विनीत कुमार

50 साल पहले नासा के अपोलो अभियान से पृथ्वी पर लाए गए चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों के नए अध्ययन ने चौंकाने वाले नतीजे मिले हैं. एटम प्रोब टोमोग्राफी नाम की इस तकनीक में लेजर के जरिए परमाणुओं को क्रिस्टल से वाष्पीकृत कर ऐसे संकेत मिले हैं जो बताते हैं कि जितना समझा जा रहा था, चंद्रमा की उम्र 4 करोड़ साल ज्यादा पुरानी है.

1970 के दशक में अमेरिकी स्पेस एजेंसी नासा के अपोलो अभियान से चंद्रमा की चट्टानों के नमूनों पृथ्वी पर लाए गए थे. इनका कई बार विश्लेषण हो चुका है. लेकिन इस बार एक नए विश्लेषण में कुछ नई जानकारियां हासिल की हैं जिन्हें खुद वैज्ञानिकों तक को चौंकाने का काम किया है. जिस क्रिस्टल का इस बार अध्ययन किया गया है वह चंद्रमा के सबसे पुराने क्रिस्टल में से एक माना जाता है. इससे पहले की तकनीक के जरिए चंद्रमा की उम्र 4.42 अरब साल की आंकी गई थी, जब नए आंकलन के अनुसार चंद्रमा वर्तमान उम्र से 4 करोड़ साल ज्यादा पुराना पाया जा रहा है.

कितनी पाई गई है उम्र
नए विश्लेषण ने वैज्ञानिकों ने पिछले आंकलन में सुधार करते हुए खुलासा किया है कि यह उम्र करीब 4.46 पाई गई है. फील्ड म्यूजियम और ग्लासगो यूनिवर्सिटी के शोधकर्ताओं का यह अध्ययन जियोकैमिकल पर्स्पेक्टिव लैटर्स जर्नल में प्रकाशित हुआ है. ग्लासगो विश्वविद्यालय शोधकर्ता और अध्ययन के प्रमुख लेखक डॉ जेनिका ग्रीर ने इस नमूने की खासियत के बारे में बताया.

इतिहास और विकास की जानकारी
डॉ ग्रीर ने बताया कि यह अब तक का पाया गया चंद्रमा का सबसे पुरानी चट्टान का नमूना है. इससे पृथ्वी के बारे में भी कई जानकारियां मिल सकती हैं. चंद्रमा की उम्र का ज्यादा सटीक अनुमान उसके इतिहास की ज्यादा बेहतर जानकारी दे सकता है. वैज्ञानिकों का साफ मानना है कि सटीक उम्र चंद्रमा के साथ चंद्रमा के साथ पृथ्वी के भी इतिहास और विकास की जानकारी देगा.

एक बिलकुल ही नई तकनीक
इस अध्ययन में एटम प्रोब टोमोग्राफी नाम की नई तकनीक का उपयोग किया गया था. इसमें लेजर के जरिए  क्रिस्टल के परमाणुओं को वाष्पीकृत किया जाता है और फिर परमाणु विशेष का अध्ययन कर पता लगाया जाता है कि क्रिस्टल में से कितने अणुओं का रेडियोधर्मी विखंडन हुआ था.

एक बड़ी तस्वीर का हिस्सा
अध्ययन के सहलेखक और शिकागो यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर फिलिप हेक का कहना है कि बिना चंद्रमा के पृथ्वी बहुत ही अलग दिखाई देगी. चंद्रमा हमारे प्राकृतिक तंत्र का हिस्सा है जिसे वे समझना चाहते हैं और यह अध्ययन पूरी तस्वीर का एक छोटा सा हिस्सा दिखा रहा है.

पृथ्वी के निर्माण की धारणा
अभी प्रचलित मान्यता यह है कि पृथ्वी से एक समय विशालकाय पिंड टकाराया था. मंगल के आकार के इस पिंड के टकाराव के बाद यह ग्रह बिखर गया था और पृथ्वी का भी बहुत सारा पदार्थ अंतरिक्ष में पहुंच गया था जो धीरे धीरे गुरुत्व से बंध कर एक पिंड में बदल गया था. इसी को आज हम चंद्रमा के नाम से जानते हैं.

कई सवालों के जवाब
लेकिन इस सिद्धांत के कई सवालों के जवाब भी अभी तक वैज्ञानिकों के नहीं मिले हैं. यह टकराव कब हुआ था, चंद्रमा के निर्माण में कितना समय लगा था, इस तरह के कई सवालों के जवाब नहीं मिले हैं. इसके लिए चंद्रमा की सटीक उम्र की जानकारी का बहुत अधिक महत्व है.

अपने नतीजों पर पहुंचने के लिए वैज्ञानिकों ने एक खनिज जिरकॉन का अध्ययन किया जो अपोलो अभियान के नमूनों में मौजूद था. माना जाता है कि यह पदार्थ तब बना था जब टकराव से पिघलने के बाद सतह ठोस हुई थी. चंद्रमा के निर्माण के बाद जिरकॉन ही सबसे पहले ठोस हुए थे. और यही वजह है कि वैज्ञानिक जिरकॉन के जरिए चंद्रमा के इतिहास के कालक्रम की जानकारी हासिल करना चाहते हैं.

     (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ से साभार )
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