यह आजादी का 75 वां वर्ष है, जिसे देश भर में आजादी का अमृत महोत्सव के रूप में मनाया जा रहा है। ऐसे में बेहद महत्वपूर्ण है उन नायकों को याद करना, जिन्होंने आजादी की लड़ाई में तथा स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद समाज को जोड़ने एवं बदलने या कहें कि राष्ट्र निर्माण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई हो। उनमें से राहुल सांकृत्यायन भी एक हैं। दरअसल राहुल सांकृत्यायन गहन अंधेरे में जलती मशाल की तरह थे तथा संकीर्णता, मानसिक जड़ता, रूढ़िवादी परम्पराओं, मूढ़ मान्यताओं, कुरीति व पाखंड से मुक्त कर, एक अंधश्रद्धा – अंधविश्वास मुक्त, तर्कशील, समतामूलक, सभी प्रकार के शोषण उत्पीड़न से मुक्त, विज्ञान परक, संविधान सम्मत, आधुनिक भारत का निर्माण करना चाहते थे। वे हिंदी के एक प्रमुख साहित्यकार, प्रतिष्ठित बहुभाषाविद , मार्क्सवादी चिंतक, बौद्ध दर्शन के प्रकांड विद्वान थे, जिन्होंने 20 वी सदी के पूर्वार्द्ध में यात्रा वृत्तांत /यात्रा साहित्य तथा विश्व दर्शन के क्षेत्र में बेहद महत्वपूर्ण योगदान दिया था। हिन्दी यात्रा साहित्य के पितामह माने जाने वाले राहुल सांकृत्यायन के बौद्ध धर्म पर शोध को युगांतरकारी माना जाता है। सदैव आम आदमी के बीच एवं जनसंघर्षों से जुड़े रहने वाले राहुल सांकृत्यायन के सपनों के भारत का निर्माण अब भी बाकी है। बेहतर समाज, देश – दुनिया के निर्माण के लिए उनके सपनों को मंजिल तक पहुंचाए जाने की जरूरत है, जो प्रतिगामी सोच वाले मौजूदा परिदृश्य में पूर्व की अपेक्षा कहीं और भी दुष्कर है।
महापंडित राहुल सांकृत्यायन को हिंदी यात्रा साहित्य का जनक कहा जाता है क्यूंकि उन्होंने यात्रा विवरण संबंधित ‘साहित्य कला’ का विकास किया था और उन्होंने भारत के अधिकतर भूभाग की यात्रा भी की थी, उन्होंने अपनी ज़िन्दगी के 45 साल अपने घर से दूर रहकर यात्रा करने में ही बिताये. उन्होंने काफी प्रसिद्ध जगहों की यात्रा की और अपना यात्रा विवरण भी लिखा. राहुल सांकृत्यायन का जन्म केदारनाथ राय नाम से 9 अप्रैल 1893 को ब्राह्मण परिवार में उत्तर प्रदेश के भूमिहार जाति में हुआ था. स्थानिक प्राइमरी स्कूल से ही उन्होंने प्रारंभिक शिक्षा ग्रहण की और बाद में उन्होंने बहुत सी भाषाओं का भी ज्ञान अर्जित किया और इसके साथ ही उन्होंने फोटोग्राफी का भी काफ़ी ज्ञान अर्जित किया. यात्रा के दौरान होने वाले अनुभव को विस्तृत रूप से बताने वाले वे एक महान लेखक थे ,बहुत ही आकर्षक तरीके से वे अपनी यात्रा का अनुभव बताते, इसी के चलते उन्होंने “मेरी लद्दाख यात्रा” में सभी धार्मिक, एतिहासिक और पारंपरिक जगहों और रिवाजों का विस्तृत विश्लेषण किया था. बाद में वे एक बुद्ध भिक्खु भी बने और मार्क्सिस्ट समुदाय को अपना लिया. सांकृत्यायन एक भारतीय नागरिक थे लेकिन ब्रिटिश के विरुद्ध एंटी-ब्रिटिश लेख लिखने की वजह से उन्हें तीन साल जेल भी जाना पड़ा था. उनके महानतम कार्यो के लिये उन्हें महापंडित कहा जाता था. वे बहुभाषी और बहुशास्त्री दोनों ही थे.1963 में उनके कार्यो को देखते हुए भारत सरकार ने उन्हें पद्म भूषण से सम्मानित किया था.
राहुल सांकृत्यायन की किताबें
सांकृत्यायन बहुभाषी होने के कारण बहुत सी भाषाओं में किताबें लिखा करते थे जिनमे मुख्य रूप से हिंदी, संस्कृत, पाली, भोजपुरी, उर्दू, पर्शियन, अरेबिक, तमिल, कन्नड़, तिब्बतन, सिंहलेसे, फ्रेंच और रशियन शामिल है. वे एक इंडोलॉजिस्ट, मार्क्सिस्ट और रचनात्मक लेखक भी थे. 20 साल की उम्र में उन्होंने लेखन के क्षेत्र में अपने काम की शुरुआत की और 100 से भी ज्यादा विषयों पर लेखन किया लेकिन उनमे से कई विषयों को प्रकाशित नही किया गया था. बाद में उन्होंने मज्झीम निकाय का प्राकृत में से हिंदी अनुवाद किया. हिन्दी में उनकी एक प्रसिद्ध किताब वोल्गा से गंगा (वोल्गा से गंगा तक की यात्रा) है- जिसमें इन्होंने एतिहासिक तथ्य को ध्यान में रखते हुए वोल्गा नदी और गंगा नदी तक के इतिहास का वर्णन किया है. उनकी यह किताब 6000 BC में शुरू हुई और 1942 में खत्म हुई, यह वह समय था जब महात्मा गांधी भारत छोडो आंदोलन के भारतीय राष्ट्रिय नेता थे.
