प्रत्येक साल 13 अगस्‍त को विश्‍व अंगदान दिवस मनाया जाता है। अंगदान जीवन का सबसे बड़ा महापुण्‍य है। इससे दूसरे लोगों का जीवन को बचाया जा सकता है। यह दिवस इसलिए मनाया जाता है ताकि लोगों में अंगदान करने के प्रति जागरूकता फैले। डॉक्टर जिस व्यक्ति को ब्रेन डेड घोषित कर देते हैं उनका अंग दान किया जा सकता है। यह व्यक्ति किसी भी उम्र का हो सकता है। जन्म से लेकर 65 साल तक के व्यक्ति के अंगों को डोनेट किया जा सकता है।

विश्व अंग दान दिवस (World Organ Donation Day) हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है। यह दिन अंग दान के महत्व (importance) के बारे में जागरूकता (awareness) बढ़ाने और लोगों को मृत्यु (death) के बाद अंग दान (donate organs) करने के लिए प्रेरित करने के लिए मनाया जाता है। यह दिन सभी को आगे आने और अपने कीमती अंगों (precious organs) को दान करने का संकल्प (pledge) लेने का अवसर प्रदान करता है क्योंकि एक अंग दाता आठ लोगों की जान बचा सकता है।

अंगदान के बारे में

अंगदान दाता के मरने के बाद दाता के अंग जैसे हृदय (heart), यकृत (liver), गुर्दे (kidneys), आंतों (intestines), फेफड़े (lungs) और अग्न्याशय (pancreas) को पुनः प्राप्त कर रहा है और फिर किसी अन्य व्यक्ति में प्रत्यारोपण (transplanting) कर रहा है जिसे अंग की आवश्यकता है।

किन अंगों का दान किया जा सकता है?

जिन व्यक्ति का ब्रेन डेड हो जाता है। उसकी बचने संभावना नहीं के बराबर होती है। उनके अंगों का दान किया जा सकता है। अंगों में हृदय, ह्दय वॉल्‍व, फेफड़े, किडनी, लीवर ,अस्थ्यिां, कार्निया, आंख की पुतली, आंत, अस्थि ऊतक, त्वचा ऊतक, नसें, त्‍वचा, खून की नलियां इत्यादि दान किए जा सकते हैं। दान किए गए लीवर को 6 घंटे में ट्रांस प्लांट कर देना चाहिए। किडनी को 12 घंटे तक, पेंक्रियाज को 24 घंटे के भीतर, दिल को 4 घंटे के भीतर दूसरे व्यक्ति में प्लांट कर देना चाहिए। नेचुरल मौत पर हृदय के वॉल्‍व, हड्डी, नसें, त्‍वचा और कॉर्निया दान कर सकते हैं। डायबिटिज, कैंसर, हृदय रोगी, एचआईवी मरीज के भी अंग दान किए जा सकते हैं लेकिन डॉक्टर से सलाह लेना जरूरी है। 18 साल के कम उम्र वालों के अंग दान करने के लिए मां-बाप की अनुमति जरूरी है।

 

अंग दान से जहां आप किसी की जिंदगी बचाते हैं वहीं मृत्योपरांत शरीर दान से समाज को कुशल डाक्टर मिलते हैं। कारण कि एक अच्छा डाक्टर बनने के लिए मानव शरीर की संरचना को समझने को मृत शरीर का गहन अध्ययन जरूरी है। यानी चिकित्सा विज्ञान में पठन-पाठन के लिए मृत्यु के बाद शरीर का दान आवश्यक हो जाता है। देवतुल्य व्यक्ति मृत्यु के बाद शरीर दान करते हैं तो वे अच्छे डाक्टर बनाने में किसी शिक्षक जितना ही सहयोग करते हैं। अगर अंग प्रत्यारोपण (ट्रांसप्लांट) किए जाने लायक हो तो उससे कई लोगों की जान बचाई जा सकती है। विश्व अंगदान दिवस हर साल 13 अगस्त को मनाया जाता है, जिसका उद्देश्य इंसान को मृत्यु के बाद अंगदान या देहदान की मात्र प्रतिज्ञा दिलाने के लिए प्रोत्साहित करना है। तो आइए हम प्रतिज्ञा लें कि यह नेक कार्य कर हम मनावता की भलाई कर सके। आप चिकित्सा विज्ञान संस्थान, बीएचयू के शरीर रचना विभाग में देहदान करने के लिए आवेदन कर सकते हैं।

