विकास शर्मा

वैज्ञानिकों ने ऐसी रासायनिक प्रक्रिया का पता लगाया है जिसका पाककला के साथ ही पृथ्वी के जीवन की शुरुआत दोनों में महत्व है. मिलार्ड रिएक्शन का उपयोग शेफ या रसोइये भोजन को भूरा कर उसमें महक और स्वाद लाने के लिए करते हैं, लेकिन यह गहरे महासागरों में छोटे अणुओं से पॉलीमर जैसे बड़े पदार्थ बनाती है. इसकी जीवन के शुरुआती चरण में बहुत उपयोग हुआ था.

वैज्ञानिकों ने पाया है कि पाकशास्त्र में उपयोग में लाई जाने वाली एक रासायनिक क्रिया का संबंध  पृथ्वी पर जीवन की उत्पत्ति की प्रक्रियाओं से है. खाने को भूरा करने वाला और उनमे खास तरह की महक और स्वाद पैदा करने करने के लिए जिम्मेदार इस प्रक्रिया को पाककला कि दुनिया में ‘मिलार्ड रिएक्शन’ के नाम से जाना जाता है. शोधकर्ताओं का कहना है कि यह मिलार्ड रिएक्शन पृथ्वी के महासागरों की गहराई में भी देखने को मिलती है और उनका यहां तक कहना है कि इन प्रतिक्रियाओं ने जैविक कार्बन के संरक्षण में अहम भूमिका निभाई होगी जिससे पृथ्वी पर शुरुआती जीवन के पैदा होने और पनपने के लिए अनुकूल हालात बने होंगे.

छोटे से बड़े अणुओं में रूपांतरण
इसकी खोज करने वाले फ्रेंच वैज्ञानिक के नाम वाली मिलार्ड प्रतिक्रिया जैविक कार्बन के छोटे अणुओं को बड़े अणुओं या पॉलीमर में रूपांतरित करने का काम करती है. इस प्रक्रिया के जरिए शेफ शक्करों से कई तरह के फ्लेवर बनाते हैं. लीड्स विश्वविद्यालय की प्रोफेसर कैरोलीन पिकॉक और उनकी  टीम का कहना है कि मिलार्ड रिएक्शन महासागरों के तल में ऑक्सीजन के स्तर बढ़ाने और वायुमंडल में कार्बनडाइऑक्साइड कम करने में उपयोगी होती है.

गहरे महासागरों में यही प्रक्रिया
महासागरों में जैविक कार्बन सूक्ष्मजीवों के जरिए पहुंचता है. मरने पर ये जीव  समुद्र तल तक पहुंचते हैं जिन्हें बैक्टीरिया ऑक्सीजन का उपयोग विखंडित करते हैं जिससे महासागर में कार्बन डाइऑक्साइड निकलती है जो अंततः वायुमंडल में पहुंच जाती है. मिलार्ड प्रतिक्रिया इन छोटे अणुओं को बड़े अणुओं में बना देती हैं ये पदार्थ हजारों से लाखों सालों तक अवसाद के रूप में जमा रहते हैं.

जलवायु में अहम भूमिका
इस “जैविक कार्बन संरक्षण” प्रक्रिया का पृथ्वी की सतह पर गहरा असर होता है. इस तरह से कार्बन जमा होने से कार्बनडाइऑक्साइड कम  निकलता है  और नतीजन पृथ्वी के वायुमंडल में ऑक्सीजन ज्यादा पहुंचती है. पिछले 40 करोड़ सालों से यही प्रक्रिया पृथ्वी की सतह की औसत गर्माहट को 5 डिग्री सेल्सियस तक कायम रखे हुए है. अध्ययन के प्रमुख लेकक डॉ ओलिवर मूर ने बताया कि पहले माना जा रहा था कि यह प्रक्रिया काफी धीमी है.

भारी मात्रा में जैविक कार्बन
डॉ मूर ने बताया कि उनके प्रयोगों ने दर्शाया कि समुद्री पाने लोहे और मैग्नीज जैसे तत्व की उपस्थिति से प्रतिक्रिया की दर बीसियों गुना बढ़ जाती है. पृथ्वी के लंबे इतिहास में इससे यहां जटिल जीवन कायम रखने में मदद मिलती रही है. अपने प्रतिमान के जरिए शोधर्ताओं ने पता लगा कि हर साल मिलार्ड प्रतिक्रिया से करीब 40 लाख टन जैविक कार्बन समुद्र तल में जमा हो रहा है.

कैसे लगाया पता
शोधर्ताओं ने प्रयोगशाल में बहुत से प्रयोग किए जिनमें उन्होंने  लोहे और मैग्नीज के बहुत से प्रारूपों के साथ को 10 डिग्री सेल्सियस पर जैविक पदार्थों को मिलाया और ऐसे हालात बनाए जो उस समय समुद्र तल की स्थितियां थी जब पृथ्वी पर पहली बार जीवन पनपा था. विश्लेषण में पाया गया कि नमूनों में मिलार्ड प्रतिक्रिया के बाद के “केमिकल फिंगरप्रिंट” बहुत से समुद्र तल से हासिल किए गए अवसादों के नमूनों से मेल खा रहे थे.

बहुत अहम नतीजे हैं इस अध्ययन के
इस अध्ययन से यह साबित हो सका कि मिलार्ड प्रतिक्रिया की पुरातन शुरुआती जीवन में भूमिका थी और साथ ही  जटिल जीवन के निर्माण के साथ जलवायु की प्रक्रियाओं की भी बेहतर रासायनिक समझ बन सकी. लोहे और मैग्नीज जैसे खनिजों की वजह से जीवन के लिए आवश्यक स्थिर अवस्थाओं का निर्माण हो सका. पृथ्वी की भूरासायनिक प्रक्रियाओं की यह बेहतर समझ जलवायु परिवर्तन की समस्या सुलझाने में भी मददगार हो सकती है.

अध्ययन के एक लेखक और क्वीन मैरी यूनिवर्सिटी के पर्यावरण वैज्ञानिक जेम्स ब्रैडले का कहना है कि महासागरों के तल पर जमे जैविक कार्बन को प्रभावित करने वाली जटिल प्रक्रियाएं को जानना यह समझने लिए जरूरी है कि प्राकृतिक और मानव क्रियाओं की प्रतिक्रिया में पृथ्वी की जलवायु कैसे बदलती है. इससे जलवायु परिवर्तन को भी बेहतर समझा जा सकेगा और ये कार्बन डाइऑक्साड के वितरण और उसके नियंत्रण के उपायों के लिए  उपयोगी होंगी क्योंकि इन पर कार्बन सहेजने की तकनीकें निर्भर होती हैं.

    (‘न्यूज़ 18 हिंदी’ के साभार )

Spread the information