15 नवंबर 2000 को झारखंड को बिहार से अलग करके नया राज्य बनाया गया था. 15 से 22 नवंबर तक आजादी के अमृत महोत्सव के तहत पूरे देश में जनजातीय महोत्सव मनाया जा रहा है. जिसके तहत जनजातीय समुदाय के स्वतंत्रता सेनानियों के कृतित्व, उनकी कला और संस्कृति पर कार्यक्रम आयोजित होगा.
जनजातीय जीवन, संस्कृति और उपलब्धियों के गौरवशाली इतिहास को आम जनों तक पहुंचाने के उद्देश्य से भगवान बिरसा मुंडा (Birsa Munda) की जयंती आज 15 नवंबर को देश जनजातीय गौरव दिवस के रूप में मना रहा है. 15-22 नवंबर 2021 तक सप्ताह भर चलने वाले समारोहों के माध्यम से जनजातीय नायकों को और उनके योगदान को याद करने का बेहद ही अनूठा प्रयास है. भारत के स्वतंत्रता संग्राम में जनजातीय समुदाय का उल्लेखनीय योगदान रहा है.
दरअसल, यह दिन वीर आदिवासी स्वतंत्रता सेनानियों की स्मृति को समर्पित है ताकि आने वाली पीढ़ियां देश के प्रति उनके बलिदानों के बारे में जान सकें. संथाल, तामार, कोल, भील, खासी और मिजो जैसे कई जनजातीय समुदायों द्वारा विभिन्न आंदोलनों के जरिए भारत के स्वतंत्रता संग्राम को मजबूत किया गया था. जनजातीय समुदायों के क्रांतिकारी आंदोलनों और संघर्षों को उनके अपार साहस एवं सर्वोच्च बलिदान की वजह से जाना जाता है.
देश के विभिन्न क्षेत्रों में ब्रिटिश औपनिवेशिक शासन के खिलाफ आदिवासी आंदोलनों को राष्ट्रीय स्वतंत्रता संग्राम से जोड़ा गया और इसने पूरे देश में भारतीयों को प्रेरित किया. हालांकि, देश के ज्यादातर लोग इन आदिवासी नायकों को लेकर ज्यादा नहीं जानते हैं. वर्ष 2016 के स्वतंत्रता दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के भाषण के अनुरूप भारत सरकार ने देश भर में 10 जनजातीय स्वतंत्रता सेनानी संग्रहालयों को मंजूरी दी है.
भगवान बिरसा मुंडा (पूर्ति) का जन्म 15 नवंबर, 1875 को झारखंड के रांची के नजदीक खूंटी जिले के उलीहातु गांव में मुंडा जनजाति के गरीब परिवार में पिता-सुगना पुर्ती(मुंडा) और माता-करमी पुर्ती (मुंडाईन) के घर में हुआ था. भारतीय इतिहास में बिरसा मुंडा एक ऐसे नायक थे, जिन्होंने भारत के झारखंड में अपने क्रांतिकारी चिंतन से उन्नीसवीं शताब्दी के उत्तरार्द्ध में आदिवासी समाज की दशा और दिशा बदलकर नवीन सामाजिक और राजनीतिक युग का सूत्रपात किया.
बिरसा मुंडा ने साहस की स्याही से पुरुषार्थ के पृष्ठों पर शौर्य की शब्दावली रची. उन्होंने हिन्दू धर्म और ईसाई धर्म का बारीकी से अध्ययन किया तथा इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि आदिवासी समाज मिशनरियों से भ्रमित है. बिरसा मुंडा सही मायने में पराक्रम और सामाजिक जागरण के धरातल पर तत्कालीन युग के एकलव्य और स्वामी विवेकानंद थे. बिरसा मुंडा की गणना महान देशभक्तों में की जाती है.
ब्रिटिश हुकूमत ने इसे खतरे का संकेत समझकर बिरसा मुंडा को गिरफ्तार करके जेल में डाल दिया. वहां अंग्रेजों ने उन्हें धीमा जहर दिया था. जिस कारण वे 9 जून 1900 को शहीद हो गए. भगवान बिरसा मुंडा को ‘धरती आबा’ भी कहा जाता है, जिसका अर्थ है- धरती पिता. हाल में ही पीएम मोदी ने अपने एक संबोधन में कहा था, ”भगवान बिरसा मुंडा ने जिस तरह अपनी संस्कृति, अपने जंगल, अपनी जमीन की रक्षा के लिय संघर्ष किया, वह कोई धरती आबा ही कर सकते थे. उन्होंने हमें अपनी संस्कृति और जड़ों के प्रति गर्व करना सिखाया.”