘मुझे 11वीं में दाखिला नहीं मिल सका, क्योंकि मेरे परिवार ने मुझे आगे पढ़ने की इजाजत नहीं दी।
मुझे पढ़ाई कराने के बजाय घर का सारा काम करवाया जाता है। स्कूल जाने का नाम लेती हूं तो कहा जाता है कि पढ़ने-लिखने से क्या तुम्हें मिलेगा? यदि घर का काम करती हो, तो अपने ससुराल में सम्मान से रहोगी। पढ़ाई तुम्हारे काम नहीं आएगी।
हफ़ीज़ा कहती है कि मेरी दो और बहनें भी हैं। हम तीनों बहनें घर का सारा काम करती हैं। जंगल से घास और लकड़ियां काट कर लाती हैं। पानी लाने के लिए तीन किमी दूर जाती हैं।
वह कहती है, “जब मैं बाकी लड़कियों को स्कूल जाते देखती हूं तो मेरा दिल बैठ जाता है, जिस समय मेरे सिर पर गोबर की टोकरी होती है उनके पास किताबों से भरा बैग होता है। मेरा भी सपना था कि मैं डॉक्टर बनकर अपने गांव के लोगों की सेवा करूं, लेकिन मेरे सारे सपने अधूरे रह गए।”
वह कहती हैं कि मैं यह कभी समझ नहीं पाई कि लोग लड़कियों की शिक्षा को महत्व क्यों नहीं देते है? क्यों उन्हें लगता है कि केवल लड़कों के शिक्षित हो जाने से समाज विकसित हो जाएगा और लड़कियों के पढ़ लेने से समाज में बिगाड़ आ जायेगा? जबकि देश और दुनिया में ऐसे कई उदाहरण हैं, जहां शिक्षित महिलाओं ने घर से लेकर बाहर तक की व्यवस्था को बखूबी संभाला है।
इस संबंध में गांव की उप सरपंच जमीला बी (उम्र 35 वर्ष) का भी मानना है कि हमारे गांव में लड़कियों की साक्षरता दर बहुत कम है। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने के बहुत कम अवसर मिलते हैं। इसके पीछे वह तर्क देती हैं कि कई ऐसे घर हैं, जिनकी आर्थिक स्थिति ठीक नहीं है, वहीं कुछ परिवार शिक्षा के प्रति जागरूक नहीं होते हैं।
इस वजह से लड़कियों को बहुत कम उम्र में ही घर के काम तक सीमित कर दिया जाता है। वे प्रतिदिन लकड़ी इकट्ठा करती हैं, घर के सभी सदस्यों के लिए खाना बनाती हैं, उनके कपड़े धोती हैं, चक्की से आटा पिसवाने जाती हैं, धान कूटने का काम करती हैं। इसके अलावा किशोरियां घर के कामों में भी पुरुषों की मदद करती हैं।
वह बताती हैं कि पांच से नौ साल की उम्र के बीच 30 फीसदी जबकि चौदह साल की उम्र तक पचास प्रतिशत से अधिक किशोरियां हमेशा के लिए स्कूल छोड़कर घर के कामकाज में लग जाती हैं। जमीला बी के अनुसार किशोरियों का जंगल में लकड़ी इकट्ठा करने जाना उनके लिए यौन हिंसा के जोखिम का कारण भी बनता है।
उनका मानना है कि आज के दौर में लड़कियां अपने परिवार के दबाव में शिक्षा छोड़ देती हैं। परिवार वालों को लगता है कि अगर आज लड़की स्कूल जाएगी तो रास्ते में बहुत दिक्कतें आएंगी और मां-बाप को डर है कि कहीं हमारी बदनामी न हो जाए. इसलिए उन्हें स्कूल नहीं भेजा जाता है।
इस संबंध में 40 वर्षीय एक स्थानीय निवासी फैज़ुल हुसैन समाज की संकीर्ण सोच को उजागर करते हुए कहते हैं कि कुछ लोग सोचते हैं कि लड़कियां घरेलू काम के लिए बनी एक मशीन होती है। उन्हें शिक्षा प्राप्त करने का कोई अधिकार नहीं है। उन्हें पांव की जूती समझा जाता है।
घर के किसी भी अहम फैसले में उन्हें शामिल नहीं किया जाता है. उनके भविष्य के फैसले भी पुरुषों द्वारा तय किए जाते हैं। एक लड़की यह भी तय नहीं कर सकती कि उसे भविष्य में क्या बनना है? वह समाज की संकीर्ण सोच की कड़े शब्दों में निंदा करते हुए कहते हैं कि नारी कोई निर्जीव वस्तु नहीं, बल्कि हमारी तरह इंसान है।
फैज़ुल हुसैन का मानना है कि महिलाएं और लड़कियां तब तक अपनी आवाज नहीं बनेंगी, जब तक वह अपनी चुप्पी नहीं तोड़तीं हैं।
वहीं 25 वर्षीया गुलनाज अख्तर कहती हैं कि कई लोग सोचते हैं कि हिंसा का मतलब शरीर को नुकसान पहुंचाना है, जबकि हिंसा केवल शारीरिक ही नहीं मानसिक भी होती है। महिलाओं को शिक्षा से वंचित रखा जाता है और उनसे घर के काम करवाए जाते हैं।
यहां लड़कियां भी कंधे पर पत्थर, सीमेंट और बजरी लेकर चलती हैं। वह कहती हैं कि आजकल लगभग हर घर में महिलाएं हर तरह की हिंसा का शिकार होती हैं। इसका मुख्य कारण आर्थिक समस्याएं और शिक्षा की कमी है। छोटी सी उम्र में ही लड़कियों से किताबें छीन कर भारी काम करवाया जाता है जो बाद में उनमें बीमारियों का कारण बनता है। वह सवाल करती है कि “आखिर किशोरियां कब तक यह अत्याचार सहती रहेगी?”
बहरहाल, समाज में महिलाओं के स्थान और उनके महत्व को खुले दिल और दिमाग से पहचानने की आवश्यकता है। उन क़दमों को रोकना होगा जो किशोरियों के खिलाफ हिंसा के लिए उठते हैं. उन्हें शिक्षा से वंचित कर घर के कामों तक सीमित कर देते हैं।
(डाउन-टू-अर्थ पत्रिका से साभार, लेखिका पुंछ, जम्मू की रहने वाली हैं )