ताकि एक साल तक कोई भी कर सके अंतिम दर्शन

देहदान की प्रक्रिया बहुत सरल है। 10 रुपये के स्टांप पेपर पर स्वैच्छिक दान का प्रपत्र व्यक्ति अपने जीवित रहते ही बना सकते हैं। ताकि मृत्यु के बाद उनके परिजन यह महान दान कर सके। एक वर्ष तक शवगृह में दान किया गया शरीर सुरक्षित रखा जाता है ताकि कोई भी अंतिम दर्शन कर सके। एक वर्ष बीतने पर ही छात्र उस शरीर पर अंक संरचना व सर्जरी सीखते हैं।

अंग दान कौन कर सकता है?

किसी के अंग दान करना किसी को एक नया जीवन देना है, कोई भी स्वेच्छा से अंग दाता बनने के लिए अपनी उम्र, जाति और धर्म की परवाह किए बिना कर सकता है. हालांकि, यह सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण है कि स्वेच्छा से अपने अंग दान करने वाले लोग एचआईवी, कैंसर, या किसी हृदय और फेफड़ों की बीमारी जैसी पुरानी बीमारियों से पीड़ित नहीं हैं. एक स्वस्थ दाता सर्वोपरि है. 18 वर्ष की आयु तक पहुंचने के बाद कोई भी दाता बनने के लिए साइन अप कर सकता है.

 

प्राकृतिक मौत के आठ घंटे के अंदर दें सूचना

प्राकृतिक मौत के आठ घंटे के अंदर सूचना संबंधित विभाग को देनी होती है। इसके लिए आइएमएस, बीएचयू के अनाटमी (शरीर रचना) विभाग में कार्य दिवस के दौरान सुबह आठ से शाम 4.30 बजे और गैर कार्य दिवस पर शाम 4.30 से सुबह आठ बजे तक संपर्क किया जा सकता है।

पांच साल में 73 लोगों का देहदान हुआ

कम लोग ही ऐसे दानवीर होते हैं, जो शरीर या अंग दान करते हैं। शरीर दान दिवस पर लोगों से अपील है कि यह महान दान समाज कल्याण के लिए करें। साथ ही अपने परिवार से आग्रह करें कि मृत्यु के बाद शरीर चिकित्सा विज्ञान संस्था को दान कर दिया जाए। पांच साल में 73 लोगों का देहदान हुआ है। इसमें पिछले एक साल में ही 13 लोगों ने देहदान किया है। इससे लगता है कि अब लोगों में जागरूकता बढ़ी है।

अंगों के सुरक्षित रहने की समयावधि

– हार्ट: 4-6 घंटे
– लंग्स: 4-8 घंटे
– इंटेस्टाइन: 6-10 घंटे
– लिवर: 12-15 घंटे
– पैंक्रियाज़: 12-24 घंटे
– किडनी: 24-48 घंटे

भारत में अंगदान को लेकर उदासीनता क्यों?

– दरअसल, जागरूकता व जानकारी की कमी व कई तरह के अंधविश्‍वासों के चलते लोग आगे नहीं बढ़ते.

– हालांकि कई बड़ी हस्तियों द्वारा कैंपेन करने के बाद लोग आगे आ रहे हैं, लेकिन संस्थाओं व अस्पतालों का रवैया भी कुछ उदासीन है और लोग इससे परेशान होकर भी अपना इरादा बदल लेते हैं. बेहतर

   होगा कि इस तरह के प्रयासों के लिए जागरूकता अभियान और बेहतर तरी़के से हो. लोगों को शिक्षित किया जाए कि किस तरह से वो मृत्यु के बाद भी लोगों की ज़िंदगियां बचा सकते हैं.

– डोनेशन की प्रक्रिया व व्यवस्था को बेहतर बनाया जाए.

– इसके अलावा धर्म संबंधी ग़लतफ़हमियों के चलते भी लोग अंगदान/देहदान नहीं करते, जबकि सच्चाई यह है कि हर बड़े धर्म में अंगदान/देहदान की इजाज़त दी गई है.

– अंतत: यही कहा जा सकता है कि अंगों की आवश्यकता स्वर्ग में नहीं, धरती पर है, तो क्यों इन्हें जलाया या ख़ाक़ में मिलाया जाए, क्यों न इन्हें डोनेट करें.

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