इस किताब को के.एन. मुथैया तमिलपुथकलायं ने तमिल में अनुवादित किया और आज भी उनकी यह किताब सर्वाधिक बिकने वाली किताबो में शामिल है. तेलगु अनुवाद ने काफी तेलगु लोगो को प्रभावित भी किया था. और देश के हर कोने में उनकी किताब प्रसिद्ध हो चुकी थी. आज भी इस किताब के बंगाली अनुवाद की लोग प्रशंसा करते हैं . 1963 में महापंडित को पद्म भूषण से सम्मानित किया गया था और 1958 में उन्हें अपनी किताब मध्य एशिया का इतिहास के लिये पद्म भूषण भी मिला था.
संस्कृत में वे दैनिक डैरी भी लिखते थे जो अपनी जीवनी को लिखते समय उनके लिये काफी सहायक रही. हिंदी के महालेखक होने के बाद में कठिन शब्दों का उपयोग करने की जगह वे ऐसे शब्दों का प्रयोग करते थें जिन्हें छोटा बच्चा भी आसानी से समझ जाता था. वे पूरी रूचि के साथ अपनी किताबों को लिखते थे. उन्हें हिंदी साहित्य को काफी पहचान थी. राहुल का चरित्र काफी आकर्षक और महान था, और साथ ही उनकी उपलब्धियों ने उन्हें सफलता के सातवें आसमान पर पहुचाया. उन्होंने काफी यात्राय की और मुख्य पांच भाषा में यात्रा विवरण करते थे जिनमें हिंदी, संस्कृत, भोजपुरी, पाली और तिब्बतन शामिल है . उनकी काफी रचनाओं को प्रकाशित भी किया गया है जिनमें जीवनी, आत्मकथा, बुद्धिज़्म, ग्रामर, विज्ञान, नाटक,निबंध, राजनीती इत्यादि शामिल है .
राहुल सांकृत्यायन की मृत्यु –
श्री लंकन यूनिवर्सिटी में रहकर शिक्षक के जॉब को स्वीकार कर लिया था जहां कुछ समय बाद उन्हें किसी गंभीर बीमारी ने घेर लिया था. डायबिटीज, हाई ब्लड प्रेशर ने उन्हें जकड लिया था. अंत में उनकी याददाश्त भी चली गयी थी. और 1963 में दार्जिलिंग में उन्होंने अपनी अंतिम साँस ली थी. अंतिम समय में वे दार्जिलिंग में राहुल निवास में रह रहे थे.
राहुल सांकृत्यायन के कार्य – उनके लिखे कुछ उपन्यास :
- बीसवी सदी-1923
- जीने के लिये-1940
- सिम्हा सेनापति-1944
- जय यौधेय-1944
- भागों नहीं, दुनिया को बदलो-1944
- मधुर स्वप्न-1949
- राजस्थानी रानिवास-1953
- विस्मृत यात्री-1954
- दिवोदास-1960
- विस्मृत के गर्भ में
राहुल सांकृत्यायन की लघु कथा-
सतमी के बच्चे-1935
वोल्गा से गंगा-1944
बहुरंगी मधुपुरी-1953
कनैला की कथा-1955-56
आत्मकथा-
मेरी जीवन यात्रा I-1944
मेरी जीवन यात्रा II-1950
मेरी जीवन यात्रा III,IV, V- एकसाथ प्रकाशित की गयी
राहुल सांकृत्यायन ने लिखी जीवनी:
सरदार पृथ्वी सिंह-1955
नये भारत के नये नेता-1942
बचपन की स्मृतिया-1953
अतीत से वर्तमान-1953
स्टॅलिन-1954
लेनिन-1954
कार्ल मार्क्स-1954
माओ-त्से-तुंग-1954
घुमक्कड़ स्वामी-1956
मेरे असहयोग के साथी-1956
जिनका मैं कृतज्ञ-1956
वीर चन्द्रसिंह घरवाली-1956
सिंहला घुमक्कड जयवर्धन-1960
कप्तान लाल- 1961
सिंहला के वीर पुरुष-1961
महामानव बुद्ध-1956
उनकी कुछ और किताबें :
मानसिक गुलामी
ऋग्वेदिक आर्य
घुमक्कड़ शास्त्र
किन्नर देश में
दर्शन दिग्दर्शन
दक्खिनी हिंदी का व्याकरण
पुरातत्व निबंधावली
मानव समाज
मध्य एशिया का इतिहास
साम्यवाद ही क्यों
भोजपूरी में :
तीन नाटक-1942
पाँच नाटक-1942
बौद्धधर्नम दर्शन-1984
तिब्बतन से संबंधित :
तिब्बती बाल-शिक्षा-1933
पथवाली-1933
तिब्बती व्याकरण-1933
तिब्बत मे बुद्ध धर्म-1948
ल्हासा की और
हिमालय परिचय भाग 1
हिमालय परिचय भाग 2