डॉ संध्या

अपनी आदिवासी बहुल आबादी के कारण झारखंड को संविधान की पांचवीं अनुसूची में शामिल किया गया है। अभी भारत आजादी की 75 वीं वर्षगांठ मना रहा है। पर देश के आदिवासी समुदाय की स्थिति अब भी सामाजिक एवं आर्थिक स्तर पर बद से बद्तर बनी हुई है। झारखंड भी इसमें अपवाद नहीं है। यहां शिक्षा, स्वास्थ्य एवं अंधविश्वास का सवाल अब भी एक बेहद महत्वपूर्ण एवं चिंतनीय मुद्दा है।

दरअसल साक्षरता किसी स्थान की जनता की उन्नति और वहां की सुसंगत व्यवस्था की आधारभूत मापक होती है| भारत के नव-निर्मित राज्य, 15 नवंबर 2000 को गठित, झारखण्ड की पहचान यहाँ की आदिवासी जनसँख्या है| आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति शैक्षिक रूप से पिछड़ी जनसंख्या है जिसमें महिला और बालिका साक्षरता दर की स्थिति बहुत निम्न है | किसी भी समाज या समुदाय में महिलाओं की स्थिति उस समाज या समुदाय के वास्तविक विकास की कहानी कहती है|

आबादी का अनुपात और शिक्षा दर
झारखण्ड राज्य मे 32 समुदाय की अनुसूचित जनजातियां निवास करती हैं, जिनकी जीवनशैली थोड़ी भिन्नता के साथ लगभग एक जैसी है| राज्य की कुल जनसंख्या का 26.20% हिस्सा आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति की है| झारखण्ड की अनुसूचित जनजाति में महिलाओ की भागीदारी 50.08% है और लिंगानुपात प्रति 1000 पुरुष पर 1003 महिलाएं हैं, जबकि देश की अनुसूचित जनजातियों का लिंगानुपात 989 है| झारखंड की अनुसूचित जनजातियों में उच्च स्तर के लिंगानुपात होने के बावजूद यहाँ इस समुदाय में महिला साक्षरता दर अत्यंत निम्न है जो इस समुदाय के विकास का सर्वाधिक बड़ा कारक है| ड्रेज और सेन (1995) ने शिक्षा और स्वास्थ्य के माध्यम से मिलने वाले स्वतंत्रता के पांच रास्ते बताये हैं – आतंरिक महत्व, कारगर वैयक्तिक भूमिकाएं, कारगर सामाजिक भूमिकाएं, कारगर प्रक्रियाएं, सशक्तिकरण और विभिन्न भूमिकाओं का निर्वहन | अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या साक्षरता दर अपने राज्य झारखण्ड की औसत साक्षरता दर से काफ़ी कम है| इसका अर्थ है शिक्षा और विकास की मुख्यधारा से झारखंड के आदिवासी अभी बहुत पीछे छूटे हुए हैं |

Census of India 2011
2011 के आंकड़ों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो झारखंड की सामान्य महिलाओं की 55.4% आबादी साक्षर है, जबकि अनुसूचित जनजाति की महिलाओं की 46.2% जनसंख्या ही साक्षर है | यह फासला लगभग 10% का है जबकि राज्य में सामान्य पुरुष की साक्षरता दर (76.1%), से जबकि अनुसूचित जनजाति की पुरुषों की साक्षरता दर (68.1%) का फासला मात्र 8% का है| अर्थात अनुसूचित जनजाति की महिलाओं की साक्षरता की स्थिति पुरुषों के मुकाबले पिछ्ड़ी है| झारखण्ड की अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता एवं साक्षरता लिंग-भेद देश की तुलना मे लगभग 2% पीछे है| यह स्थिति अधिक चिंताजनक इसलिए है क्योंकि भारत में कुल जनसँख्या का मात्र 8% जनसँख्या अनुसूचित जनजाति है जबकि झारखण्ड मे यह अनुपात 26.2% है|

झारखंड की ग्रामीण एवं नगरीय सामान्य और अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों ही स्थानों पर अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता दर निम्न है| सामान्य और अनुसूचित जनजाति की ग्रामीण महिलाओं की साक्षरता-दर का फासला कम है जबकि नगरीय क्षेत्रों मे फासला अधिक है| भारत एवं झारखंड की सामान्य और अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता के लिंग-भेद का तुलनात्मक अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि दोनों ही स्थानों पर अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता दर लगभग देश में 20% कम है तथा झारखण्ड में 10% कम है किन्तु साक्षरता लिंग-भेद में झारखण्ड देश से काफी आगे है| भारत और झारखण्ड की अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता एवं साक्षरता लिंग-भेद का तुलनात्मक अध्ययन, 2011 करने पर यह तथ्य सामने आते हैं।

