#आखिर तुम्हें कब मिलेगीआजादी ??*
दुनियां चाँद पे चली गई !
मंगल की छाती पर
नासा ने रोबोट उतार दिया!
शनि मंगल
सूर्यग्रहण- चन्द्रग्रहण के
हर रहस्य से पर्दा उठ गया !
मगर फिर भी तुम
ग्रह नक्षत्रों को
शनि मंगल को
जन्मकुंडली में देख -देख कर
काँप रहे हो !
अपना भविष्य सुधारने के लिए
बाबा बाबियों का रास्ता
नाप रहे हो!!
क्या इसी दिन के लिए तुमने
बीएससी एमएससी पीएचडी
की थी !
कि तुम पढ़ेलिखे जाहिलों की
फौज में शामिल हो जाना !
क्या इसी दिन के लिए तुम
डॉक्टर इंजीनियर वकील – मजिस्ट्रेट या प्रोफेसर बने थे ?
कि बंगले पर
काली हांडी टांगना !
निम्बू मिर्ची टांगना !
और अपने उज्ज्वल भविष्य की भीख
किसी बाबा बाबी के दरबार में नाक रगड़ कर माँगना !!
देश आजाद हो गया !
दुनिया आजाद हो गई !
आखिर
कब मिलेगी तुम्हें आजादी!
मानसिक गुलामी से ???
बंद कमरे में तुम्हारी चोंटी
कट जाती !
अँधेरे में अकेले में
तुम्हें भूत -पलीत सताते हैं !
तुम्हें ही सारी दुनिया की
नजर लगती है !
डायन तो तुम्हारे
हर घर में
मौजूद है !!
तुम्हारे तंत्र मंत्र यंत्र
काम क्यों नहीं करते हैं !
रक्षा सूत्र तुम्हारी चोंटी
क्यों नहीं बचाता है !
आखिर कब तक
तुम मानसिक गुलाम रहोगे !
क्या भारत
पुनः विश्व गुरु
तुम्हारे जैसे मनोरोगियों की
वजह से
कभी बन पाएगा ?
दुनिया रोज नए- नए आविष्कार कर रही है !
तुम हजारों साल पुरानी भाषा संस्कृति रीति रिवाजो की
वैज्ञानिक व्याख्या करने में
लगे हो !
कब तक शब्दों के साथ
बलात्कार करोगे ?
कब तक धोखे में रखोगे !
भारत की भोली भाली जनता को
हर सिद्धान्त हर आविष्कार को
शास्त्रों ऋषि मुनियों के
माथे मड़ोगे !!
तुम्हारी समस्याएं लौकिक हैं
मगर तुम्हें हर समस्या का हल परलोक में नजर आता है !
संसार तुम्हारे लिए स्वप्नवत् है
माया है !
भगवान की लीला है
नाटक है ! भ्रम है !
आखिर तुम्हें इस सपने से कौन जगाए ?
जो जगाए वही
धर्मद्रोही देशद्रोही
जातिवादी या नास्तिक है ?
चारुवाक बुद्ध महावीर
कपिल कणाद गौतम
नागसेन अश्वघोष
कबीर नानक रविदास
ओशो फुले शाहू पेरियार
भीम भगतसिंह
विवेकानंद सबने विवेक लगाया !
मगर फिर भी तुम्हारा
विवेक नहीं जागा !
क्योंकि तुम विश्वगुरु के
अहंकार की
दारू पीकर
गरीबी अनपढ़ता लिंगभेद जातिभेद भाषाभेद क्षेत्रभेद साम्प्रदायिकता
की नाली में पड़े हो !
आखिर तुम्हें कब मिलेगी
आजादी ?
मानसिक गुलामी से ????