विकास शर्मा

सैटेलाइट और धरती पर किए गए अवलोकनों के आधार पर इसरो के एक अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हमारा हिमालय गर्म हो रहा है और हालात नाजुक होते जा रहे हैं जो चिंताजनक बात है. वायुमंडल में, खास तौर से हिमालय के हिंदुकुश हिमालय तिब्बती पठार इलाके में हवा में तैरते कण और तरल बूंदें ना केवल हिमालय को गर्म कर रही हैं बल्कि इलाकी जलवायु तक को प्रभावित कर रही हैं.

हिमालय पर्वत शृंखला दुनिया की सबसे विशाल पर्वत शृंखला है. इसके ग्लेशियर से निकली नदियों से करीब दनिया के 2 अरब लोगों की पानी की जरूरतें प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से पूरी होती हैं. यह अफगानिस्तान से लेकर म्यांमार तक फैला जिसमें भारत, पाकिस्तान, नेपाल, भूटान, चीन और बांग्लादेश भी शमिल हैं.  ध्रुवीय क्षेत्रों के बाद यह दुनिया का सबसे बड़ा साफ पानी की भंडार है. लेकिन अब जलवायु परिवर्तन की वजह से हमारा हिमालय गर्म हो रहा है. इसरो के वैज्ञानिकों की अगुआई में हुए अध्ययन में खुलासा हुआ है कि हालात बहुत नाजुक हो रही है और इसके लिए जलवायु परिवर्तन के कारण बढ़ती पानी की महीन बूंदें जिम्मेदार हैं.

किसने किया शोध
इसरो के अहमदाबाद स्थित फिजिकल रिसर्च लैबोरेटरी (पीआरएल) और रिसर्च इंस्टीट्यूट फॉर सस्टेनेबलिटी के अध्ययन में पाया गया है कि हिंदुकुश हिमालय तिब्बती पठार में एरोसोल इलाके को गर्म करने का काम कर रहे  हैं और यहां जलवायु परिवर्तन के प्रमुख कारक के तौर पर उभरे हैं.

एरोसॉल की बड़ी भूमिका
रिपोर्ट में बताया गया है कि अकेले एरोसॉल ही निचले वायुमंडल को गर्म करने के लिए 50 फीसदी जिम्मेदार है जबकि बाकी भूमिका ग्रीन हाउस गैसों की है. साफ तौर पर पाया गया है कि एरोसॉल से ना केवल इलाका गर्म हो रहा है, बल्कि वह जलवायु परिवर्तन का प्रमुख बनने के साथ ही ग्लेशियरों के पिघलने की दर को बढ़ाने के साथ ही बारिश के स्वरूपों में भी बदलाव ला रहा है.

एशिया की जनसंख्या होगी प्रभावित
इससे एशिया की करीब 2 अरब की वजह जनसंख्या सीधे तौर पर प्रभावित होगी जो पीने के पानी के साथ ही, सिंचाई और ऊर्जा के लिए भी हिमालय पर निर्भर है. खतरा तो पहले के कई शोधकार्य जता चुके हैं, लेकिन यह रिपोर्ट बताती है कि हालात कितने खराब हो चुके हैं.  इससे पिछले कुछ सालों से एशिया का मानसून तंत्र प्रभावित होने शुरू भी हो चुका है.

कैसे किया अध्ययन
शोधकर्ताओं ने अपने अध्ययन के लिए जमीनी स्तर पर किए अवलोकनों के साथ सैटेलाइट के आंकड़ों और मॉडल सिम्यूलेशन की भी मदद ली जिससे पता चला कि हिमालय के तराई के इलाकों और गंगा के मैदान के ऊपर एरोसॉल की मात्रा अधिक पाई गई है, लेकिन ऊंचाई पर जाने से प्रदषकों का स्तर और बढ़ता जा रहा है.

नतीजे चिंताजनक
पहली बार हुए इस तरह क अध्ययन में वैज्ञानिकों ने पाया है कि ऐरोसोल रेडिएटिव फोर्सिंग कारगरता दक्षिण और पूर्वी एशिया के तुलना में 2-4 गुना अधिक है. अध्ययन की पड़ताल के नतीजे हाल ही में द साइंस ऑफ टोटल एनवायर्नमेंट जर्नल में प्रकाशित हुए हैं. अध्ययन में पाया गया है कि अवलोकित वार्षिक औसत एरोसॉल जनित वायुममंडलीय ऊष्मन पहले की तुलना में अधिक पाया गया है.

बढ़ने लगेंगी बाढ़, भूस्खलन जैसी आपदाएं
हिमालय के ऊपर तापमान बढ़ने का सीधे तौर पर ग्लेशियरों को अस्थिर करने का काम करेगा जो पहले से ही हिमालय के रिहायशी इलाकों के पास तबाही का खतरा बन चुके हैं और अपने साथ भूस्खलन जैसी खतरनाक घटना ला दते हैं. इसमें ग्लेशियरों के तेजी से पिघलने से असमय आने वाली की बाढ़ एक सहायक कारक बन जाती है.

लेकिन खतरा यहीं तक रुका नहीं है. एरोसॉल के कारण 2 हजार किलोमीटर लंबी हिमालय पर्वत शृखला में लगातार बर्फ का नुकसान हो रहा है और तेजी से ग्लेशियर पिघलने का एक प्रभाव यहां के जलचक्र तक को प्रभावित करेगा जिससे बारिश के पैटर्न में बदलाव होगा औरमानसूनतो प्रभावित होगा ही हिमालय पर होने वाली असमय बारिश और बर्फबारी बढ़ेगी जिसका भारत पर गहरा असर होगा.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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