लिंग भेद का प्रभाव
झारखंड की ग्रामीण एवं नगरीय सामान्य और अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता के तुलनात्मक अध्ययन में लिंग-भेद का अध्ययन करने पर यह स्पष्ट होता है कि नगरों मे अनुसूचित जनजाति महिलाओं की साक्षरता दर में लिंग-भेद अपेक्षाकृत कम है जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में अधिक है| इस प्रकार यह स्पष्ट है कि गांवों की अधिकांश अनुसूचित जनजाति महिलाएं निरक्षर हैं| ध्यातव्य है कि झारखण्ड की अनुसूचित जनजाति की 91% जनसंख्या ग्रामीण है|झारखंड सामान्य एवं अनुसूचित जनजाति की ग्रामीण एवं नगरीय महिलाओं की साक्षरता लिंग-भेद: तुलनात्मक अध्ययन 2011 भी आवश्यक है। 2011 में भी झारखंड की अनुसूचित जनजाति की कुल साक्षरता देश के अनुसूचित जनजाति की साक्षरता दर से लगभग लगभग 3% पीछे है|

अनुसूचित जनजाति पुरुष साक्षरता दर बराबर है, जबकि महिलाओं की साक्षरता दर पीछे है। | फिर भी झारखंड ने काफी कम समय में यह विकास (10 वर्षों के अंदर) 46.2% विकास किया, जो राष्ट्रीय अनुसूचित जनजाति महिला साक्षरता दर 49.4% से मात्र 3% पीछे हैं | इन आंकड़ों से स्पष्ट है कि महिलाओं के शैक्षिक पिछड़ेपन के कारण झारखंड की अनुसूचित जनजाति का विकास देश की अनुसूचित जनजाति से पीछे है | कम से कम देश की बराबरी करने के लिए राज्य सरकार को जमीनी प्रयास करने की आवश्यकता है | गैर-सरकारी और स्थानीय दोनों प्रकार के प्रयास भी आवश्यक है|कॉफी अन्नान के अनुसार “साक्षरता कष्ट और आशा के बीच का एक सेतु है। ” इस कथन के आलोक मे झारखण्ड में अनुसूचित जनजाति महिला साक्षरता दर को शत-प्रतिशत करने का प्रयास करना आवश्यक है|

साक्षरता दर निम्न होने के कारण

साक्षरता दर निम्न होने के निम्न लिखित कारण हैं-

  1. सामाजिक – जातिव्यवस्था, खेती या व्यापार के मौसम मे काम, घर के काम सँभालने की मजबूरी, कम उम्र में विवाह, बालिकाओं की असुरक्षा, लड़का-लड़की में भेदभाव करना, इत्यादि
  2. आर्थिक – गरीबी, बाल मजदूरी , लडकियों में अधिक खर्च, कपड़े और यूनिफार्म का अभाव, कपड़े और यूनिफार्म का अभाव
  3. भौगोलिक – घर से विद्यालय की दूरी, नदियों और पर्वतों आदि स्थलाकृतिक की बाधाएँ इत्यादि |
  4. राजनैतिक – राजनैतिक इच्छाशक्ति की कमी, आर्थिक आबंटन मे देर, निर्णय लेने में देरी, बालिकाओ और महिलाओं की सुविधा और सुरक्षा का पुख्ता इंतजाम नहीं |
  5. प्राकृतिक – प्राकृतिक आपदा, बाढ़, सूखा भूकंप इत्यादि |
  6. भाषा की समस्या – झारखण्ड के अनुसूचित जनजाति विभिन्न समुदायों की अपनी अलग-अलग भाषाएँ हैं | ये लोग हिंदी, अंग्रेजी या अन्य भाषाएँ ना बोल और समझ नहीं पाते | यह इनकी साक्षरता का
  7. बाधक कारक है |

विश्व बैंक के एक डॉक्यूमेंट में यह मानव संसाधन विकास एवं कार्य नीति (Human Resources Development and Operations Policy), कार्य-पेपर्स (working papers) में शोधकर्ता कोवासर पी चौधरी ने निम्न साक्षरता के कारणों को दो प्रकारों में बांटा है-
विद्यालय के भीतर के कारक
विद्यालय के बाहर के कारक

