हर साल 21 अप्रैल को विश्व स्तर पर विश्व रचनात्मकता और नवाचार दिवस मनाया जाता है. यह दिवस संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों, जिसे “वैश्विक लक्ष्य” के रूप में भी जाना जाता है. यह दिवस समस्या-समाधान में रचनात्मकता और नवाचार के महत्व के बारे में जागरूकता बढ़ाने के लिए मनाया जाता है. इस दिन का मुख्य उद्देश्य लोगों को नए विचारों का उपयोग करने, नए निर्णय लेने और रचनात्मक सोच रखने के लिए प्रोत्साहित करना है. रचनात्मकता एक ऐसी सोच है जो दुनिया को गोल बनाती है. यह दिवस संयुक्त राष्ट्र के सतत विकास लक्ष्यों को रचनात्मकता और नवाचार जागरूकता पैदा करने के लिए मनाया जाता है।
आइन्स्टीन ने कहा है कि किसी देश का सतत विकास तभी हो सकता है जब वहाँ की सरकारें नवाचार और रचनात्मक कार्य पर ध्यान केन्द्रिक करेंगा विश्व समुदाय का मानना है कि रचनात्मक और नवाचार ही विश्व की अनुमोल निधि है। जिसके अपने की देश की सतत विकास रफ्तार को बनाये रख सकती है। हिंसा और वैमनस्य के दौर में रचनात्मकता ही है जो विश्व को आगे बढ़ने की प्रेरणा दे सकती है।
विश्व रचनात्मकता और नवाचार दिवस का इतिहास
विश्व रचनात्मकता और नवाचार दिवस की शुरुआत कनाडा के टोंरटो द्वारा 25 मई 2001 को हुई। इस दिन की स्थापना कनाडा के मार्सी सहगल ने 1977 में की थी। सहगल ने 1977 में इंटरनेशनल सेंटर फॉर स्टडीज़ इन क्रिएटिविटी में रचनात्मकता का अध्ययन किया था। संयुक्त राष्ट्र ने 17 अप्रैल 2017 को दुनिया भर में 21 अप्रैल को सभी मद्दे पर समस्या-समाधान के प्रति जागरूक करने के लिए रचनात्मकता और नवाचार के महत्व को लोगों के बीच पहुचाया। जिसके बाद से हर वर्ष 21 अप्रैल को विश्व रचनात्मकता और नवाचार दिवस मनाने की शुरुआत की।
“रचनात्मकता वह देखना है जो हर कोई देख रहा है और वो सोचना जो किसी ने न सोचा हो”- आइंस्टीन
आइन्स्टीन के इस कथन के पीछे शायद वही तत्व रहे हों जिसने उन्हें प्रतिपल नया रचने और गूढ़ ज्ञान को जानने के लिए प्रेरित किया हो। यह जरुरी नहीं है की रचनात्मकता सिर्फ चित्रकारी में ही देखने मिले, पारंपरिक तौर पर अपनी संस्कृति के प्रति आग्रह और कला के प्रति उत्साह भी रचनात्मकता की श्रेणी में ही आता है। भारतीय समाज में लोक त्यौहार की नींव ही रचनात्मकता को बढ़ावा देती है- घर की दीवारों के रंग रोगन, रंगोली, तोरण-पताका की सजावट, कलाकृतियों की विभिन्नता, और पारंपरिक गीतों में उल्लास-बोध के साथ निरंतरता का भाव (नई पंक्तियाँ जोड़कर गीत बनाने की स्वतंत्रता) से यह स्पष्ट होता है। इन्हीं परम्पराओं के निर्वहन के साथ ही अपने कार्यों और अपनी सोच में जब परिवर्तन लाने की बारी आती है, तब उसे नवाचार कहते है।