निवारण के उपाय

  • जागृति फ़ैलाना ज़रूरी है | निरंतर जागरूकता कार्यक्रम हो |
  • वैकल्पिक व्यवस्था द्वारा साक्षरता योग्य लोगों का प्रवास रोका जाय|
  • गरीब घर के बच्चों और निरक्षर वयस्कों के सुविधाजनक समय पर साक्षरता केन्द्रों को चलाया जाय |
  • प्रभावशाली प्रेरक वातावरण का निर्माण हो तथा प्रेरणा का संचार हो|
  • गरीबी को दूर करना |
  • मनोबल और आत्मविश्वास को जागृत करना |
  • स्वयंसेवी संस्थाओं द्वारा सहारा देना |
  • साक्षरता को कौशल विकास प्रशिक्षण से जोड़ा जाय |
  • व्ययस्क साक्षरता का विशेष प्रबंध और प्रावधान |
  • बालिकाओं के लिए निःशुल्क साक्षरता और उनकी समस्या के अनुरूप विशेष व्यवस्था |
  • गरीबी रेखा से नीचे के परिवारों को कल्याण विभाग से आर्थिक मदद हो | अवसर लागत दिया जाय|
  • महिलाओं को साक्षरता का अवसर लागत दिया जाय |
  • शिशुओं को सँभालने का इंतजाम हो
  • ताकि निरक्षर मांएं आराम से साक्षरता प्राप्त कर सकें | साक्षरता को उच्च शिक्षा और रोजगार की ओर अग्रसर किया जाय |
  • मिड डे मिल की समुचित व्यवस्था हो।
  • शिक्षक योग्य और प्रशिक्षित हों और स्थानीय भाषा के जानकर हों|
  • पाठ्य-पुस्तक, माध्यम और लिखने के स्तर पर भाषा की समस्या को सुलझाया जाय |
  • सूचना और संचार माध्यमों का पर्याप्त उपयोग किया जाय |
  • साक्षरता के लिए नुक्कड़ नाटक, जागृति गीत आदि नामांकन अभियान के लिए हो | साक्षरता से सफलता तक की कहानियां ज़रूर कही जाएँ ताकि प्रेरणा हो |
  • प्रिंट और इलेक्ट्रॉनिक मीडिया का प्रभावशाली रूप मे उपयोग किया जाय|
  • महिला मंडल और बालिका समूह और बाल मंडल बनाया जाय औए उसके द्वारा प्रयास किया जाय
  • महिला शिक्षिका को बहाल किया जाय |
  • बालिकाओं के लिए उपयुक्त शौचालय और बैठने खेलने का प्रबंध हो |
  • प्रत्येक निजी विद्यालय में साक्षरता केंद्र चलाने की बाध्यता की जाय।
  • साक्षरता को शिक्षा, स्वास्थ्य, रोज़गार, सामाजिक अन्धविश्वास और कुरीतियों से संबंधित करके ही चलाया जाय।
  • खेल विधि, आनंददायी वातावरण में साक्षरता दी जाय ताकि बच्चो़ और वयस्कों की रूचि भी बनी रहे।
  • साक्षरता के साथ तकनीकक्षरता तक का प्रावधान हो ताकि साक्षरता नए युग की आवश्यकता के अनुरूप आधुनिक और उपयोगी हो सके।
  • सरकारी प्रयास – राज्य सरकार द्वारा स्कूल चलो अभियान 2006 (UNICEF) केंद्र सरकार के जनजातीय कल्याण विभाग द्वारा शिक्षा के अनेक कार्यक्रम हैं, लेकिन ये साक्षरता से कम जुड़े हैं| सुदूर ग्राम और घने जंगलों के ग्रामीण क्षेत्रो के सर्वे के आधार पर यह देखा गया कि यहाँ बिजली, पानी और साक्षरता की कोई पहुंच नहीं है।

इस तरह विद्यालय के भीतर और विद्यालय के बाहर के ऐसे कारण है जो अनुसूचित जनजाति की जनसंख्या को साक्षरता प्राप्त करने से रोकते हैं| इसके कुछ बहुत ही घातक परिणाम सामने आते हैं, जिनमें इनकी सूचनाओं और अवधारणाओं को समझने और ग्रहण करने की क्षमता में कमी, उच्च शिक्षा में अग्रसर होने में बाधा, बेरोजगारी, कौशल नहीं जाने की मजबूरी, अवसर की कमी, प्रति व्यक्ति आय का कम होना, गरीबी का बरकरार रहना, कानून और न्याय की जानकारी कम होना, मानव संसाधन का सीमित उपयोग होना, आत्मविश्वास की कमी, स्वास्थ्य सुरक्षा और स्वच्छता की कुशलता का अभाव और केंद्र सरकार तथा राज्य सरकार द्वारा प्रदत्त अनेक विशिष्ट सुविधाओं और प्रावधानों का लाभ न उठा पाने की मजबूरी होना है| इस प्रकार साक्षरता के अभाव में लगभग 49% अनुसूचित जनजाति अपने समान एक साक्षर व्यक्ति की प्रयुक्त क्षमता की तुलमा में 30 से 42% कम क्षमता का ही प्रयोग कर पाते हैं|

अतः आवश्यक है कि झारखण्ड के आदिवासी यानी अनुसूचित जनजाति की सम्पूर्ण साक्षरता के लिए उपाय किए जाएं और उन पर तत्परता से अमल किया जाए। राज्य ने 2020 तक सम्पूर्ण साक्षरता का लक्ष्य रखा था जो आज भी एक सवाल बन कर हमारे समक्ष खड़ा है। सचमुच इस दिशा में पहल किए बिना आदिवासी समुदाय को कथित विकास की मुख्यधारा में लाना मुश्किल ही नहीं, नामुमकिन होगा। स्वभावत : इससे प्रचुर प्राकृतिक संपदा एवं देश का महत्वपूर्ण माइनिंग एवं उद्योग केन्द्र झारखंड का विकास भी प्रभावित होगा। जिसका प्रभाव प्रकारान्तर से पूरे देश पर पड़ेगा।

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